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“आज़म खान, आपकी सोच स्त्री के अंतर्वस्त्रों तक ही सीमित क्यों है?”

आज़म खान का जय प्रदा पर बयान प्रतिबिंबित करता है कि उनको स्त्री समाज के आत्मनिर्भर होने से कितनी समस्या है। तुम जो मेरे अंतर्वस्त्रों की फिक्र करते हो ना वह दरअसल आपका चारित्रिक प्रमाण है, जो यह बताता है कि राजनीति में ऐसे ना जाने कितने और लोग हैं, जो आज भी स्त्री के अंतर्वस्त्रों तक ही सीमित हैं। उनको स्त्री की उड़ान नहीं दिखती, उनको स्त्री का वह त्याग नहीं दिखता, जो वह सीमा पर भी दिखा रही है। उनको स्त्री का रूप इंदिरा, निर्मला, कल्पना, सिंधु, सायना, ऐश्वर्या, सुषमा स्वराज आदि नहीं दिखता, जिन्होंने आधुनिक भारत, विकसित भारत बनाने में कोई कसर कभी नहीं छोड़ी।

आखिर क्यों तुम यह स्वीकार नहीं कर पा रहे कि नारी अब अबला नहीं रही? आखिर क्यों तुम्हें स्त्री से भय है? क्यों यह स्वीकार नहीं करते कि जिन अल्फाज़ों का तुम प्रयोग करते हो वे अल्फाज़ तुम्हारी बहू बेटियां भी सुनकर तुमको दुत्कारती होगी।

राजनीति शिखरता पर चढ़ते जाने के बाद भी तुम्हारी सोच सिर्फ उन अंतर्वस्त्रों तक ही कैद है, जो सिर्फ शरीर ढकने का साधन मात्र है। जो ना सिर्फ स्त्री के लिए है, वह पुरुष के लिए उतना ही ज़रूरी है। फिर भी तुम ज़िक्र सिर्फ स्त्री तक ही क्यों करते हो? पितृसत्तात्मक सोच तुम पर जो हावी है, यह उसका परिणाम है।

फोटो सोर्स- Getty

उन बातों से बाहर निकलिए और स्वीकार कीजिए कि जब लोग कहते थे भारत एक पुरुष प्रधान देश है, भारत एक पुरुष प्रधान देश ना कल था न आज है। यह उन मूर्ख लोगों द्वारा रचित भ्रम था, जिन्होंने सदैव स्त्री को पुरुष की तुलना में कम आंका है। स्त्री को कम आंककर जो मानवीय, मानसिक भूल की है, वह सिर्फ मानसिक दिवालियापन को ही प्रदर्शित करता है।

निंदनीय तब और हो जाता है जब समाज के प्रतिष्ठित लोग इसपर चुप्पी साध लेते हैं व उनके कथन पर तालियां पीटते हैं। तालियां पीटने वाले लोग उन प्रवृत्ति से ग्रसित लोग हैं, जिनको इस धरा पर रहने का कोई अधिकार नहीं है।

राजनीति को पवित्रता की ओर ले जाने की ज़िम्मेदारी अब युवा वर्ग को आगे आकर उठानी चाहिए। उनकी जिम्मेदारी है कि वे ऐसे दुष्ट लोगों का विकल्प बने, जो मानसिक रूप से पूर्णतया अपंग हो चुके हैं। इनके विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद करिये, सत्यता और ईमानदारी का स्वर कभी ना कभी लोगों को सुनाई अवश्य देता है। हे युवा कर्णधारों भारत देश को बचाने की ज़िम्मेदारी अब तुम्हारे कंधे पर ही है, उठो और भारत निर्माण में जुट जाओ।

 

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