इन दिनों भ्रष्ट नेताओं की फेहरिस्त बड़ी लंबी हो गई है। चुनाव आयोग ने प्रचार के दौरान अभद्र भाषा, सांप्रदायिक अपील और अपमानजनक टिप्पणी के लिए कई प्रमुख राजनेताओं द्वारा प्रचार पर पाबंदी भी लगाई है। ‘कैश फॉर वोट’ के उपयोग की खबरें हैं और ईसीआई द्वारा मतदाताओं को वोट देने के बदले पैसे दिए जाने की घटना का पता चलने के बाद वेल्लोर निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव रद्द कर दिया गया है।
यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनाव प्रक्रिया, जो लोकतंत्र में एक पवित्र अनुष्ठान के तौर पर है, उसे इस तरह के व्यवहार में लाया जा रहा है।कर्तव्यनिष्ठ नागरिकों को निश्चित रूप से इस तरह की घटनाओं के चलते पीड़ा महसूस होगी लेकिन मात्र नैतिक आक्रोश करने से कोई उपाय नहीं निकलेगा, जब तक कि इस आक्रोश का उपयोग कानून के माध्यम से कार्रवाई करने के लिए नहीं किया जाता।
हमारा कानून एक नागरिक को एक चुनावी फैसले को, अगर उसे भ्रष्ट आचरण के माध्यम से सुरक्षित किया गया है, चुनौती देने के लिए उपयुक्त हथियार देता है। भ्रष्ट आचरणों के आधार पर एक उम्मीदवार या एक मतदाता इलेक्शन ट्रिब्यूनल के समक्ष चुनाव याचिका दायर कर सकता है।
जब भी किसी भ्रष्ट आचरण की सूचना सामने आती है, तो उसे लिखित रूप में चुनाव आयोग के समक्ष या संबंधित पुलिस अधिकारी को प्रस्तुत किया जाना चाहिए। भ्रष्ट चुनावी आचरण को उजागर करने वाले अभिलेखों और दस्तावेजों आदि का संग्रह करना भी मूल्यवान राजनीतिक गतिविधियां हैं।
चुनाव याचिका दायर करने की प्रक्रिया और चुनौती के आधार इस प्रकार हैं –
चुनाव याचिका लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 80 में चुनाव याचिका के बारे में उल्लेख है और इसमें कहा गया है कि कोई भी निर्वाचन इस भाग के प्रावधान के अनुसार उपस्थित की गई निर्वाचन अर्जी द्वारा प्रश्नगत किए जाने के सिवाय प्रश्नगत नहीं किया जाएगा। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत चुनाव याचिका पर उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय दिया जाता है। चुनाव परिणाम की घोषणा के 45 दिनों के भीतर चुनाव याचिका किसी भी उम्मीदवार या किसी भी निर्वाचक द्वारा एक या एक से अधिक आधार पर प्रस्तुत की जा सकती है।
वहीं, याचिका में क्या-क्या चीज़ें होनी ज़रूरी है, इसकी जानकारी अधिनियम की धारा 83 में वर्णित है।
- मुख्य तथ्यों का संक्षिप्त विवरण।
- याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए भ्रष्ट आचरण के आरोप का पूर्ण विवरण।
- याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर चुनाव को शून्य घोषित करने का आधार (अधिनियम की धारा 100)
- एक चुनावी उम्मीदवार योग्य नहीं था।
- किसी भी भ्रष्ट आचरण को उपयोग में लिया गया है।
- किसी भी नामांकन को अनुचित रूप से अस्वीकार कर दिया गया है।
- चुनाव का परिणाम मुख्य रूप से प्रभावित हुआ है।
- किसी भी नामांकन की अनुचित स्वीकृति।
- अनुचित रूप से पड़े वोट, किसी भी वोट की अनुचित अस्वीकृति।
- संविधान या इस अधिनियम या इस अधिनियम के तहत बनाए गए किसी भी नियम या आदेश के प्रावधानों का पालन न करने पर भ्रष्ट आचरण को अधिनियम की धारा 123 के तहत परिभाषित किया गया है।
भ्रष्ट आचरण के बारे में चर्चा करने से पहले, यह ध्यान दिया जाना आवश्यक है कि लोकप्रतिनिधित्व कानून के तहत किसी रिटर्निंग उम्मीदवार के चुनाव पर सवाल उठाने के लिए, उम्मीदवार द्वारा स्वयं ‘भ्रष्ट आचरण’ को उपयोग में लिए जाने की आवश्यकता नहीं है। अनुभाग में प्रयुक्त भाषा बहुत प्रासंगिक है।
यह इस प्रकार शुरू होता है कि एक उम्मीदवार द्वारा या उसके एजेंट द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उम्मीदवार या उसके चुनावी एजेंट की सहमति से। इसलिए भले ही भ्रष्ट आचरण स्वयं उम्मीदवार द्वारा उपयोग में ना लिए गए हों मगर यदि यह उम्मीदवार की सहमति और सम्मति के साथ उपयोग में लिए गए हैं, तो उम्मीदवार उत्तरदायी है।
हमारे लोकतंत्र को फलने-फूलने में मदद करने के लिए यह आवश्यक है कि भ्रष्ट आचरण के प्रत्येक उदाहरण को बाहर किया जाए और उससे मज़बूती से निपटा जाए। जैसा कि कहा जाता है “शाश्वत सतर्कता स्वतंत्रता की कीमत है” इसलिए ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते सतर्क रहना और यह सुनिश्चित करना कि चुनावी उम्मीदवार संवैधानिक नैतिकता के अनुसार काम कर रहे हैं, हमारा कर्तव्य है।