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कुरुक्षेत्र में कुरुक्षेत्र : 7 विद्यार्थी आमरण अनशन पर

उठ रही आवाजों को दबाने के लिए या तो आवाज उठाने वाले को कुचल दिया जाए या फिर जश्न का शोर इस कद्र बरपा दिया जाए कि आवाजें सुनाई ना दें | कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हक के लिए उठ रही आवाजों को दबाने के लिए ये दोनों ही ह्त्थकंडे अपनाकर अपने आकाओं के आगे दूम हिलाने का काम विश्वविद्यालय प्रशासन ने किया है| विश्वविद्यालय प्रशासन ने विद्यार्थियों की मुलभुत समस्या सहित विभिन्न मांगों को लेकर आन्दोलन कर रहे विद्यार्थियों को निष्कासित करके अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं | लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन शायद यह भूल गया है कि युद्ध के मैदान में बरपे तमाम शोर में रणभेरी की करतल ध्वनी ना केवल सबका ध्यान अपनी तरफ खींचती है बल्कि तमाम विरोधियों को आगाह करने के काम भी करती है | विश्वविद्यालय प्रशासन के तानशाही रवैये के खिलाफ विद्यार्थियों ने लड़ाई का आगाज किया | पिछले 5 दिन से 2 लडकियों सहित 7 विद्यार्थी आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं | जिन्हें ना केवल विद्यार्थी समुदाय का समर्थन मिल रहा है बल्कि शहर भर से विभिन्न आमजन भी उनसे सहमती जता रहे हैं |

इस पुरे घटनाक्रम को समझने के लिए हमें एक विचारधारा विशेष को विश्वविद्यालय में काबिज करने के लिए किये गये करतूतों को समझना होगा | जबसे राज्य में भाजपा को अनपेक्षित सरकार का गठन करने का अवसर मिला तबसे ही तमाम शिक्षा संस्थान उसके निशाने पर रहे हैं | कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपती से समय से पहले दबाव बनाकर आधी रात में लिए गये इस्तीफे से इसकी शुरुआत हुई | उसके बाद ना केवल विश्वविद्यालय बल्कि पुरे राज्य के शिक्षाविदों को दरकिनार करते हुए राजस्थान से ABVP के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. KC शर्मा को कुलपति की कुर्सी पर बैठाया गया |  आरएसएसनीत सरकारों ने हमेशा  ही तमाम विरोध में उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए अपना उत्सव संगीत का शोर पैदा किया है तथा उस उत्सव संगीत के पीछे से दबे पाँव आवाज उठाने वालों को कुचलने का काम किया है | यही काम कुलपति महोदय पिछले 3 साल से कर रहे हैं | 3 साल में उन्होंने कभी भी विश्वविद्यालय परिसर में किसी भी कर्मचारी या विद्यार्थी प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात नहीं की | जब जब विश्वविद्यालय में कोई छात्र या कर्मचारी आन्दोलन उपजा उन्होंने गौर नहीं किया | हमेशा टालमटोल करके अंदरखाते आंदोलनों को कुचलने का काम किया | हर बार विद्यार्थी आंदोलनों के दबाव में जब कोई बात अगर मानने को मजबूर हुए भी तो हर बार अधिकारिक घोषणा करने से ऐन पहले ABVP के साथ फोटो खिंचवाकर उसका श्रेय जबरदस्ती ABVP को दिलवाने के असफल प्रयास किये | लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी सफल नहीं हो सके | फिर सरकार के इशारे पर ABVP को स्थापित करने के लिए छद्म अप्रत्यक्ष छात्र संघ चुनावों का सहारा लिया गया जिसका ABVP के अलावा तमाम छात्र संगठनों ने संयुक्त छात्र संघर्ष समिति बनाकर भारी विरोध किया | उम्मीद के मुताबिक़ ABVP ने विद्यार्थियों के लिए कोई काम नहीं किया तो भी संयुक्त छात्र संघर्ष समिति ने अपना संघर्ष जारी रखा | 3 महीने पहले विद्यार्थी विभिन्न समयाओं को लेकर प्रशासन से मिलकर ज्ञापन सौंप कर आये थे जिस पर कोई कार्रवाही नहीं की गई | लगभग 2 महीने से विद्यार्थी 20 बार कुलपति महोदय से मिलने का प्रयास कर चुके थे लेकिन अपनी कुर्सी बचाने के लिए अपने आकाओं के आगे दम हिलाते कुलपति महोदय को विद्यार्थियों से बात करने की फुर्सत नहीं थी | राजनैतिक कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय परिसर में खुलेआम किया गया लेकिन विद्यार्थियों से बात नहीं की गई | विद्यार्थियों पर पहले सुरक्षाकर्मियो द्वारा दमन करवाया गया बाद में पुलिस द्वारा लाठीचार्ज एवं गिरफ्तारियां भी करवाई गई | इतना ही नहीं आंदोलनकारी विद्यार्थियों पर बार बार छात्रसंघ के नाम पर ABVP को ज्ञापन सौंपने के लिए दबाव भी बनाया गया और ABVP कार्यकर्ताओं द्वारा हमला भी करवाया गया | हमेशा की तरह ABVP ने विद्यार्थी आन्दोलन को बदनाम करने के लिए अपने चिरपरिचित अंदाज में आन्दोलनकारियों को देशद्रोही के तमगे से नवाजने का प्रयास किया जिसे विद्यार्थी वर्ग ने जरा भी तुल नहीं दिया | लेकिन विद्यार्थी आन्दोलन के दबाव में तथा जिला प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद हुई बातचीत में आखिर कुलपति को ना केवल शामिल होने को मजबूर होना पड़ा बल्कि अधिकतर मांगों पर सहमती भी हुई | इन मांगों में कोई भी मांग व्यक्तिगत नहीं थी बल्कि विश्वविद्यालय की अहम समस्याओं का हल थी जिसमे कि विद्यार्थी आन्दोलन की जीत हुई थी | लेकिन कुलपति महोदय ने इसे अपनी और अपने प्रिय संगठन की हार के रूप में देखा | अपनी कुर्सी बचाने के लिए तथा अपने रुष्ट हुए आकाओ को खुश करने के लिए कुलपति महोदय ने राजनैतिक प्रतिशोध के लिए संयुक्त छात्र संघर्ष समिति के नेतृत्व को चिन्हित करके 19 विद्यार्थियों को निष्कासित करने का काम किया | ना कोई नोटिस ना कोई पूर्व सुचना और सीधा निष्कासन | इन निष्काषित विद्यार्थियों में SFI, NSUI, ASWA, INSO, PSO, HSF के छात्र नेता शामिल हैं जिनमे से 8 लडकियाँ भी है | जब विद्यार्थी इस एक्शन से सम्बन्धित बातचीत के लिए गये तो फिर से कुलपति की तरफ से वही रिस्पोंस मिला | ऐसे में विद्यार्थियों ने समय देते हुए प्रशासन से बातचीत की अपील की लेकिन कुलपति महोदय अपनी एक्स्टेंशन के लिए एक सप्ताह से ज्यादा समय चंडीगढ़ में डेरा डाले बैठे रहे | आज जब 5 दिन से 7 विद्यार्थी भूख हडताल पर बैठे हुए हैं कुलपति महोदय या प्रशासन ने एक बार भी प्रयास नहीं किया है उल्टा विद्यार्थियों के घरों पर फोन करके उन्हें धमकाया जा रहा है | धीरे धीरे विद्यार्थियों की सेहत खराब होती जा रही है | BP कम होने के चलते जहाँ एक लडकी को उल्टियां लगी हैं वहीं दो विद्यार्थियों को आज हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा है | इस सबके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी जिद्द पर अडा हुआ है तथा विद्यार्थी भी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि एक के बाद दूसरा आएगा दुसरे के बाद तीसरा आएगा लेकिन वे यह तानाशाही नहीं चलने देंगे |

लोकतंत्र का अर्थ सिर्फ वोट देकर सरकारें चुनना नहीं होता बल्कि लोकतंत्र का मतलब हमेशा जनता का जनता के लिए तथा जनता द्वारा होता है | लेकिन आरएसएस तथा भाजपा ने पुरे देश में ही इस भूमिका को बदल कर रख दिया है | इन लोगों के लिए लोकतंत्र की हत्या करते हुए किसी भी तरह से सत्ता हासिल करना और अपनी तानाशाही चलाना एक पैटर्न है जो ये लोग ना केवल राज्य केंद्र सरकारों के प्रचलन में कर रहे हैं बल्कि नगर निगम, पंचायत तथा विश्वविद्यालय जैसी ग्राउंड लोकेशन तक भी कर रहे हैं | इस तानाशाही और लोकतंत्र की हत्या के खिलाफ एकजुट आन्दोलन ही एकमात्र रास्ता है |

 

तू नहीं सुनता अगर फर्याद मज़लूमा, न सुन,
मत समझ ये भी बहरा ख़ुदा हो जाएगा ।

जोम है कि तेरा कुछ नहीं सकते बिगाड़,
जेल में गर मर भी गए तो क्या हो जाएगा ।

याद रख महंगी पड़ेगी इनकी कुर्बानी तुझे,
सर ज़मीने-हिन्द में महशर बपा हो जाएगा ।

-अज्ञात
१८ अगस्त १९२९, बन्दे मात्रिम (उर्दू पत्र)-लाहौर

(आजादी के दौर में लिखी गई यह नज्म आंदोलनकारी छात्रों के संघर्ष के नाम)

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