रायबरेली के सत्यनगर निवासी रिटायर्ड इंस्पेक्टर रामनरेश सिंह के घर का बिल एकदम से तीस हज़ार रुपए आया तो घर वाले सन्न रह गए। डेढ़ साल पहले भी उनके घर का बिल बढ़ा हुआ आया था, जिस पर खूब दौड़-भाग करनी पड़ी तब कहीं जाकर उसमें कुछ सुधार हुआ।
इस बार जब बिल को ठीक कराने के लिए बिजली विभाग से संपर्क किया गया तो महीनों विभाग के कान पर जूं तक नहीं रेंगी और जब रेंगी तो एक चेक मीटर लगा दिया गया, जिसे उतारने कोई नहीं आ रहा था।
इस समस्या के लिए जनसुनवाई पोर्टल की मदद ली गई। जब बात जनसुनवाई पोर्टल पर पहुंची तो विभाग के घूस लेने-देने के रास्ते बंद हो गए। इससे नाराज़ होकर एसडीओ अमित कुमार श्रीवास्तव ने गलत रिपोर्ट बनाते हुए यह लिख दिया कि उपभोक्ता चेक मीटर उतारने नहीं दे रहा है। इसकी वापस शिकायत की गई तो वह उपभोक्ता ‘रामनरेश सिंह’ को फोन पर धमकाते हुए गंभीर नतीजे भुगतने की बात करने लगे।
मामला यह है कि रायबरेली का बिजली विभाग ऐसे मामलों को ले-देकर दबाने में विश्वास रखता है। ऐसे में कुछ भी मिलने की संभावना खत्म होने पर एसडीओ अमित कुमार श्रीवास्तव का गुस्सा होना स्वाभाविक लगता है। उपभोक्ता की तरफ से जिलाधिकारी को भी लिखित अपील की गई। इसका असर यह हुआ कि चेक मीटर तो उतर गया लेकिन बिल सही नहीं किया गया।
लगातार शिकायत करने के बावजूद बिल बढ़ता ही रहा। इस बीच एसडीओ साहब ने यह रिपोर्ट लिख दी कि उपभोक्ता ने मीटर से छेड़छाड़ की है और जुर्माने के 2,55,000 रुपए का बिल भी ठोंक दिया।
जिस घर में कुल तीन कमरे हैं, कम खपत वाले उपकरण लगे हैं और पुराने बिल 80 -90 रुपए से लेकर 300 रूपए तक आए हैं, वहां मीटर से टैम्परिंग करना किसके लिए फायदेमंद होगा?
बहरहाल, ऊर्जा मंत्री को ट्वीट करने के बाद एसडीओ अमित कुमार श्रीवास्तव मीटर चेक करने वापस गए थे लेकिन अभी भी वह रट लगाए बैठे थे कि जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत क्यों की गई। अगर वह पहली बार में ही बिल सही कर देते तो इतने ऊपर तक शिकायत करने की नौबत नहीं आती।
मामला अभी भी लटकाया जा रहा है। बिल 97000 रुपए पहुंच चुका है। यह कुछ ऐसा ही है जैसे कहीं बिजली ऑफिस की जानकारी में कटिया डाल के काम चलता है या घर का कनेक्शन लेकर फैक्ट्री का काम होता है। अंतर सिर्फ इतना है कि यहां कोई चोरी नहीं की गई है और यहां घूस तो मिलने से रही।
कहानी दो: 3 लोगों का आया 80000 का बिल
दो साल पहले की बात है। रायबरेली के एक परिचित का बिजली का बिल एकदम से 36000 रूपए आ गया। घर में एक कमरा और रहने वाले तीन प्राणी थे। वह खूब परेशान हुए, खूब दौड़ लगाई मगर कुछ नहीं हुआ। तमाम दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते महीनों बीत गए।
बिल बढ़ कर 70 -80000 रुपए के बीच हो चुका था। उन्होंने खूब दौड़ लगाई मगर कुछ नहीं हुआ। एक दिन ऑफिस में उन्होंने कहा, “इतनी तो मेरी कमाई भी नहीं है जितना बिल आ रहा है। मर कर भी नहीं भर पाएंगे।” विभाग के किसी अफसर ने कहा “जमा कर दो, एडजस्ट हो जाएगा।” भविष्य का बिजली का बिल जमा करने का प्रावधान कब से शुरू हो गया?
आज उनकी और उनके बिल की क्या स्थिति है यह मुझे ठीक-ठीक नहीं पता लेकिन उनसे जब मिला था तो उत्तर प्रदेश के सरकारी विभाग का चेहरा मुझे काफी वीभत्स लगा था।
कहानी तीन: रिश्वत देकर मामला निपटाया गया
एक परिचित हैं रायबरेली के। मध्यम वर्ग से हैं और खुद का छोटा-मोटा व्यवसाय करके घर चलाते हैं। कुछ समय पहले ही अपना मकान बनवाकर फुर्सत पाए थे कि बिजली विभाग ने बढ़ा हुआ बिल थमा दिया। उनको समझ में नहीं आया तो जो भी परिचित लोग मिले उनके माध्यम से मामले को निपटाने में लग गए। इतना घबरा गए थे कि कुछ ले देकर भी मामला निपटाने के लिए तैयार थे।
अब किसी विभाग के किसी कर्मचारी ने सलाह दी कि यह लगवा लीजिए, बिल बढ़कर कभी नहीं आएगा। उन्होंने अंदर की बात मानते हुए लगवा लिया। एक दिन अचानक बिजली विभाग के कुछ लोग आ धमके और लंबा चौड़ा जुर्माना ठोंकने और कनेक्शन काटने की बात करने लगे। उन्होंने किसी तरह खुद को संभाला और तुरंत बात ना बिगड़े इसलिए ऑफिस जाकर बात करने का अनुरोध किया। अंततः 25-30000 देकर मामला निपटाया गया।
मैं जब पिछली बार अपने घर का बिजली का बिल सही करवाने गया था तो एक कर्मचारी ने कहा था कि जैसे सब्ज़ी वाले और कबाड़ी वाले का तराज़ू थोड़ा कम-ज़्यादा तौल देता है, वैसा ही हो गया होगा। यह कह कर मेरी एप्लीकेशन लेने से मना कर दिया गया।
जब अगली बार एक परिचित के साथ गया तो रायबरेली के मधुबन मार्किट के बिजली विभाग के कर्मचारी ने यह मानने से इनकार कर दिया था कि मैं उससे पहले कभी मिलने आया था। जब मैंने उन्हें यह याद दिलाया कि कौन कहां बैठता है, तब आंखें छुपाते हुए लीपापोती करने लगे थे। उस बार भी जनसुनवाई पोर्टल पर गलत रिपोर्ट लगा दी गई थी।