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“अपने हक के लिए महिलाओं की आवाज़ पुरुषों को बेइज्ज़ती क्यों लगती है?”

महिलाएं

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यह सवाल इसलिए ज़रूरी है क्योंकि बदलते समय के साथ तकनीकी विकास को काफी बल मिला है लेकिन जिस देश में उसकी भाषा और स्त्री जाति का अपमान हो, वहां विकास सिर्फ ढकोसला बनकर रह जाता है। जब-जब स्त्री का अपमान और शोषण होता है, तब-तब धर्म का ध्वज भी शर्म से झुक जाता है।

भारत को गुलाम बनाने के लिए  मुगलों और अंग्रेज़ों ने हमारी सांस्कृतिक-सभ्यता की नींव पर हमला बोला। सुनियोजित तरीके से मूल भाषाओं और इंसानों का शोषण किया गया। जिसके कारण पुरुषों में कुंठा, शर्म और बेइज्ज़ती का भाव उत्पन्न हुआ। आलम यह हुआ कि उन्होंने अपनी माँ, बहन और बेटियों का त्याग दिया। इस वजह से अप्रत्यक्ष रूप से राक्षसों के मंसूबे पूरे हो गए, जो भारत को लूटने आए थे।

सब्ज़ी-मंडियों की तरह नारियों के शरीर का सौदा होने लगा। कायर पुरुषों ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाना, अपनी बेइज्ज़ती समझा, जिससे ना सिर्फ समय के साथ इन चीज़ों में बढ़ोतरी दर्ज़ की गई, बल्कि देह व्यापार भी व्यापक स्तर पर होने लगा। यही वजह है कि वर्तमान समय में ऐसी घटनाएं सामान्य हो गई हैं।

एक समय था जब नारी की पूजा होती थी। हर शुभ कार्य में उसकी उपस्थिति अनिवार्य और पवित्र थी मगर आज नारी की परिभाषा बदल गई है।

जब अंग्रेज़ों और मुगलों ने सरेआम महिलाओं और बालिकाओं  का चीर-हरण किया तब भी पुरुष चुप रहे क्योंकि वे मानते थे कि अब उनका सम्मान खत्म हो गया है। अब विरोध या आवाज़ उठाने का कोई फायदा नहीं क्योंकि नारी के सम्मान से ही परिवार, संबंधी और समाज का सम्मान होता है। यह बात अधर्मी लोग जानते थे इसलिए शिक्षा-व्यवस्था के साथ भारतीयों के चरित्र संस्कार पर भी उन्होंने जमकर हमला बोला।

कुछ वक्त बाद पुरूषों को अपनी कायर मानसिकता पर ग्लानि हुई  कि स्त्री को बाज़ार में बिकते हुए देखना कोई बहादुरी नहीं बल्कि घोर कायरता है। पुरूषों में जैसे ही इस भाव का जन्म हुआ, क्रांति आ गई।

स्त्रियों  को अपना खोया सम्मान और यथोचित शक्ति वापस  मिल गई। जिसका उदाहरण इतिहास के किताबों में दर्ज़ है। आज फिर भारत में भारतीयों का मुखौटा पहने अंग्रेज़ों और अधर्मियों की आत्मा है। जो दिन-रात भारत को खोखला करने में लगे हैं।

वर्तमान समय में स्त्रियों की दशा

कहने को तो हम 21वीं शताब्दी में हैं मगर हमारी सोच जानवरों जैसी हो गई है। हालांकि  सभी भारतीयों की सोच ऐसी नहीं है। यह सोच उन मुर्खों की है, जिन्होंने मनुष्य रूपी देह को ओढ़कर अंदर एक मूर्ख जानवर की आत्मा बसाकर रखी है।

आज स्त्रियों को सशक्त बनाने के लिए कई एनजीओ, संस्थानें और दुकानें खोली गई हैं जो स्त्री जाति के न्याय के लिए लड़ती है लेकिन उनको सशक्त बनाने के चक्कर में वे भूल गई हैं कि ऐसा करके वे पुरुषों के प्रति स्त्रियों के भाव को हीन कर रही हैं।

पुरुषों और महिलाओं के बीच के भेदभाव  को कम करने के लिए समाजसेवियों ने अपने प्रयासों से इसे काफी हद तक कम किया है क्योंकि भेदभाव का प्रदर्शन करने से ना केवल स्त्रियों का बल्कि पुरुषों का भी मज़ाक बनता है।

आज  स्त्रियों के मन में पुरुषों के प्रति नकारात्मक छवि बन गई है। पुरुषों को शक और हेय दृष्टि से देखा जाने लगा है। वर्तमान में कानून तो कड़े किए गए हैं जिससे अपराधों में कमी आए मगर आज कुछ महिलाएं कानून का गलत इस्तेमाल कर रही हैं। झूठे रेप, छेड़छाड़ के मुक़द्दमों से पुरुषो में भय का माहौल है क्योंकि महिलाओं द्वारा पुरुषों को ब्लैकमेल किया जा रहा है।

फोटो साभार: फेसबुक

बीते वर्षो में बढ़े अपराध को कम करने की आवश्यकता है मगर क्या कानून बना लेने से अपराधों में कमी आएगी? निर्भया केस हो या बदांयू कांड। देश की जनता ने आवाज़ उठाया जिसके कारण सरकार को इन मामलों को गंभीरता से लेना पड़ा मगर मात्र गंभीरता लेने से, अपराधियों को सज़ा देने और कठोर कानून बना लेने से  क्या वाकई अपराधों में कमी आई? अपराधों की संख्या टीवी या समाचार पत्रों में भले ही कम हो जाती है लेकिन पुलिस रिकॉर्ड में यह बढ़ती जा रही है।

अपराधों की बढ़ोतरी के मूल क्या कारण हैं?

अपराधों की बढ़ोतरी का मूल कारण अज्ञानता है लेकिन अपराध के अलग-अलग कारण भी हो सकते हैं। कुछ चिंतक इसे सर्वाइवर की गलती बताते हैं तो कुछ  इसे अपराधी की गलती। कुछ माता-पिता को दोषी मानते है तो कुछ माहौल को। सबका अपना-अपना नज़रिया होता है और उसी नज़रिये से वे अपने विचार रखते हैं लेकिन आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि कब-तक अपराधों में इज़ाफा होता रहेगा?

नारी शोषण और अपराध अपने चरम पर है। मैं तो यही सोचता हूं कि वह दौर कब बनेगा जब नारी शोषण और उनके प्रति अपराध को रोका जा सके। चाहे कोई व्यवस्था बने या ना बने मगर उन कारणों को कम करके अपराध का स्तर कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

भारत में नारी के प्रति अपराध बढ़ाने वाले तत्व  कुछ इस प्रकार हैं –

भारत में शिक्षा व्यवस्था का कमज़ोर होना

गाँवों, कस्बों और शहरों में छोटे-बड़े स्कूल खुले तो हैं मगर शिक्षा के नाम पर वहां मात्र रटाया जाता है। वैदिक शिक्षा का अभाव है और जो पाश्चत्य शिक्षा विद्यार्थियों को दी जा रही है, अगर वह सशक्त और मज़बूत होती तो आज आपराधिक मामलों में पढ़े-लिखे लोग शामिल ना होते। आज शिक्षा के क्षेत्र में अपराध या तो विद्यार्थियों द्वारा किए जा रहे हैं या आधुनिक शिक्षकों द्वारा जो ऐसी शिक्षा देते हैं।

भारत की शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि शिक्षा दो तब भी अपराध होने की सम्भावना है और ना दो तो और भी ज़्यादा सम्भावना है। ऐसे में हमें फिर से गुरुकुल पद्धति को अपनाना होगा। जिससे भारत में शिक्षा व्यवस्था सशक्त और मज़बूत हो सके।

भारत में गरीबी होना

गरीबी के कारण भी अपराध में वृद्धि होती है। गरीबी की मार जब उनके परिवार पर पड़ती है, तो वे अनैतिक काम करने को विवश हो जाते हैं। किसी को दो वक्त का भोजन नहीं जुटता तो किसी के बेटी की शादी में रुपयों की कमी। किसी के यहां बच्चे को दूध पिलाने के पैसे नहीं होते तो किसी को शिक्षा का अभाव। अगर गरीबी के उदाहरण दूं तो लेख का अंत असंभव होगा इसलिए इसे यही विराम देते हैं।

भारत में रोज़गार की कमी

आज भारत के लोगों का उठना-बैठना बाहरी देश की नकल प्रतीत होती है। भारत में पहले संपन्न परिवार होते थे। एक ही मकान, महल जिसमें सब रहा करते थे। जिससे बच्चों को काफी अनुभवी अभिभावकों द्वारा नीति, संस्कार और संयम की शिक्षा मिला करती थी मगर आज परिवार कमरे और फ्लैटों में सिमटने लगे हैं। जिसमें घर का मुखिया यानि पिता काम पर जाता है, तो आज गरीबी के कारण माताएं भी काम पर जाती हैं ताकि उनके बच्चों को बेहतर भविष्य मिल सके।

कुछ माताएं और बहनें गर्भधारण करके भी काम करने को मजबुर हैं। सिर्फ महिलाएं ही नहीं पुरुष भी परेशानियों के बावजूद घर से बाहर जाते हैं। उस स्थिति को देखकर बच्चे भी पढ़ाई छोड़कर कम उम्र में काम करने लग जाते हैं। परिणास्वरूप उन्हें नशे की लत लग जाती है क्योंकि यह फैलाया गया भ्रम है कि इससे दुःख और टेंशन खत्म होती है। नशे की लत लगते ही अपराधिक मामलों को अंजाम देना कोई आश्चर्य नहीं है।

जिन बच्चों के माता-पिता कमाने के लिए बाहर जाते हैं उनके बच्चे नौकर या पड़ोसी के भरोसे पलते हैं। जिससे बच्चे माँ की ममता, प्यार, स्नेह, दुलार, नैतिक शिक्षा और संस्कार से वंचित रह जाते हैं। नतीजतन अच्छे-खासे परिवार के बच्चे भी अपराधिक मामलों को अंजाम दे जाते है।

भारत में घरों का अव्यवस्थित माहौल

सवाल इसलिए ज़रूरी है क्योंकि बदलते समय के साथ तकनीकी विकास को काफी बल मिला है लेकिन जिस देश में उसकी भाषा और स्त्री जाति का अपमान हो, वहां विकास सिर्फ ढकोसला बनकर रह जाता है। जब-जब स्त्री का अपमान और शोषण होता है, तब धर्म का ध्वज भी शर्म से झुक जाता है।

भारत को गुलाम बनाने के लिए मुगलों और अंग्रेज़ों ने हमारी सांस्कृतिक-सभ्यता की नींव पर हमला बोला। सुनियोजित तरीके से मूल भाषाओं और इंसानों का शोषण किया गया। जिसके कारण पुरुषों में कुंठा, शर्म और बेइज्ज़ती का भाव उत्पन्न हुआ। जिसके कारण उन्होंने अपनी माँ, बहन और बेटियों को त्याग दिया, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से राक्षसों के मंसूबे पूरे हो गए जो भारत को लूटने आए थे।

आग में घी डालने का काम

आजकल टीवी सीरियल और फिल्मों में अश्लील और अपराधिक धारावाहिक बढ़ गए हैं, जिनका उद्देश्य अपराध को कम करना होता है मगर कई अपराधियों ने यह माना कि उन्हें अपराधिक विचार फिल्मों और धारावाहिकों से मिला। साथ ही टीवी और फिल्मों में जब कानून का गलत इस्तेमाल करके अपराधी आसानी से छुट जाते हैं, तो उनके हौसले भी बुलंद हो जाते हैं।

भारत में समाज का माहौल

भारत में समाज का माहौल दयनीय और चिंताजनक है, जिसे मैनपुरी की घटना ने साबित भी कर दिया है जिसमें एक दंपति, दो युवकों से रास्ता पूछ रहे थे और उसी बीच उन युवकों  ने महिला के पति से बदतमीज़ी से बात की और जब बात बढ़ गई, तब दोनों युवकों ने अपनी मर्यादा लांघते हुए बेहरमी से उन्हें पीटने लगे। यह कृत्य इतना गंभीर और शर्मनाक है जिसे परिभाषित करना मुश्किल है।

अपराधिक गतिविधियों को किसी पार्टी का श्रेय देना गलत है। हालांकि यह ज़रूर देखा गया था कि उत्तरप्रदेश में मुलायम-अखिलेश सरकार में अपराधिक गतिविधियां बढ़ गई थीं, जिसमें रक्षक की भूमिका में कुछ नेता और पुलिसकर्मी भी शामिल हैं।

मैं जनता से यह सवाल पूछता हूं कि वे ऐसी सरकार का समर्थन क्यों करते हैं, जो राज्य संभाल नहीं सकते। समाज का माहौल नशेड़ियों का हो गया है। जिसे देखो धुम्रपान या फिर गुटखा थूकते हुए पाया जाता है। आदर्श समाज लुप्त होता जा रहा है।

समाज का निर्माण परिवार से होता है और परिवार हम सब से। यदि समाज में परिवर्तन चाहते हैं तो हमें खुद को भी बदलना होगा। जैसा परिवर्तन हम समाज से चाहते हैं, वैसा परिवर्तन खुद में लाना होगा।

अक्सर देखा गया है कि महिलाओं के प्रति अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने में समाज बढ़-चढ़कर भाग लेता है क्योंकि स्त्रियों से सहानुभूति उसे हमेशा से रही है मगर आज नारी शोषण के साथ यह भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि कई दफा महिलाओं द्वारा पुरुषों के शोषण की खबरें भी आती हैं। जैसे- बेवजह इव-टीज़िंग के आरोप में पिटवा देना और झूठे आरोप में फंसा देना। ऐसे में उनका भविष्य और करियर दोनों ही लगभग बर्बाद हो जाता है।

अश्लील गाने, पोस्टर और फिल्म सरेआम बाज़ार में बिक रहे हैं और ये लोगों में अपराधिक प्रवृति को जन्म देते हैं। बेटी-बचाओ और बेटी पढ़ाओ के नारे तो लिए जाते हैं मगर बेटा-बेटी को संस्कारवान बनाओ, चरित्रवान बनाओ का नारा कब लिया जाएगा?

एक-तरफ तो सरकार और कलाकार नशा, अपराध को कम करने की मुहीम चलाते है तो दूसरी तरफ इन नशीले पदार्थो पर छुट दी जाती है। विभिन्न तरीकों से  अपराध और नशा को बढ़ावा देने वाले विचार सुझाये जाते हैं।

फोटो साभार: फेसबुक

इस लेख को पढ़कर आप खुद तय कीजिये कि अपराध को जन्म कौन दे रहा है? जनता को चाहिए कि एकजुट होकर इसका पर्दाफाश करे और अपराधिक तत्वों को फैलने से रोके। जब तक जनता इन चीज़ों को नहीं समझेगी तब तक अपराध नहीं रुकेंगे। अगर अपराधों को वाकई नारी के प्रति या पुरुषों के प्रति कम करना है तो पुरुष और स्त्री दोनों को अपना महत्व समझना होगा।

महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के लिए आदर्श स्थापित करें क्योंकि इतिहस गवाह है महिलाओं का सरंक्षण और विकास किसी कानून से नहीं बल्कि सभी के विवेक,संयम और बुद्धिमत्ता से हुआ है।

पुरुष हो या स्त्री, बच्चे हो या बूढ़े अगर अपराध को खत्म करना है तो उन्हें अपने क्षेत्र में अपने स्तर पर एक चर्चा करने की ज़रूरत है, जिससे अपराधिक मामलों को कम करने पर सबके विचार आ सके। भले ही इस चर्चा को कराना  मुश्किल है लेकिन जब शर्म और संकोच के भय को त्यागकर समाज आगे आएगा तो समाधान भी पता चल जाएगा।

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