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“इस युग की नारी सीता का अवतार नहीं जिन्हें अग्नि परीक्षा देनी पड़े”

लड़कियां

लड़कियां

इबारतें लिख रही हैं वे नई आसमानों पर

मिसालें पैदा कर रही हैं वे रोज़ नई इस जहां में

दो शब्दों के इस भाव को जिसने जाना, उसने जाना नारी होने का अर्थ।

जी हां, कहने को तो हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं मगर क्या हम वाकई में नारी होने की असलियत को जान पाएं हैं? क्या हम इस चीज़ को समझ पाए हैं कि हमारे समाज में महिला की क्या अहमियत होती है।

आज इस सवाल को अपने आप से पूछिए क्योंकि आज भले ही नारी आसमान की ऊंचाईयां छू रही हैं लेकिन उसकी कामयाबी क्या असलियत में पुरुष प्रधान इस समाज को समझ में आती हैं? क्योंकि अकसर वह नारी की कामयाबी को उसकी बौद्धिकता के साथ मापने की जगह उसके सौदर्य से आंकता है।

फोटो साभार: Getty Images

अकसर इस पुरुष प्रधान समाज में देखा गया है कि वह स्त्री के सामर्थ को समझने में कामयाब नहीं हो पाता। वह उसे पंख तो देता है मगर कई बेड़ियों के साथ, ताकि वह उड़ तो सके लेकिन सीमाओं के बंधन में रहकर।

वह देखता तो सब है मगर समझता उतना ही चाहता है जितना उसकी समझ उसे समझने के लिए कहती है, क्योंकि वह जानता है कि यदि वह स्त्री को असीमित पंखों की आज़ादी देगा, तो कहीं वह इन्हीं हौसलों भरे पंखों पर गगनचुंबी उड़ान भरकर उसके अहम को चोट ना पहुंचा दें।

आज हम जिस समाज में रहते हैं, वह एक पुरुष प्रधान समाज कहलाता है। इस समाज में हमें बचपन से ही सिखाया जाता रहा है कि घर को चलाने में पुरुषों की भागीदारी ज़्यादा रहती है। आदिकाल से ही यह रीति चली आ रही है कि औरत को मर्द के साए में ही अपना जीवन जीना चाहिए।

समाज ने महिलाओं को हमेशा एक ही किस्म के चश्मे से देखने की कोशिश की है। इस समाज को लगता है कि एक महिला की गरिमा घर की दहलीज़ के अंदर ही है।

यह समाज की तंग मानसिकता ही तो है कि एक महिला को खुले आसमान में उड़ान भरते हुए नहीं देख सकता है। इस तंग मानसिकता वाले समाज को मालूम है कि सतयुग में रावण के उद्धार के लिए सीता को भी लक्ष्मण रेखा पार करनी पड़ी थी, तथा पुनः राम जी के पास आने के लिए उन्हें अग्नि परीक्षा देनी पड़ी।

यदि उस युग में सीता को नारी होने का प्रमाण देने के लिए अग्नि परीक्षा  से गुज़रना पड़ा, तो इस युग में नारी सीता का अवतार तो नहीं हैं, जिन्हें अपने चरित्र के लिए कदम-कदम पर अपनी काबिलियत को इस पुरुष प्रधान समाज के सामने अपने आपको साबित करना पड़े।

फोटो साभार: Getty Images

आज का नौजवान भले ही अपने लिए पढ़ी-लिखी लाइफ पार्टनर चाहता है मगर वह साथ में यह भी चाहता कि वह घर और बाहर की दुनिया में तालमेल बना कर रखे, ताकि उसकी गृहस्थी ठीक से चल सके।

यह सब कहने की बातें हैं कि पति-पत्नि एक ही गाड़ी के दो पहिये हैं। अगर एक में भी खराबी आ जाए, तो दूसरा उसे संभालने के लिए तैयार रहता है। हालांकि वास्विकता यही है कि अगर आज के टाइम में एक भी पहिया (पति- पत्नि) खराब होता है, तो गाड़ी चलने में अस्मर्थ होने लगती है।

यदि पहिये (गृहस्थी) को चलाना है, तो हमें मनु-समृति के इस कथन ‘यत्र पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता’ को अपने जीवन में लाना होगा। यह सब केवल एक दिन करने से हम कोई तीर नहीं मार लेंगे। इन चीज़ों को जीनव भर के लिए अपने विचारों में शामिल करने की ज़रूरत है। इस श्लोक का पर्याय ही है कि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।

एक दिन के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने के बाद अगले ही दिन या अगले पल से नारी के साथ एक उपेक्षित वस्तु की तरह ही बर्ताव होने लगता है।

आज के समय में हम पाते हैं कि ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ का दिन बीतता भी नहीं कि लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों का हनन व लड़कियों से जुडी खौफनाक वारदातें सुनने को मिल जाती हैं।

इसलिए यदि हमें सही मायने में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मानाना है, तो हमें महिलाओं को उड़ने के लिए पंखों के साथ-साथ हौसले की उड़ान भी देनी होगी, ताकि सही मायने में केवल एक दिन ही नहीं बल्कि साल के 365 दिन लोग महिलाओं को सम्मान दें।

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