देश के बेहतर संस्थानों में शुमार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में 2 अप्रैल की शाम को कुछ बाइक सवार लोगों ने MCA के एक छात्र गौरव को हॉस्टल के ही पास गोलियों से छलनी कर दिया, जिसे ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया लेकिन रात तक उसकी मौत हो गयी। इस घटना ने एक बार फिर विश्वविद्यालय की गरिमा को धूमिल किया है।
क्या मामला सिर्फ ये है कि एक छात्र को सरेराह, परिसर में गोलियों से लहूलुहान कर दिया गया? या ये कि करोड़ो से पोषित विश्वविद्यालय सुरक्षा तंत्र फिर से नाकाम साबित हुआ?
नहीं….ये महज एक मौत नही है, ये दृश्य जो कल हम सबने देखा, ये कहानी है ‘मानवीयता’ के पतन की।
जहां एक ओर कल मिजोरम में एक बच्चे की साइकिल से गलती से एक चूजा दब जाने पर वो सबकुछ छोड़ कर उसे हॉस्पिटल लेकर जाता है और अपने सारे पैसे लेकर, उस चूजे का इलाज कराने डॉक्टर के सामने खड़ा हो जाता है…
वहीं दूसरी ओर कुछ शिक्षित लोग बिना ये सोचे कि उनके इस घृणित व्यवहार से ना जाने कितनी जिंदगियां प्रभावित हो जाएंगी, अपने ही जैसे एक छात्र को गोलियों से भून देते हैं…
कितना हृदय विदारक दृश्य होगा वो जब चंद पलों के लिए कुछ लोगों की इंसानियत ने आत्मसमर्पण कर दिया होगा और भीतर का शैतान जगा होगा जिसने कुछ ऐसा किया जिसने पूरे विश्वविद्यालय की गरिमा को झकझोर दिया है।
सवाल ये उठता है कि क्या शिक्षा का मानवीयता से कोई संबंध है या नहीं? अगर नहीं, तो आखिर ऐसी शिक्षा का क्या मतलब?
गुजरात में एक प्रोफेसर का अपनी अंधी मां को छत से फेंक देना, मुम्बई में एक मां का जिसका बेटा विदेश में रहता था, फ्लैट में मर कर सड़ जाना, मनोविज्ञान के एक अस्सिटेंट प्रोफेसर का छत से कूद जाना… ऐसे न जाने कितने मामले हैं जो ये साबित करते हैं कि शिक्षा में अपना परचम लहराने वाला विश्व, मानवीयता भूलती जा रही है, जो विश्व के सम्मुख एक विचारणीय संकट है।