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कुम्भ में श्रद्धालुओं की ज़रूरत के सामान की कीमत है बच्चों का बचपन

25 करोड़ लोगों ने इस विशाल कुंभ का वैभव देखा। आम श्रद्धालुओं के साथ-साथ 3200 प्रवासी भारतीय, 71 देशों के राजनयिक, माननीय राष्ट्रपति, माननीय उपराष्ट्रपति, मॉरीशस के प्रधानमंत्री, भारत के प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट प्रमुख रूप से शामिल हुए।

500 शटल बसों का एक रूट पर एक साथ संचालन, 7000 से अधिक लोगों द्वारा हैण्ड पेंटिंग और 10 हज़ार सफाई कर्मियों द्वारा तीन सड़कों पर सफाई जैसे रिकॉर्ड गिनीज़ बुक में दर्ज कराए गए। इन सबके बीच कुंभ का एक ऐसा चेहरा भी उभरकर सामने आया जिसकी सबने अनदेखी कर दी या नियति मानकर आगे बढ़ गए।

कुंभ में सैकड़ों बच्चे अपने परिवार के साथ या खुद अकेले भी श्रद्धालुओं के लिए उपयोग में आने वाले विभिन्न प्रकार के सामान बेचते हैं या फिर देवी देवताओं का रूप धारण करके भीख मांगते फिरते हैं। संसाधनों के अभाव में जो देवी देवताओं का रूप धारण नहीं कर पाए वे गरीब अवस्था में भीख मांगते नज़र आए।

रुक्मिणी, गीता, रोहित, बबलू, मीना और रानी जैसे सैकड़ों बच्चे अपने माता-पिता के साथ कुंभ के शुरूआती दिनों से ही आ गए थे और अंत समय तक बने रहे लेकिन कुंभ की दिव्यता भरी चकाचौंध उनके लिए बेमानी रहे।

रुक्मिणी के माता-पिता अक्षय त्रिवेणी संगम पर गंगाजल भरने का डिब्बा, श्रद्धालुओं के उपयोग में आने वाले अन्य सामानों के साथ श्रृंगार का सामान बेचते हैं। 13 वर्षीय रुक्मिणी के कुल पांच भाई-बहन हैं। वे सभी कुंभ मेला परिक्षेत्र में देवी देवताओं का वेश धारण करके प्रदर्शन करके घूम-घूमकर भीख मांगते हैं जिससे एक दिन में 400 से 500 रूपए मिल जाते हैं।

फोटो साभार: Getty Images

जब भूख लगती है तो मेले में लगे चाय नाश्ते के दुकानों से चाय, आलू टिकिया, ब्रेड पकौड़ा, जैसी चीज़ें खरीद कर खा लेते हैं। चावल, दाल, रोटी बहुत मुश्किल से मिल पाता है इसलिए इन्हीं चीज़ों से भूख मिटानी पड़ती है। शाम को बड़े हनुमान मंदिर के पास परिवार के सभी लोग इकट्ठा होते हैं और वहीं मंदिर के पास ही सोते हैं।

इन बच्चों से बात करने पर पता चला कि ये चित्रकूट, मैहर जैसे धार्मिक स्थलों पर आयोजित होने वाले बड़े मेले में देवी देवताओं का रूप धारण करके भीख मांगने का काम करते हैं। मिर्ज़ापुर की 12 वर्षीय सुनीता ने बताया कि जब भीख मांगने में कमी हो जाती है तो माता-पिता गालियां तो देते ही हैं साथ ही तसली (जिसमें भीख मांगते हैं) से मार भी खाना पड़ता है।

सुनीता, सुम्मी (उम्र -10 वर्ष) और बबलू (उम्र- 8 वर्ष) अपने माता-पिता सहित कुंभ मेले में शुरुआत से ही आए हैं। उन्होंने बताया कि स्नान पर्व पर उन सभी को 10 से 12 किलो चावल और लगभग 400 से 500 रुपए मिल जाते हैं जबकि सामान्य दिनों में 150 से 200 रुपए मिल जाया करते हैं। रात में हनुमान मंदिर के पास सोते हैं लेकिन कभी-कभी वहां जगह नहीं मिलती तो यही रेत पर ही भीख मांगते-मांगते सो जाते हैं। चावल-दाल खाने का बहुत मन करता है लेकिन संगम घाट के बहुत दूर होने के कारण वे ठेले पर से ब्रेड पकौड़ा, टिकिया आदि खाकर संतोष कर लेते हैं। पूछने पर बच्चों ने बताया कि वे कभी स्कूल नहीं गए।

मीना (उम्र- 12 वर्ष) और रानी (उम्र – 11वर्ष) कभी स्कूल नहीं गई हैं लेकिन हिसाब धड़ल्ले से करती हैं। दोनों बहनें कुंभ मेले में शुरुआत के समय से ही परिवार के साथ आयीं हैं और 4 बजे सुबह से ही संगम घाट पर पहुंचकर ग्राहक के पीछे-पीछे दौड़कर फूल-माला बेचती हैं। ग्राहक जो बड़ी गाड़ियों से आते हैं वे 10 के माल का 100 रुपए भी दे देते हैं।उन्होंने बताया कि जब कम बिक्री होती है तो माता-पिता की डांट खाने को मिलती है। रात में हनुमान मंदिर के पास माता-पिता के साथ जाकर सोते हैं और माता-पिता में से कोई एक जाग कर सामान की पहरेदारी करते हैं।

रोहित के माता-पिता दोनों अलग-अलग फूल-माला और श्रृंगार के सामान का दुकान लगाते हैं। 14 वर्षीय रोहित संगम घाट पर 4 बजे सुबह से ही टोकरी में फूल-माला लेकर बेचने पहुंच जाता है। उसे फूल-माला बेचने के लिए ग्राहकों के पीछे-पीछे दूर तक भागना पड़ता है। उसने बताया कि पूरा दिन भागने-दौड़ने के बाद खाने और आराम करने का कोई साधन नहीं होता तो वे हनुमान मंदिर के पास जाकर सोते हैं।

कुंभ के महीनों के दौरान यह पूरे समय अनवरत चलता रहा जब विशेष पर्व के समय अधिक पैसों के दबाव और लालच में वे बड़ी गाड़ियों और धनी लोगों के पीछे-पीछे भागते रहे। कड़ाके की ठंड में ये बच्चे सुबह के 4 बजे से स्नान घाटों पर पहुंचकर अपने काम में यानि जिन्हें भींख मांगना हो वे भीख मांगने में और जिन्हें सामान बेचना हो वे सामान बेचने में लग जाया करते हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूरज निकलने से पूर्व स्नान और दान से पुण्य के भागी बनते हैं इसलिए सुबह अधिक श्रद्धालु आते हैं। कुंभ स्नान से अपने पाप धोकर अन्न एवं पैसों का दान करके पुण्य कमाने की मंशा लिए श्रद्धालु आगे बढ़ जाते हैं। अपने काम में लापरवाही बरतने पर इन बच्चों को माता-पिता की गालियां सुननी पड़ती हैं।

मेला प्रशासन, पुलिस सुरक्षा व्यवस्था, धार्मिक संस्थाएं, विभिन्न प्रकार की स्वयंसेवी संस्थाएं, बाल अधिकारों की पैरोकार संस्थाएं इन सबके प्रयास इन बच्चों के लिए काफी नहीं रहे क्योंकि यही स्थिति कुंभ के अंतिम दिन तक बनी रही। 45 दिनों तक पूरी दुनिया को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक यात्रा कराने वाले कुंभ के आयोजन का बजट 2012 के बजट 200 करोड़ से बढ़ाकर 12 गुना अधिक 2500 करोड़ कर किया गया था।

फोटो साभार: Getty Images

मेला परिक्षेत्र को बढ़ाकर दोगुना करने, स्वच्छ कुंभ, सुरक्षित कुंभ, सांस्कृतिक कुंभ, डिजिटल कुंभ एवं उच्च स्तरीय मीडिया प्रबंधन जैसे उद्देश्यों को लेकर योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर अंजाम देने के लिए अच्छे प्रशासनिक रिकॉर्ड वाले अधिकारियों के हाथों में कुंभ के आयोजन की कमान सौंपी गई। शहर को सुंदर और सुविधायुक्त बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्य किए गए जैसे सड़कें, फ्लाईओवर, अंडरपास, पीपापुल, पार्किंग, लाइटिंग, एयरपोर्ट टर्मिनल निर्माण, रेलवे स्टेशनों का उच्चीकरण, अस्पतालों का नवीनीकरण, पर्यटन स्थलों की सजावट, शटल बस सेवा, ई-रिक्शा सुविधा, शौचालय और चेंजिंग रूम, अत्याधुनिक और भौतिक संसाधनों से युक्त टेंट।

ज़ाहिर है इन ढेर सारे प्रयासों में एक लंबा समय भी लगा और शहर के लोगों को काफी दिक्कतों से भी जूझना पड़ा जो किसी भी निर्माण के समय आया करते हैं। इस प्रयास में सबसे पहले इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज किया गया। लेकिन क्या इन सभी प्रयासों से हम कुंभ में शामिल होने वाले उन वंचित परिवारों के बच्चों के जीवन में कोई बदलाव ला पाए? बच्चे अपने बचपन की कीमत पर कुंभ में श्रद्धालुओं की ज़रूरत के सामान बेचकर या भीख मांग कर अपना पेट पालने को विवश हैं। इन कामों में उनकी कोई रुचि नहीं थी लेकिन उन्होंने अपनी विवशता को ही अपनी रूचि बना लिया था।

पिछले कुंभ के आयोजनों के अनुभव के आधार पर बाल सुरक्षा में कार्यरत राज्य स्तरीय नेटवर्क “ महफूज़ ” द्वारा महिला एवं बाल कल्याण मंत्री सुश्री रीता बहुगुणा से भेंट में बच्चों की दुर्दशा जनक स्थिति की ओर ध्यान दिलाया गया। उन्होंने सिर्फ खोया पाया कैम्प के बारे में काफी उत्साह से बताया लेकिन भीख मांगने वाले बच्चों के मुद्दे पर विशेष रूचि नहीं दिखाई।

राज्य बाल अधिकार आयोग, चाइल्ड लाइन सहित बाल अधिकारों की पैरवी करने वाले तमाम संस्थाओं की नज़र से भी ये बच्चे अछूते रह गए। महफूज़ द्वारा समदर्शी संस्थाओं, बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए उत्तरदायी अधिकारियों के साथ आयोजित बैठकों में बताया गया कि कुम्भ परिक्षेत्र में मेला अवधि तक बच्चों के लिए आंगनबाड़ी केंद्र और प्राथमिक विद्यालय खोले जाएंगे लेकिन ये प्रयास भी बच्चों को अपने साथ जोड़ पाने में सफल नहीं रहे।

(वाराणसी के बाल अधिकार पैरोकार मंगला प्रसाद एवं विनोद की रिपोर्ट के आधार पर यह लेख लिखा गया है एवं सभी बच्चों के नाम बदले गए हैं।)

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