गिर गया है इस कदर,
राजनीति तेरा स्तर,
शब्द की मर्यादा नहीं,
ये भ्रष्ट राजनेता सभी।
देश का भी करते अपमान संग,
विकास की यहां दरकार है,
कौन समझे बस कुर्सी की तकरार है।
जनसंख्या बढ़ रही है बहुगुणा तेज़ी से,
जड़ बनी है यह सभी समस्याओं की,
सरकारी शिक्षा की बुनियाद हिली पड़ी है,
बेरोज़गारी मुंह फाड़े सुरसा सी खड़ी है।
लड़ रहे हैं लोग आज भी जाति और धर्म पर,
यही तो दुर्भाग्य देश का प्रारंभ से,
युवा देश को चाहिए क्षमता, योग्यता, रोज़गार,
शिक्षा की गुणवत्ता की सुधार,
पुराने ढर्रे का निदान,
चाहिए हमें नया भारत,
पर मुद्दे सिसक रहें कहीं दबे से,
सेंक रहें सभी अपनी रोटियां सुलगते कुर्सी के तले से।