12 मार्च 1930 की तारीख, देश अंग्रेज़ों के दमन से मजबूरी और बदहाली में जी रहा था, या यूं कहें कि भारत स्वतंत्रता प्राप्ति के उस पथ पर अग्रसर था, जिसमें थी एक व्यक्ति की जिज्ञासा। उस व्यक्ति ने अंग्रेज़ों की दमनकारी नीतियों के विरूद्ध जाकर, उनको घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।
डांडी मार्च और देश की राजनीति में गांधी जी का उदय-
डांडी मार्च गांधी जी की राजनैतिक यात्रा का वह पड़ाव था, जो अपने चरम पर पहुंचने के लिए व्याकुल था। यह गांधी जी की वह अभिलाषा थी, जो इस यात्रा में छिपी थी। ऐसी अप्रतिम सोच ने देशवासियों को स्वावलम्बी बनने के लिए प्रेरित किया। यह देश के इतिहास का वह दौर था, जो कि कदम-कदम पर कठिनाइयों से भरा था। उसी दौर में सविनय अवज्ञा का बीजारोपन हुआ, जिसका मुख्य कारण था अंग्रेज़ों द्वारा भारतीयों की मांगों को अनदेखा करना।
फरवरी 1930 के कॉंग्रेस अधिवेशन में लिया गया था फैसला-
फरवरी 1930 में साबरमती आश्रम पर कॉंग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में ग्यारह सूत्री मांगों पर बल दिया गया। गांधी जी ने इस ग्यारह सूत्री मांग को वायसराय इरविन के समक्ष पेश किया। इरविन ने इन मांगों को नज़रंदाज़ कर दिया, इसके बाद गांधी जी ने स्पष्ट किया कि ऐसी सतत शोषण करने वाली व्यवस्था ने भारत में रहने वाले दीनहीन लोगों को दरिद्र बना दिया है। ऐसी सरकार भारत के लिए अभिशाप मात्र है।
इसके बाद गांधी जी ने साबरमती आश्रम से 78 स्वयंसेवकों के साथ, 12 मार्च 1930 को डांडी के लिए प्रस्थान किया। लगभग 241 मील (358 किमी) की इस यात्रा में 24 दिन लगे। 6 अप्रैल को गांधी जी ने मुट्ठी भर नमक उठाकर “नमक कानून” तोड़कर सविनय अवज्ञा आंदोलन का श्री गणेश किया।
गांधी जी ने कहा,
मेरा जन्म ब्रिटिश सरकार का नाश करने के लिए हुआ है, मैं कौवे की मौत मरूं या कुत्ते की लेकिन बिना स्वराज्य लिए आश्रम में कदम नहीं रखूंगा।
गांधी जी की अहिंसा नीति का देशभर के नेताओं ने माना था लोहा-
गांधी जी के इस सफल आंदोलन ने, जो कि एक जन आंदोलन बन गया था तथा जिसमें अहिंसा भी एक उद्देश्य था, ऐसे अहिंसक आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत को जड़ से हिला दिया। इस आंदोलन को सफल बनाने में सहयोग देने का श्रेय सरदार पटेल को भी जाता है, जिनकी कुशल रणनीति के आगे यह अहिंसक यात्रा पूर्ण हुई।
सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी की इस यात्रा के बारे में लिखा,
गांधी जी की डांडी मार्च की तुलना, एल्वा से लौटने पर नेपोलियन के पेरिस मार्च और सत्ता प्राप्त करने के लिए मुसोलिनी के रोम मार्च से की जा सकती है।
इस यात्रा का अहिंसक रूप से सफल होना अंग्रेज़ों के मुंह पर एक ज़ोरदार तमाचा था।
सविनय अवज्ञा की गूंज विदेशों में भी हुई-
सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रभाव पूरे भारत में था, जिसमें हम मुख्य रूप से बताना चाहेंगे ‘धरासना’ के बारे में। बंबई में इस आंदोलन का केंद्र धरासना ही था, जिसमें सरोजिनी नायडू और मणिलाल के नेतृत्व में 25000 स्वंयसेवकों को धरासना नमक कारखाने पर धावा बोलने से पूर्व खूब पीटा गया। अमेरिका के “न्यू फ्री मैन” अखबार ने लिखा कि दमन का वैसा दृश्य जैसा आज तक ना हुआ होगा, जिसमें गली कूचे लाशों से पट गये थे।
हमारे आंदोलन, हमें एक गौरवशाली संघर्ष के बारे में बताते हैं कि कैसे उन तमाम कठिन परिस्थितियों में हमने स्वतंत्रता का तिलक अपने माथे पर लगाया? ऐसे गौरवशाली आंदोलन को आप भी पढ़िए और अपने मौलिक कर्तव्यों को निभाइए।