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महिलाओं के हक का वह बिल, जिसके लिए अंबडेकर ने कैबिनेट से दिया था इस्तीफा

बाबा साहब अंबेडकर ने संविधान सिर्फ लिखा ही नहीं था, वह खुद संविधान थे। सोचिए, उस इंसान के दिल में अपने मुल्क के लिए कितनी मुहब्बत होगी, जिसने मुल्क से मिले जातीय तिरस्कार के बदले उसे एक खूबसूरत संविधान दे दिया।

सिर्फ दलितों ही नहीं महिलाओं के भी नायक हैं बाबा साहब

फोटो सोर्स- Getty

बाबा साहब दलितों के नायक तो है ही, साथ ही पूरे समाज के भी नायक हैं। वह महिलाओं के भी नायक हैं। ज़्यादातर सवर्ण महिलाएं इस बात से अंजान हैं कि जब उनकी जाति के मर्द उनके और उनके अधिकारों के बीच धर्म का विशाल पहाड़ खड़ा कर रहे थे, तब बाबा साहब दशरथ मांझी बनकर अकेले उस पहाड़ को तोड़ रहे थे। न्याय और बराबरी उनके छेनी और हथौड़ा थे।

1951 में बाबा साहब ने हिन्दू कोड बिल संसद में पेश किया। इस बिल के अनुसार पुरुषों को एक से ज़्यादा शादी करने पर प्रतिबंध लगाया गया, महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार दिया गया और महिलाओं को पिता की संपत्ति में लड़कों के बराबर अधिकार दिया गया।

संसद में इस बिल का विरोध हुआ। हिन्दू महासभा के श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस बिल को हिन्दू धर्म के लिए खतरा बताया। आरएसएस, हिन्दू महासभा जैसे हिंदूवादी संगठनों ने इस बिल का पुरजोर विरोध किया। नेहरू भी उनके दबाव के आगे इस बिल को संसद में पास नहीं करवा पाए।

जब यह बिल संसद में पास नहीं हो पाया, तब बाबा साहब ने नेहरू जी की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया और उनसे अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की। बाद में यह बिल चार हिस्सों में विभाजित होने के बाद संसद से पास हुआ।

आज भी कुछ सवर्ण जाति के लोग ऊंची सोच को ऊंची जाति से जोड़ देते हैं। अगर सवर्ण महिलाएं भी इस नैरेटिव में विश्वास रखती हैं, तो वे इतिहास के साथ अन्याय कर रही हैं। वे यह भूल रही हैं कि जब ऊंची जाति के मर्द महिलाओं को पीछे छोड़कर मर्दवादी समाज को आगे ले जाना चाहते थे, तब एक दलित खुद लेटकर उनके और उनके अधिकारों के बीच पुल बन गया था।

जय भीम।

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