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दंगे फैलाने वाले फेक न्यूज़ से इस तरह बचे

फेक न्यूज़ यानी झूठी खबरें। हालांकि इसमें समझने जैसा कुछ नहीं है लेकिन इसका उद्देश्य समझना बहुत ज़रूरी है। फेक न्यूज़ या झूठी खबरों के ज़रिए कई राजनीतिक संगठन, आपका फायदा उठा सकते हैं। वे आपको दंगों के लिए भड़का सकते हैं, वे आपको गलत आंकड़ें पेश करके गुमराह कर सकते हैं और अंततः वे आपको एक भीड़ बनाकर छोड़ सकते हैं। पिछले कुछ सालों में फेक समाचारों का सिलसिला अपने भारत देश पर हावी हो चुका है।

फोटो सोर्स- pexels.com

मीडिया, जनतंत्र का चौथा स्तंभ जो अब लड़खड़ाने लगा है-

जनतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाने वाला मीडिया, आज अपने आपको स्वतंत्र महसूस नहीं कर पा रहा है। फेक समाचारों की वजह से पिछले कुछ सालों में देश में मॉब लिंचिंग के आरोप भी बढ़ गए हैं। 2018 में हमारा देश ‘वर्ल्ड प्रेस मीडिया‘ द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में स्वतंत्र मीडिया के विश्लेषण में 180 देशों के बीच 138वां स्थान हासिल कर पाया है।

इसके अलावा अगर हम सोशल मीडिया पर फैल रही झूठी खबरों की बात करें, तो शायद हमारा देश सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ फैलाने के लिए नंबर वन देश का दर्जा प्राप्त कर सकता है।

मीडिया की अहमियत-

हमारे देश का जनतंत्र विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है और आज इस जनतंत्र का चौथा स्तंभ यानी कि मीडिया स्वतंत्र नहीं है और खतरे में है। हम मीडिया को जनतंत्र का चौथा स्तंभ क्यों मानते हैं? आखिर मीडिया जनतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में कितनी अहमियत रखता है? हम सभी को सबसे पहले मीडिया की अहमियत समझनी चाहिए। हम अपने मतों का इस्तेमाल करके अपना जनप्रतिनिधि चुनकर संसद में भेजते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह हमारे द्वारा की गई उम्मीदों को और हमारी ज़रूरतों को समझेगा तथा उनके लिए कुछ कार्य करेगा।

लेकिन जब हमें इसका उल्टा परिणाम मिलता है, तो हम इस स्थिति में नहीं होते कि अपने जनप्रतिनिधि से सवाल कर सके और पूछ सके कि अखिर हमारे हकों और अधिकारों से हम वंचित क्यों रह गए? तब उस आवाज़ को उठाने के लिए मीडिया हमारे काम आता है।

ज़िम्मेदार मीडिया की जगह ले रहा है फेक न्यूज़-

मीडिया हमारे द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों से सवाल करता है और हमारे हक की लड़ाई के लिए लड़ता है लेकिन आज देश के मीडिया का माहौल एकदम उल्टा है। आज हम क्या, अपितु कुछ पत्रकारों की आवाज़ को भी मीडिया का समर्थन नहीं मिल रहा है। उनकी आवाज़ को भी दबाया जा रहा है।

फेक न्यूज़ इतना अहम मुद्दा क्यों है, इसका अंदाज़ा आप इससे लगा सकते हैं कि जनवरी 2017 से जुलाई 2018 के बीच अपने देश में मॉब लिंचिंग जैसी 69 घटनाएं हुई हैं, जिसमें 33 लोगों की मौत हुई।

यह आंकड़ें बहुत हैरान करने वाले हैं, जिनमें की ज़्यादातर वारदातें बच्चों के अपहरण या बच्चा चोरी गिरोह की अफवाहों से संबंधित हैं।

फेक न्यूज़ पर भारतीय कानून व्यवस्था की उदासीनता-

हालांकि, दुख की बात यह है कि भारत सरकार फेक न्यूज़ फैलाने वालों के लिए अब तक कोई ठोस कानून नहीं बना पाई है। व्हाट्सऐप्प ने इसके मद्देनज़र अपने ऐप में मैसेज फॉरवर्ड करने के लिए एक लिमिट तय की है, साथ ही किसी और से आए हुए मैसेज को आगे भेजने पर फॉरवर्ड का टैग लगाने का नया अपडेट भी दिया है।

ये फीचर व्हाट्सऐप्प ने हमारे देश में तेज़ी से बढ़ रहे फेक न्यूज़ के आतंक से निपटारे के लिए ही जारी किया है। साथ ही फेसबुक ने भी इसके तहत ज़रूरी कदम उठाने की बात कही है।

राष्ट्रवाद का नया हथियार फेक न्यूज़-

BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में जागते राष्ट्रवाद को फेक समाचार फैलाने के लिए ढाल की तरह उपयोग किया जा रहा है, जो कि लोगों को फेक न्यूज़ फैलाने के लिए प्रेरित कर रहा है। लोगों में डिज़िटल शिक्षा का ना होना इसका एक प्रमुख कारण बनकर सामने आ रहा है। यहां पर आपके साथ फेक न्यूज़ से संबंधित कुछ साक्ष्य साझा कर रहे हैं, जिसे एक बार में देखकर आप इसकी सत्यता की परख नहीं कर पाएंगे।

पहली फोटो में इसमें रिपब्लिक टीवी नाम के एक ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट की फोटो डाली गई है और इस बार राणा अयूब नाम की पत्रकार इसका शिकार बनी। क्योंकि रिपब्लिक टीवी एक मीडिया चैनल है, इसलिए लोग इस इस ट्वीट को सच मानकर इस झूठी खबर को धड़ल्ले से शेयर करने लगे। असलियत में यह ट्विटर हैंडल एक फेक पैरोडी अकाउंट है।

इसी प्रकार दूसरे साक्ष्य में एक “हिंदुस्तान सपोर्ट मोदी” नाम के पेज ने रवीश कुमार को निशाना बनाते हुए, उनके खिलाफ फेक न्यूज़ फैलाई थी। इस पोस्टरनुमा ट्रोल में यह लिखा है कि रवीश कुमार ऐसा कहते हैं, “14 लेन का हाईवे बनने से चोरी बढ़ेगी, हज़ारों पेड़ काटे जाएंगे और प्रदूषण बढ़ेगा”। साथ ही नीचे छोटे अक्षरों में लिखा है, “यह पत्रकार के नाम पर कलंक हैं। देश में कुछ काम हो या ना हो इन्हें आलोचना करनी ही करनी है।” खैर, यह भी एक फेक न्यूज़ है।

इंटरनेट पर फेक न्यूज़ ढूंढने निकलेंगे तो फेक न्यूज़ का एक बहुत विशाल सागर आपके सामने होगा। इस चीज़ से बचने और सतर्कता बरतने के लिए हमे फैक्ट चेकिंग वेबसाइट का सहारा लेना होगा। इंटरनेट पर आज के वक्त में कई सारी ऐसी वेबसाइट उपलब्ध हैं, जो कि अफवाह और झूठे समाचारों का सच दिखा रही हैं। मैं आपसे आशा करूंगा कि अब से आप किसी भी समाचार की सत्यता की जांच करने के बाद ही वह खबर किसी को बताएंगे।

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