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वर्तमान लोकतांत्रिक समावेशीकरण आंबेडकर के विचारों के विपरीत

जयपुर में चल रहे दो दिवसीय “जातिय भेदभाव से शोषित लोगों के अंतरराष्ट्रीय सेमिनार” के समापन समारोह में बोलते हुए मानवाधिकार और अल्पसंख्यक अधिकार रक्षक सलीम बेग ने कहा कि पिछले सप्ताह ही देश ने आंबेडकर जयंती मनाई गई।

पिछले पांच वर्षों में दलितों, अल्पसंख्यकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा पत्रकारों पर हुए जानलेवा हमलों, किसानों, मज़दूरों के दमन और देश में हुई माॅब लिंचिंग पर सत्ता की चुप्पी देश के संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

सांप्रदायिकता पर आंबेडकर की कलम

सांप्रदायिकता पर अपनी कलम चलाते हुए आंबेडकर ने लिखा था कि लोकतांत्रिक राजनीति में अगर सांप्रदायिक बहुसंख्यक राजसत्ता की अनदेखी करता है तो लोकतांत्रिक राज्य के लिए यह ज़रूरी है कि वह ऐसी संस्थानिक व्यवस्था विकसित करे जो अल्पसंख्यकों और दलितों के अधिकारों की रक्षा कर सके।

वर्तमान भारत में सत्ता पर काबिज़ राजनीतिक पार्टी ने दोनों समुदायों के बीच की खाई को और चौड़ा किया है और ऐसा उसने लोकतांत्रिक प्रक्रिया की आड़ में किया है।

सम्मलेन को संबोधित करते सलीम बैग

लोकतांत्रिक समावेशीकरण, आंबेडकर के विपरीत

वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की चर्चा की गई है। जिसमें एक भी मुसलमान उम्मीदवार को टिकट दिए बिना भाजपा को भारी बहुमत प्राप्त हुआ।

कुल मिलाकर आज़ादी के बाद भारत में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व काफी कम हो गया है। इस समय संसद में सिर्फ 23 मुसलमान सांसद हैं जबकि देश की कुल जनसंख्या में मुसलमान 14 % हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं होना है कि यह स्थिति प्रशासनिक व्यवस्था में अल्पसंख्यकों के लोकतांत्रिक समावेशीकरण के बारे में डॉ. आंबेडकर के विचारों के विपरीत है।


सम्मलेन में अपनी बात रखते मेवात कारवां के अध्यक्ष डॉ अशफाक हुसैन

इसके बावज़ूद अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों पर इस शासन के मंत्रियों द्वारा खुलेआम जिस तरह तोहमत लगाई जाती है, वह और भी रंज़ पैदा करती है।

हाल ही में भाजपा के एक मंत्री ने अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों को समाप्त किए जाने की बात कही।

इस बयान का आधार यह विश्वास था कि भारत में अल्पसंख्यकों और दलितों को बहुसंख्यकों से ज़्यादा अधिकार है मगर यह असत्य है और समान अवसर के खिलाफ है।

अल्पसंख्यकों की स्थिति बद्तर

वर्तमान में लोकतंत्र का पर्व चल रहा है। देश की सिविल सोसाइटी सभी जनप्रतिनिधियों से यह उपेक्षा रखती है कि आने वाले संसद सत्र में नफरत फैलाने, हेट-स्पीच और माॅब लिंचिंग जैसे जघन्य अपराधों के खिलाफ कड़े कानून को अमली जामा पहनाकर संसद में स्वागत का तोहफा देश को देकर देश को नफरत और मॉब लिंचिंग के दाग से मुक्त करने में सहायक बनेंगे।

गौर करने लायक बात यह है कि सिविल सोसाइटी समूहों के कई अध्ययनों में स्पष्ट पता चला है कि मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति काफी खराब है।

हकीकत यह है कि किसी भी सामाजिक या धार्मिक समूह की तुलना में उनकी स्थिति बदतर है। सरकार द्वारा समय-समय पर गठित आयोगों ने देश में अल्पसंख्यों के पिछड़ेपन की स्थिति से सरकारों को अपनी रिपोर्टों में आगाह किया है।

सच्चर समिति की रिपोर्ट (2006), रंगनाथ मिश्रा रिपोर्ट (2007) और अमिताभ कुंडू रिपोर्ट (2014) ने समाज के हर क्षेत्र में मुस्लिमों के निर्बाध हाशियाकरण संबंधी निष्कर्षों को सही पाया है।

यही स्थिति अगर रही तो देश को विकसित राष्ट्र बनाने का सपना सिर्फ सपना ही रह जाएगा क्योंकि राष्ट्र तभी विकसित होगा जब देश में रहने वाले सभी समुदायों को सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक अवसर सामान रूप से प्राप्त होंगे।

समाज का विकास ही देश को विकसित राष्ट्र की ओर अग्रसर करता है और  इस संबोधन के साथ सेमिनार का समाप्त हुआ।

 

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