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“क्यों जाति विशेष का नेता होना लोकतंत्र के लिए सही नहीं है”

हार्दिक पटेल

हार्दिक पटेल

अभी कुछ दिनों से देश में एक ट्रेंड चल रहा है, जहां हर कोई अपने आप को चौकीदार कहने लगा है। दरअसल, यह ट्रेंड देश के पीएम नरेन्द्र मोदी द्वारा #MainBhiChowkidar कैंपेन की शुरुआत करने बाद और भी परवान पर है।

मोदी जी ने जब अपना अकाउंट चौकीदार के नाम से लिखा, धीरे-धीरे सभी अपना नाम बदल कर लिखने लगे। एक भेड़ चाल की शुरुआत हुई जिसमें हार्दिक पटेल जो कि अभी राजनीति में उभर रहे हैं, उन्होंने बेरोज़गार हार्दिक पटेल के नाम से अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर नाम बदल कर लिख दिया।

हमें समझने की ज़रूरत यह है कि हिन्दुस्तान में क्यों जाति के मुद्दे पर आंदोलन कर राजनीति में आने वाले नेता के लिए सत्ता की राह आसान हो जाती है। जनता का समर्थन मिलने के बाद वह नेता अपने तथाकथित मुद्दों से भटक कर उस समाज से किए गए वादों को भूल कर खुद की राजनितिक पृष्ठभूमि तैयार करने लगता है।

हाल ही में राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन हुआ था, जो कि पहले भी हो चुका है जिसमें कुछ लोग अपनी जान तक गंवा चुके हैं। गुर्जर आरक्षण के नेता थे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला। इन्होंने भाजपा और काँग्रेस दोनों के शासन काल में आंदोलन को अंजाम दिया।

जब दोनों ही मुख्य पार्टियां समाज को उनका हक दिलाने में असफल रहीं, तब किरोड़ी लाल पूर्व में भाजपा के ही टिकट से चुनाव लड़े जबकि समाज भाजपा के विपक्ष था।

अब बात हार्दिक पटेल की भी कर लेते है। खुद को गरीब, बेरोज़गार बोला और पटेल समाज के लिए गुजरात में एक बहुत बड़ा आंदोलन किया। आंदोलन ने उन्हें एक राष्ट्रीय नेता बना दिया। आज उनके पास काफी पैसा भी आ गया है। आज वह काँग्रेस में शामिल भी हैं और जामनगर से चुनाव लड़ने की इच्छा जता भी रहे हैं।

अब वह एक सामाजिक नेता से उभर कर राजनितिक नेता बन गए हैं। एक सामाजिक आंदोलन ने आज एक सामाजिक नेता को राजनीतिक नेता बना दिया है, जो कि अब खुद संसद में जाने का अवसर तलाश रहा है। इसी तरह चंद्रशेखर भी वाराणसी हॉट सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं और शायद लड़े भी।

आर्टिकल के सार को समझने की कोशिश करने पर हम पाते हैं कि आज के दौर में तमाम नेता सामाजिक मुद्दों पर राजनीति करके जनता का समर्थन लेते हुए मुख्य धारा की राजनीति से जुड़ जाते हैं। ऐसा करने से आवाम को ठेस भी पहुंचता है।

मैं किसी भी नेता और उस समाज को यहां आहत ना करते हुए सिर्फ और सिर्फ एक तस्वीर दिखाना चाह रहा हूं कि इस लोकतांत्रिक देश में ऐसा नेता ही आगे जाए जो सर्व समाज के बारे में सोच सके। किसी भी एक समाज से उठा व्यक्ति अगर उसी समाज को केंद्र में रखकर बात करेगा, तो विकास की गति भी कम होगी।

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