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धर्म के उदर से निकला सतही बदलाव -प्रयागराज

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धार्मिक उत्सव(कुम्भ) के लिए की गयी लीपापोती और सतही बदलाव इलाहाबाद को तात्कालिक वैभव जरूर देते हैं पर इस बदलाव की शर्त में आप अपनी चेतना का भी सौदा कर रहे होते हैं. इलाहाबाद अब प्रयागराज,देखने में और सड़को पर चलने पर एक तात्कालिक सुकून तो देता है पर कुम्भ जैसे धार्मिक प्रयोजन में सड़को और दीवारों पर नए रंगो के सृजन के साथ एक बहुत विशाल मानवीय सामर्थ्य और संभाव्यता का छय हो रहा होता है ,वो सामर्थ्य जिसे हम चैतन्य, बोध या संज्ञा कहते है, जिसके बरक्स दुनिया में सोचने वाले लोग सवाल पूछते है.
कोई भी बदलाव जिसकी उत्पत्ति धार्मिक उत्सव के उदर से होती है, उस बदलाव के दूरगामी परिणाम और अंतर्निहित नियत का भी अनुसंधान किया जाना चाहिए. प्रयागराज के बदलाव की मूल प्रवृत्ति में धार्मिक उपासना ,ताकत के प्रति अंध-समर्पण भी निहित है क्यों की इस तरह के उत्सव आपके अंदर की वैज्ञानिक चेष्टा का खात्मा कर रहे होते हैं. धर्म और राज्य दोनों ही एक दुसरे के पूरक है और राज्य आपको धर्मावलम्बी बना कर आपको आने वाले दिनों के लिए जिन्दा लाश में तब्दील कर रहा होता है. किसी भी धार्मिक उत्सव का आखिरी प्रयोजन एक ऐसी भीड़ खड़ा करना होता है जो शक्ति की पूजक हो और सवाल से ज्यादा आस्था- अनुरक्त हो क्यों की किसी भी शक्ति स्रोत -,धर्म अथवा राज्य, को सवाल पूछने वाली अवाम से डर लगता है क्यों की सवाल पूछती अवाम, राज्य और धर्म से सम्प्रभुता का हस्तांतरण व्यक्तियों की ओर कर रही होती है. बहरहाल, प्रयागराज की सड़को और बदलाव का भविष्य कमजोर है क्यों की सड़को और बदलाव को जिन्दा रहने के लिए एक जिन्दा कौम का होना जरूरी है और जिन्दा कौमे धार्मिक उत्सव के उदर से नहीं निकाली जाती. ताकत और श्रद्धा के लिए ट्रेनों में माचिस की तीलियों के तरह भरे लोग जो एक भीड़ बनाते है, ऐसी भीड़ जिसका मौलिक घटक इतना कमजोर हो चूका हो की वो गलत के लिए अपने यहाँ बैठे दरोगा से सवाल पूछने से डरता है और लाखो डेग भर के ताकत और धर्म का पूजक बनने काबा और कुम्भ में जाता है फिर इससे फायदा तो सिर्फ दरोगा को संचालित कर रही ताकत को ही है क्यों की वो ताकत जानती है की यहाँ ईश्वर, अल्लाह के मर्जी के बिना कुछ नहीं होता तो कार्रवाई और सवाल की जद में दरोगा तो कभी आएगा ही नहीं.
कल को प्रयागराज को और सुन्दर बनाने के लिए तमाम उम्मीदों का गबन किया जायेगा और बहुत सारे लोगो को भूखमरी की जद में फेक दिया जायेगा, पर आप इस खोखली सुंदरता पर ताली बजायेंगे क्यों की जो बर्बाद होंगे वो कभी सहर तक आ नहीं पाए और आप अपनी चमचमाते चौराहो में खुश रहिएगा ये समझ कर की दुनिया बदल गयी है.
याद रखिये बदलाव का असली पर्याय रंगीन सड़के नहीं उस पर चल रहे वो लोग होते है जो शोषण,धार्मिक उत्सवों के लिए बेहताशा लुटाये जाने वाली दौलत पर सवाल पूछने की हिम्मत रखते हैं, जब उसी प्रदेश में उन्ही सड़को पर लड़के अपने रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे है और जब अस्पतालों में बिना ऑक्सीजन मासूमो की मौत हो जाती है.
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