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माँ-एक व्यथा

 

” तेज गन्ध थी साहब जैसे कोई जानवर सड़ रहा हो ”

” मुझे लगता है अवश्य कोई कूड़े की गाड़ी रही होगी जिसकी बदबू आप तलक पहुँची हो ”

” नही साहब … खुदा कसम मैं मुतमईन हूँ ऐसा कुछ नही था ..बस जैसे ही मैं 12 / 18 के माले में गया वैसे ही बदबू मेरी नाक से टकराई …तभी मैंने पुलिस को फोन किया ”

और फोन लगा सीधे कुंदननगर कोतवाली में जिसके इंचार्ज हैं .. दशरथ सिंह …वो जब अपने दस्ते को लेकर यहाँ पहुँचे तभी उन्होंने मुझे भी फोन कर दिया.. मैं इस क्षेत्र का पुलिस सर्किल ऑफिसर अविनाश अवस्थी …और इत्तेफाक से मैं भी यहीं रहता हूँ ..यानि इसी कॉलोनी के 12 / 18 फ़्लैट नम्बर 13 में ….

उनके यहाँ पहुँचने से पहले ही मैंने तफ्तीश शुरू कर दी …और जाना कि अब्दुल गनी लिफ्टमैन ने जो महसूस किया वैसा कुछ भी नही था ….

लेकिन एक भीनी गन्ध थी ..इसलिए मैंने 12/18 के हर फ़्लैट को नॉक किया और उनसे जानकारी ली …फिर पुलिस पहुँची और उन्होंने हर फ़्लैट की तलाशी ली लेकिन अब्दुल गनी का दावा झूठा निकला ….

अगले दो दिन बाद फिर एक तेज बदबू ने अब्दुल गनी का ध्यान खींचा और उसने पुनः इसकी सूचना मुझे दी ….इस बार वो सच बोल रहा था ..मैंने स्वयं पुलिस को इसकी सूचना दी और पुलिस मौके पर पहुँची ….

पूरे फ़्लैट स्वामियों का मजमा सा लग गया ..हर कोई डरा-सहमा और सशंकित था ..तभी हवलदार ने मुझे आवाज दी –

” साहब यहाँ आइयेगा ..जल्दी प्लीज ”

मैं दौड़कर गया और देखा पोस्ट बकेट में एक मुर्गी का सड़ा हुआ शव पड़ा था …

मामला अब समझ में आया और सबने राहत की साँस ली ..लेकिन मुझे कुछ खटका हुआ कि आखिर ये हरकत की किसने …मैंने पुलिस की मौजूदगी में ही सी.सी.टी.वी कैमरों की फुटेज खंगाली लेकिन उसमें कुछ नही था …मतलब किसी ने बड़ी चालाकी से वो फुटेज कैमरे से उड़ा दी थी ….

खैर मामला संगीन और संवेदनशील नही था इसलिए तफ्तीश खत्म हुई और मैंने कोतवाल दशरथ सिंह से भी कह दिया कि मीडिया को इस प्रकरण से दूर ही रखें वरना बात ही बात में कहानी कोई नया मोड़ ले लेगी ….

अब सब सामान्य था …लेकिन पता नही आते जाते मैं अब क्यों हमेशा उस गन्ध को सूँघने की कोशिश करता जिसने कॉलोनी में हलचल मचा दी थी …मैंने अब्दुल गनी को सख्त ताकीद किया कि अब लापरवाही मत करना हर आने- जाने वाले अजनबी पर पूरी नजर रखना….

मैं अविनाश अवस्थी अविवाहित हूँ …अपना कहने को सिर्फ मेरी माँ ही अब मेरा सहारा और जिम्मेदारी है …वो आजकल तीर्थ पर गई है लेकिन मेरा तीर्थ और मेरा स्वर्ग मेरी माँ है …

वो माँ जिसने अपनी पूरी जिंदगी मेरे लिए तबाह कर दी …. जब मेरे पिता का देहांत हुआ तब मैं 8 साल का था …माँ और पिताजी ने भाग कर विवाह किया था ..ये एक अंतर्जातीय विवाह था ..इसलिए न कभी हमें ननिहाल ने स्वीकार किया न दादीहाल ने कुबूल किया ,,,

पिता की असमायिक मृत्यु के वक्त मेरी माता की आयु ये ही कुछ 30 साल थी ….मेरी माँ अनपढ़ थी ..और पिताजी को एक गाँव में पुल बनाते समय उनसे प्रेम हो गया …माँ पिताजी से यही कोई 15 साल छोटी थी लेकिन प्रेम ने कब सीमाओं का उल्लंघन किया ..

माँ को कुछ भी नही आता था ..लेकिन आना चाहिये था …नही तो उसपर वो नही गुजरती जो मैं आज तलक नही भूल पाया हूँ …

माँ …पिताजी की मृत्यु के बाद बिलकुल अकेली पड़ गई , इस कदर अकेली की अक्सर मुझे सोता हुआ समझ कर खूब सिसकियाँ भरकर रोती थी …माँ ने एक चादर रंगने के रंगरेज कारखाने में नौकरी करनी शुरू कर दी …लेकिन एक दिन जब कारखाने में ,,मैं उसको बताने के लिए चेहरे और कदमों में खुशियाँ भरकर दौड़ा कि मैं कक्षा 8 में प्रथम आया हूँ तो पाया कि वो एक कोने में फ़टे -उधड़े कपड़ों में बिलख रही थी …

मैं उस वक्त नही समझा लेकिन फिर जब फ़िल्में देखने लगा तो याद आया उस दिन मेरी माँ के साथ रेप हुआ था ..लेकिन माँ इस रेप के बाद टूट सी गई थी ..और उसने जुबान सिर्फ मेरी जिंदगी ..तालीम और बेहतरी के लिए सिल ली …या फिर अपनी गरीबी के मद्देनजर ….कारखाना छोड़ उसने फिर घर में मिठाई के डब्बे बनाने शुरू कर दिए ..दिन अच्छे गुजर रहे थे तभी एक दिन मैं अपने स्कूल से घर लौटा तो पाया …कोई व्यक्ति माँ से जबरदस्ती कर रहा था …मुझे देखकर वो लौट गया लेकिन फिर पता चला वो मेरा ताऊ था …

लेकिन आज मैं जानता हूँ कि मेरा तो कोई ताऊ था ही नही ..बल्कि वो मेरा दादा था ….

माँ ने कई शहर बदले और मैंने कई सरकारी स्कूल …कक्षा 11 में पढ़ता था …तभी बगल में रहने वाली सुजाता आंटी माँ के लिए एक रिश्ता लेकर आई कि वो मेरे भविष्य को ध्यान में रखते हुए दूसरा विवाह कर ले …

मैं सिर्फ खामोश था ..और माँ ने स्पष्ट इनकार कर दिया ..लेकिन सुजाता आंटी के समझाने पर कि आदेश भला आदमी है और अच्छे रोजागर वाला …उसकी बीवी भी नही रही .. और बच्चे भी नही है ..तो माँ ने मुझे और मेरी प्रतिभा को मंच मिले इसलिए दूसरा विवाह कर लिया …

आदेश जिसको मैंने शुरुवात से ही अपना बाप नही माना असल में वो पाप का पुजारी था …वो मेरी माँ को मेरे सामने ही निर्वस्त्र कर देता और उनके साथ…….

वो खूब शराब पीता था ..और इस वजह से उसके दोस्त भी घर आते-जाते रहते थे …

उसके दोस्त मेरी माँ को मेरे सामने ही गन्दी नजरों से घूरते और फिकरे कसते ..एक ने तो एक दिन माँ की कमर में चिकोटी भी काट दी …और फिर उनकी हिम्मत इस कदर बढ़ गई कि वो माँ के साथ जबरदस्ती करने लगे ….

एक रात माँ ने मुझे चुपके से उठाया और हमनें रेलवे स्टेशन से एक गाड़ी पकड़ी ….और दूर ..बहुत दूर चले आये ….

अब माँ एक प्राइवेट स्कूल में बच्चों की आया बन गई और मैं अपने अध्धयन में जुट गया … लेकिन फिर समय ने चुनौती प्रस्तुत की और एक सड़क दुर्घटना में माँ का एक पैर सदैव के लिए जाता रहा …

माँ अब घर में ही रहने लगी ..और मैंने घर की देहलीज पार की… दिन भर एक मॉल में सेल्समैन की ड्यूटी बजाता और रात को खाना भी पकाता ….फिर अपने अध्धयन और किताबों में खो सा जाता …

माँ मेरी ये हालत देख सिर्फ रोती थी …लेकिन मैं उनको साहस देता …और किसी कोने में जाकर मैं भी फूट-फूट कर रोता …

इस बीच एक लड़की से मुहब्बत भी हुई … प्रभा नाम था उसका लेकिन उसको कभी बता नही पाया … जबकि मुझे ज्ञात था वो भी मुझसे मुहब्बत करती है ….जिस दिन मैंने इरादा किया कि उसको जाकर बोल दूँ उसी दिन मैंने प्रभा के मुँह से अपनी शादीशुदा सहेली को कहते सुना कि …

“सास एक सांप होती है इसलिये उसका फन हमेशा दबा के रखना …”

रोम खड़े हो गए मेरे ..और साँस वापस न लौटी …और मैंने अपनी आँख बन्द कर अपनी माँ का चेहरा याद किया ..और नजर आया कि जिस औरत ने अपनी पूरी जिंदगी गमों और दर्द में काट दी …मेरा विवाह कहीं उसका जीवन श्राप न बना दे ….

उसी दिन मैंने प्रतिज्ञा की ..कि मैं कभी विवाह नही करूँगा ….

खैर … अपनी मेहनत के दम पर और अपनी माँ की दुवाओं के चलते मैंने राज्य लोक सेवा आयोग का एग्जाम क्रेक कर सर्किल ऑफिसर का पद प्राप्त किया और सरकारी आवास छोड़ कर लोन लेकर खुद का एक फ़्लैट खरीदा ताकि मेरी माँ की आने वाली जिंदगी आराम से कटे …. उस रात जब सितारों की तन्हा चादर में अकेले -अधूरे चाँद को जब बॉलकनी से निहार कर शराब के पैग की चुस्की खींच रहा था तभी डोर बेल बजी –

” दशरथ सिंह आप यहाँ ?”

” सॉरी सर ..हमनें सी .सी.टी.वी . की फुटेज फिर से रिकवर कर ली है …वो मुर्गी के सड़े शव को आपने ही पोस्ट बकेट में रखा था ..और आपको कैमरे की फुटेज डिलीट करते हुए मिस्टर शर्मा ने देखा था …”

” सब झूठ है …बकवाश है ये सब ”

” सॉरी सर हमें आपके घर की तलाशी लेनी होगी …आपने उस दिन जाते मेरे हुए बताया था कि आपकी माताजी तीर्थ में गई हैं जबकि बड़ा दुःख है कि उनका एक पाँव कटा हुआ है …तो वो अकेले कैसे तीर्थ जा सकती है ?”

” रुको ..दिस इज माय आर्डर …आई एम् योर सीनियर ”

” सर हमारे पास कोर्ट के आर्डर है ….”

सारी तलाशी हुई और अंत में डीप फ्रीजर खुला और महकी एक तेज गन्दी बदबू …दशरथ सिंह ने रुमाल नाक पर रखकर फ्रीजर के अंदर झाँका तो उनके रौंगटे खड़े हो गए और फिर उससे सटा दूसरा फ्रीजर खोला गया ….

” सर यू आर कोल्ड ब्लड मर्डरर ….अरेस्ट हिम !”

मुझे तत्काल हथकड़ियाँ लगाई गई ..और मैं अपने फ़्लैट से बाहर निकला …हर तरफ शोर था कि मैं हत्यारा हूँ …लेकिन मुझे सुकून था कि मैं अपनी माँ के दूध का कर्ज भले ही न उतार सकता लेकिन उसके दर्द.. उसकी मजबूरियों और उसकी घुटन का कर्ज आज उतार सका हूँ ….

हाँ मेरी माँ की मौत आज से तीन माह पूर्व ही हो चुकी है …लेकिन वो तब तक नही मर सकती थी जब तलक वो लोग जिन्दा थे जिन्होंने न महज मेरी माँ का बलात्कार किया ..बल्कि उसपर गन्दी नजरें डाली ..और जुल्म किये…सब कुछ निपट चुका था …हाँ मैंने उन सब को यहीं अपने फ़्लैट में बुलाकर मौत दी ..और वो भी अपनी माँ के शव के सामने …बोटी-बोटी अलग कर दी उनके जिस्मों की …..और सबको फ्रीज कर दिया ताकि अपनी माँ का अंतिम संस्कार करते ही इन जानवरों की बोटियाँ कुत्तों को खिला सकूँ । उस दिन अनजाने में फ्रीजर का मुँह खुला रह गया और मैं शराब के नशे में उसे बन्द नही कर सका और अब्दुल गनी लिफ्टमैन ने वो बदबू सूंघ कर पुलिस को खबर कर दी …और पुलिस को खुद से दूर रखने के लिए मैंने ये सब कुछ किया ….खैर

भले ही समाज आज मुझे कातिल ..हत्यारा या वहशी कहे ..भले ही न्याय की अदालत मुझे सजा ए मौत का हुक्म दे …लेकिन मुझे फक्र है कि वो समाज फिर मुझे कपूत तो हरगिज नही कहेगा …

मानसिक बीमार घोषित कर दिया है कोर्ट ने मुझे …एक पागलखाना अब मेरी जेल है …यहाँ कइ पागल ..सरफिरे…और बावले बेवजह हँसते हैं ..शोर करते हैं ..चीखते हैं …दीवारों पर नाख़ून गाढ़ते है …लेकिन मैं खामोश रहता हूँ ..अपनी माँ की तस्वीर मैंने इस पागलखाने की हर दीवार पर उकेर दी है …वो हर पल मेरे साथ है …वो हर पल मेरे पास है …….माँ …..माँ ….माँ ..माँ…और दर्द की हर हिचकी ,हर बिजली के झटके ..हर मार ..हर जुल्म पर मेरे लबों से आह नही …सिर्फ माँ निकलता है …

” माँ ..जिससे मुक़द्दस इस जमीन पर फिर और कोई लफ्ज और कोई एहसास नही …..”

नवाज़िश

Junaid Royal Pathan.

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