सिद्धांतवादी राजनीत को जीवित रखने में जनता निभानी होगी अहम भूमिका
परतंत्रता की जंजीरों से मुक्त पाने के बाद भारत देश के राजनेताओं द्वारा लोकतांत्रिक प्रक्रिया के आधारभूत देश की जनता को जनमत के आधार पर देश पर शासन करने वाली सरकारों का चयन करने का अधिकार दिया गया।
जिसके फलस्वरूप देश में हर पांच वर्ष में लोकतांत्रिक पद्धति के अनुरूप चुनाव आयोग द्वारा चुनावों का आयोजन करके देश की जनता के मतदान के अनुसार देश की सरकारों का गठन किया जाने लगा। जिसमें कई बार जनता का रुख कांग्रेस पार्टी के साथ तो कई बार भारतीय जनता पार्टी के साथ रहा।
हालांकि यह सच्चाई हैं कि देश की जनता ने गांधी परिवार की विरासत कही जाने वाली कांग्रेस पार्टी पर सर्वाधिक भरोसा जताया हैं। जिसे किसी भी परिस्थिति में झुठलाया नही जा सकता हैं।
लेकिन जब भी देश की जनता के द्वारा अपने जनमत का उपयोग करते हुए कांग्रेस पार्टी को सत्ता से विमुख किया गया तो कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं द्वारा जनता के आदेश को शिरोधार्य मानकर विपक्ष की भूमिका में भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन भलीभांति किया।
किन्तु बर्तमान परिवेश में देश में होने वाले चुनावों पर यदि नजर डाली जाए तो आज देश की हर राजनैतिक पार्टी देश के भविष्य का निर्धारण करने वाले चुनाव को ऐसे लड़ रही हैं जैसे यदि इस चुनाव में जिस पार्टी को देश की सत्ता पाने में सफलता प्राप्त नही होगी,उस पार्टी का राजनैतिक अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
और शायद इसी सोच के कारण आज वर्तमान समय की राजनैतिक पार्टीयां अपने सिद्धांत, उद्देश्य और सामाजिक समरसता को भी दांव पर लगाते हुए निचले स्तर की राजनीति करने पर उतारू हो गई हैं।
किन्तु यदि वक़्त रहते देश की जनता द्वारा इन राजनैतिक पार्टियों द्वारा की जा रही निचले स्तर की राजनीति को रोका नही गया तो निश्चित तौर पर विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत से सिद्धांतवादी राजनीति का अंत हो जाएगा।
एड. नवीन बिलैया(निक्की भैया)
सामाजिक एवं लोकतांत्रिक लेखक