पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप भारत सरकार की वह महत्वपूर्ण योजना है, जिसके तहत एससी-एसटी और ओबीसी स्टूडेंट जिनके माता-पिता की वार्षिक आय ओबीसी के लिए 1 लाख तथा एससी-एसटी के लिए ढाई लाख से कम है, यदि उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं तो उनकी सारी फीस सरकार द्वारा छात्रवृत्ति के माध्यम से भरी जाती है।
इस योजना के कारण बड़े पैमाने पर दलित और पिछड़े वर्गों के स्टूडेंट उच्च शिक्षा में आ रहे थे लेकिन राज्य सरकार और भारत सरकार के इस तरीके के क्रियाकलाप से इस योजना को भारी क्षति पहुंची है, जिस वजह से योजना से लाभान्वित होने वाले स्टूडेंट्स की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है।
2016 में नीतीश सरकार ने एससी-एसटी और ओबीसी छात्रवृत्ति में की कटौती
2016 में नीतीश कुमार की सरकार ने एससी-एसटी और ओबीसी पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में छात्रवृत्ति की राशि पर अधिकतम सीमा निर्धारित करते हुए एक अधिसूचना n. 4061 date 16/05/2016 जारी किया था। इस अधिसूचना के अनुसार प्राइवेट सेक्टर में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को बीटेक के लिए अधिकतम 15,000 और डिप्लोमा के लिए अधिकतम 10,000 की छात्रवृत्ति निर्धारित की गई।
इसी तरह सरकारी सेक्टर के आईआईटी, एनआईटी तथा नैश्नल लॉ यूनिवर्सिटी इत्यादि संस्थान के स्टूडेंट्स को 75,000 अधिकतम छात्रवृत्ति की राशि निर्धारित की गई।
एसटी-एससी और ओबीसी स्टूडेंट्स जब संस्थानों में नामांकन लेने जाते हैं, तब उनसे ढाई से तीन लाख तक फीस मांगी जाती है, जिसकी पूर्ति स्कॉलरशिप की राशि के ज़रिये नहीं हो पाती है। यही वजह है कि कम स्कॉलरशिप मिलने के कारण स्टूडेंट्स को आंदोलन तक करना पड़ जाता है लेकिन नीतीश सरकार पर इसका कोई असर नहीं होता है। बिहार सरकार से बार-बार आरटीआई के ज़रिये जवाब मांगने के बावजूद भी उत्तर नहीं दिया जाता है।
लोकसभा में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने किया खुलासा
लोकसभा में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने जो आंकड़ा पेश किया है, वह नीतीश और भाजपा सरकार के इस काले कारनामे की पोल खोलती है। लोकसभा में प्रस्तुत सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप पाने वाले एससी-एसटी और ओबीसी स्टूडेंट्स की संख्या में भारी गिरावट आई है, जो निम्नलिखित हैं।
Bihar OBC PMS Benefeciary
2015-16= 3.45 Lakh
2016-17= 1.74 Lakh
2017-18= 2.35 Lakh
Bihar SC PMS Benefeciary
2015-16= 1.55 Lakh
2016-17= 0.37 Lakh
2017-18= 0.89 Lakh
पैसों के अभाव में गरीब एससी-एसटी और ओबीसी स्टूडेंट्स का नामांकन कॉलेज में नहीं हो पाता है
आपको बता दें कि नैश्नल लॉ यूनिवर्सिटी की वार्षिक फीस तो लगभग दो लाख से ऊपर है। आईआईटी की वार्षिक फीस भी लगभग उतनी ही है। एनआईटी की फीस एक-डेढ़ लाख रुपए है। इस स्थिति में यदि कोई भी गरीब परिवार का बच्चा आईआईटी कॉम्पिटिशन पास करता है, तो उसका नामांकन कैसे होगा?
स्टूडेंट्स कॉम्पिटिशन तो पास कर जाते हैं लेकिन पैसों के अभाव में उनका नामांकन कॉलेज में नहीं हो पाता है। जब छात्रवृत्ति के माध्यम से इसका पेमेंट किया जाता था, तो कॉलेज आसानी से स्टूडेंट्स को नामांकन देने की अनुमति दे देते थे।
मोदी सरकार ने 2010 के यूपीए सरकार के निर्णय को वापस लिया
पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति पर दो तरफा वार से वंचित वर्ग के स्टूडेंट्स को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ बिहार सरकार ने 2016 में अधिकतम राशि निर्धारित करके इस योजना की रीढ़ पर हमला किया, तो दूसरी तरफ स्कॉलरशिप के लिए नई गाइडलाइन 2018 के नए प्रावधानों के अनुसार मोदी सरकार ने 2010 के मनमोहन सिंह सरकार के उस निर्णय को वापस कर लिया है, जिसमें बिना किसी शिक्षण शुल्क के एससी स्टूडेंट्स को कॉलेजों में नामांकन की इजाज़त दी गई थी।
गरीबी और पैसे का आभाव जब स्टूडेंट्स को उच्च शिक्षा से वंचित कर देता है, तब सरकारी सहायता उम्मीद की एक किरण होती है। भारत सरकार की अति महत्वाकांक्षी पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप बिहार में दम तोड़ रही है। इसकी वजह है बिहार सरकार ने अनैतिक तरीके से इसमें अधिकतम राशि की सीमा निर्धारित करके छात्रवृत्ति की योजना पर प्रहार करने का काम किया है। यही कारण है कि लाभान्वित होने वाले स्टूडेंट्स की संख्या में भारी गिरावट आई है।
नीतीश सरकार के एससी-एसटी और ओबीसी छात्रवृत्ति में कटौती का दुष्प्रभाव
अब देखते हैं इसका दुष्प्रभाव कितना पड़ा है। भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2015 -16 (जब बिहार सरकार का वह निर्णय लागू नहीं हुआ था) के मुकाबले वर्ष 2016-17 (जब बिहार सरकार का निर्णय लागू हुआ था) में 50% ओबीसी स्टूडेंट्स की संख्या में गिरावट हुई, जो 1,71,000 है।
अनुसूचित जाति के मामले में 76% का गिरावट हुआ जो कि 1,18,000 है। इतने बड़े पैमाने पर स्टूडेंट्स की संख्या में गिरावट नीतीश सरकार के दलित और पिछड़ा विरोधी होने का आरोप सच साबित करता है।
- सवाल यह उठता है कि जिन लाखों स्टूडेंट्स को छात्रवृत्ति से वंचित कर दिया गया, उनका क्या गुनाह था ?
- सवाल भी उठता है कि नीतीश कुमार अपने आप को दलित और पिछड़े वर्गों का मसीहा मानते हैं, तो उनकी सरकार ने इतना बड़ा दलित और पिछड़ा विरोधी निर्णय क्यों लिया?
- सवाल यह भी है कि जब बिहार सरकार ने इतना बड़ा दलित और पिछड़ा विरोधी निर्णय लिया, तो उसका विरोध किसी भी विपक्ष के नेता ने क्यों नहीं किया? इन सभी सवालों का जवाब बिहार के सत्ताधारी और विपक्ष के नेताओं को देना चाहिए।