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विकास के लिए तरस रहा था यूपी का यह गाँव, अब आई सरकारी योजनाओं में तेजी

वाराणसी का गाँव

वाराणसी का गाँव

28 फरवरी 2019 को तकरीबन 12 बजे हम सारे रिसर्च फेलो विनती, मधु, अनु, गंगा, साबिन और ऋषभ वाराणसी के हरहुआ ब्लॉक के नर्सिंगभानपुर चमार बस्ती गए। यह सहकार्य प्रोजेक्ट के अंतर्गत मानवाधिकार जन निगरानी समिति और इन्सेक के संयुक्त सहयोग में नोरेक, नॉर्वे की सहायता से 10 महीने का एक्सचेंज कार्यक्रम है।

यह गाँव पी.वी.सी.एच.आर. केंद्रीय कार्यालय से 30 कि.मी. दूरी पर नर्सिंगभानपुर से सात कि.मी. अंदर सड़क के किनारे स्थित है। इस गाँव में एक लंबी नहर बनी हुई है और यह गाँव सरसों, गेहूं, गन्ना से लहलहाता है। गाँव जाने के बाद हम पी.वी.सी.एच.आर. के कार्यकर्ता बृजेश, प्रतिमा, और सुभाष से मिले।

दलित बस्ती में सराहनीय काम

इसके बाद पी.वी.सी.एच.आर. मानवाधिकार जन निगरानी समिति के कार्यकर्ता बृजेश ने बताया कि पी.वी.सी.एच.आर. इस गाँव के 6 दलित टोलों में 1650 लोगों की जनसंख्या के बीच अक्टूबर 2015 से क्राई के सहयोग से माँ और बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर काम कर रही है।

इसमें शून्य से पांच वर्ष के बच्चों का टीकाकरण, स्तनपान, पोषण, महिलाओं के गर्भावस्था से लेकर बच्चें पैदा होने तक की देख-भाल और शिशु जन्म प्रमाण पत्र, मातृ स्वास्थ्य देख-रेख और किशोरियों के स्वास्थ्य और पोषण को लेकर कार्य होते आ रहे हैं।

आत्मनिर्भर हैं ग्रामीण

इसके बाद एक बैठक हुई जिसमें 20 महिलाएं उपस्थित हुईं। ममता देवी ने बताया कि यहां की सभी महिलाएं खेतों में और पुरुष ईंट-भट्ठी में काम करते हैं। यहां आंगनबाड़ी केन्द्र नहीं होने के कारण शून्य से पांच वर्ष के 53 बच्चे व गर्भवती महिलाएं आंगनबाड़ी की सभी सुविधाओं से वंचित हैं।

जब पी.वी.सी.एच.आर. काम नहीं करती थी, तब कुछ गर्भवती महिलाएं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पुआरी कला में पैदल जाकर अपना प्रसव करवाती थीं और प्रसव के दिन ही पैदल फिर घर चली आती थी, जो बस्ती से 2 कि.मी. दूर पड़ता है। अभी भी एम्बुलेंस नहीं आती है जिससे बहुत दिक्कत होती है।

एक कार्यक्रम में भाग लेती महिलाएं।

वहीं, बीड़ा देवी ने बताया कि मानवाधिकार के लोगों के आने और काम करने से बहुत बदलाव आया है। प्रसव के लिए लोग प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र जाने लगे हैं लेकिन स्वास्थ्य केन्द्र में नर्स की लापरवाही के कारण मेरी देवरानी और एक महिला की मौत हो जाने से लोग अस्पताल जाने से अभी भी घबराते हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि उनसे सरकारी अस्पतालों में भी पैसा लिया जाता है। जब मानवाधिकार जन-निगरानी समिति के लोग साथ में जाते हैं तब पैसे नहीं लेते हैं।

सुनीता देवी ने बताया कि पहले मातृ शिशु स्वास्थ्य कार्ड बनवाने में पैसा लिया जाता था लेकिन अब नहीं लिया जाता है। आयरन की गोलियां मिलने लगी हैं। बच्चों का टीकाकरण होने लगा, आवास मिला, शौचालय बन गए हैं।

सभी की बातें सुनने के बाद हम लोगों ने उन्हें साफ-सफाई और संक्रमित, असंक्रमित होने वाले, चेचक, डायरिया, हैजा, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों के होने के कारण व रोकथाम के बारे में बताया। गाँव के लोग काफी खुश थे। इनकी चुप्पी टूटी है। सभी महिलाएं खुल कर बोल रही थीं, जिसे देखकर काफी अच्छा लगा कि लोग जानने के लिए कितने इच्छुक हैं।

इसके बाद एक ऐसी घटना की दर्द भरी कहानी सुनी कि यकीन नहीं हो रहा था। घटना यह थी कि दो साल की बच्ची के साथ 45 वर्ष के मर्द ने बलात्कार किया था।

हम उस परिवार से मिले। वे काफी परेशान थे। हम लोगों ने उनसे कहा कि हिम्मत ना हारें और आगे की लड़ाई लड़ें। पी.वी.सी.एच.आर. के कार्यकर्ता बृजेष, प्रतिमा और सुभाष ने उनसे कहा कि वे उनके साथ हैं। हमें बताया गया कि अभी आरोपी जेल में है और आगे की कानूनी कार्रवाई चल रही है।

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