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नजीब की ही मां,क्यों?महत्वपूर्ण नजीब की मां नहीं,मामला वोट का है.मामला मुसलमानों के वोट का

बेटा,मां…वोट….!

नजीब की ही मां,क्यों?
महत्वपूर्ण नजीब की मां नहीं,मामला वोट का है.मामला मुसलमानों के वोट का है!

मां तो नजीब की भी है,रोहित वेमुला की भी है.
मां तो भगत सिंह की भी थी,सीवान के शहीद चंद्रशेखर की भी थी और मां ब्रह्मेश्वर की भी होगी!

बेगूसराय से दो मांओं पर बात हो रही है.
दोनों का साथ-साथ फोटो भी दिखा.
ललाट पर टीका लगाये एक मां का बेटा चुनाव की लड़ाई में जा रहा है.
एक मां घर में ही रह जाती है और दूसरी मां जुलूस का हिस्सा बनती है!

कई मांओं और पत्नियों की तस्वीर ढ़ूंढ़ता हूं.
उन मांओं और उन पत्नियों या कहिए उन मांओं को जिनके बच्चे का बाप छिन गया है.
तमाम मांओं,पत्नियों की पीड़ा है, संघर्ष है.

बेगूसराय से जब नजीब की मां की तस्वीर आती है तो उन मांओं-पत्नियों की तस्वीर तलाशता हूं
मैंने देखा नहीं,जिसे दिखाई पड़ना चाहिए!

उन मांओं-पत्नियों की तस्वीर आने चाहिए,
जिसने हाल के दिनों में लेनिनग्राद कहे जाने वाले बेगूसराय की धरती पर गरिमापूर्ण जीवन की बुनियादी मांग-जमीन के अधिकार की मांग पर संघर्ष में अपने बेटों को खोया है.
बेगूसराय में लहराते लाल झंडों के बीच से वे तस्वीरें गायब हैं.उनकी पीड़ा और संघर्ष सुनाई नहीं पड़ता!

मां की पीड़ा और संघर्ष यहीं खत्म नहीं होती.
उन 13 मांओं की पीड़ा व संघर्ष भी महत्वपूर्ण है,जिसने अपने बेटों को 2अप्रैल 2018 को एससी-एसटी एक्ट को प्रभावहीन बनाने के खिलाफ ऐतिहासिक भारत बंद में खोया है.
जो पुलिस की गोली और मनुवादी सवर्ण हमले में मारे गये हैं.

वे मांऐं भी जिनके बेटे गटर में मरे हैं.
डेल्टा मेघवाल की मां भी होगी.

यह चुनाव न होता,उस मां के बेटे का उर्दू नाम नजीब न होता तो क्या उस मां की तस्वीर जुलूस से सामने आ पाती?

हां,सारी मां चुनाव में वोट बटोरने की हैसियत नहीं रखती.

मामला केवल वोट का नहीं होता तो सबसे पहले बेगूसराय के शहीद भूमिहीन दलितों की मां दिखती!

हाल के दिनों में नरेन्द्र मोदी की मां कैमरे की रौशनी दिखाई पड़ रही है.
पिछले दिनों नोटबंदी के बाद बैंक में लाइन में लगी उनकी तस्वीर भी सामने आई थी.हां,वही नोटबंदी जिसने कई मांओं से बेटे छीन लिए हैं.

बेगूसराय से एक मां भी कैमरे की रौशनी में आ रही हैं.
आंगनबाड़ी सेविका के बतौर काम करने और मात्र 3500रूपये प्रति माह आमदनी की चर्चा है!लाखों मां उससे कम आमदनी पर गुजारा कर रही हैं.
आशा और रसोइया मांओं की मजदूरी तो सबको पता होगा,ही!

खैर चलिए, जिग्नेश मेवानी ने आंगनबाड़ी वाली मां के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए वोट मांग ही लिया है.
उसने आने के साथ अपनी बात मानने के लिए मां कसम खा ही लिया है!

इन सबके बीच मुझे चंद्रशेखर की मां भी याद आ रही हैं.जिसने अपने बेटे की शहादत के बाद संघर्ष किया है और अपने बेटे की शहादत की कीमत लगाने के लिए तात्कालीन गृहमंत्री सीपीआई के इंद्रजीत गुप्ता को लानतें भेजी.मुआवजा राशि वापस भेजा.

हर आम मां की पीड़ा है,संघर्ष है!

बिहार में रणवीरों द्वारा नरसंहार में मारे गये बेटों की मांऐं भी होंगी!
उन मांओं के संघर्ष की आवाज,इंसाफ के इंतजार में दम तोड़ती उम्मीद है!

मैक्सिम गोर्की की मां और उसका बेटा पावेल भी याद आ रहा है!…..पावेल!

बेगूसराय,लेनिनग्राद,पावेल!

1084वें की मां!

हां,चंद्रशेखर को शहादत के पहले मां ने टीका नहीं लगाया होगा.हां,चंद्रशेखर के माथे पर टीका नहीं लगता होगा!
मां से टीका लगवाकर संसद की ओर ही जाया जा सकता है.

नेता नहीं बेटा!
मां!
वोट तो चाहिए!

मांओं की चर्चा निकली है तो ‘गौ’ माता की चर्चा भी होगी,ही!
गौ माता हमारे लिए दूध देती है!
एक राजनीतिक गिरोह के लिए वोट!
वोट के लिए उस गिरोह ने गौ माता के नाम पर दर्जनों मांंओं से बेटों को छीन लिया है!

‘मां’ महान शब्द है!
महान बेटों,वोट के लिए मां नहीं है!

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