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“कॉलेज के लिए निकलती हूं तो कोई नंबर मांगता है, तो कोई गंदे कमेन्ट्स पास करता है”

लड़की को परेशान करते लोग

लड़की को परेशान करते लोग

अक्सर हमारा समाज “आधी आबादी” की आज़ादी और उनके अधिकारों की रक्षा की बात करता है। उन्हें बराबरी का हक दिलाना चाहता है लेकिन फिर भी आपराधिक घटनाएं हो ही जाती हैं।

महिलाओं के सम्मान और अधिकारों पर चर्चा होना बिल्कुल जायज़ है मगर महिलाओं के अधिकारों पर सिर्फ पुरुष वर्ग ही चर्चा करे, यह अजीब लगता है। ज़्यादातर कार्यक्रमों में पुरुष बहुलता होती है और स्त्रियों की संख्या बेहद कम होती है।

ज़िंदगी के अहम फैसलों में स्त्रियों की भूमिका नदारद

हमारे देश ने बहुत तरक्की हासिल की है मगर स्त्रियों के प्रति सोच आज भी पुराने समय जैसी है। आज भी एसी कमरों में बैठे पिताजी बिना बेटी की सहमति के ही शादी के फैसले कर रहे होते हैं। कितना अजीब लगता है, अपनी ज़िंदगी से जुड़े अहम फैसले में वह लड़की ही ना शामिल रहे।

समाज की समझ का अंदाज़ा लगाना बेहद मुश्किल है। जिस समाज को रील लाइफ में लव स्टोरी वाली फिल्में पसंद हैं, उसे ही रियल लाइफ लव स्टोरी से चिढ़ होती है।

क्या कम कपड़ों के कारण होती हैं रेप जैसी घटनाएं?

कुछ लोगों को लगता है कि कम कपड़े पहनने के कारण लड़कियों के साथ रेप की घटनाएं होती हैं। ऐसे लोगों से मेरा सवाल यह है कि क्या 5-6 साल की लड़की को भी घूंघट और बुर्के में रखा जाए? क्या गारंटी है कि लोगों की गंदी भावना बदल जाएगी।

मैं खुद एक लड़की हूं। कॉलेज के लिए निकलते ही कुछ सीसीटीवी टाइप आखें मुझे घूरने लगती हैं। टैक्सी पर बैठते ही बगल बैठा इंसान मोबाइल डिस्प्ले पर अपना नंबर दिखाने लगता है। पीछे से भी गंदे कमेंट्स पास किए जाते हैं।

ऐसा सिर्फ मेरे साथ ही नहीं बल्कि देश की अन्य लड़कियों के साथ भी रोज़ होता है। धीरे-धीरे इन चीज़ों की आदत हो जाती है और सबकुछ सामान्य लगने लगता है।

सेक्स एजुकेशन एक मात्र विकल्प नहीं

सिर्फ सेक्स एजुकेशन पर बात कर लेने से या लागू कर देने मात्र से ही महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध कम नहीं हो जाते। इस समस्या में कमी लाने के लिए युवाओं के अंदर बौद्धिक विकास होना ज़रूरी है, जो शिक्षा के ज़रिये ही संभव है क्योंकि सेक्स एजुकेशन एक मात्र विकल्प नहीं हो सकता।

अपनी शक्ति पहचानने की ज़रूरत

हर तरफ से महिलाओं को नकारा जा रहा है। कभी उनके अधिकारों को लेकर तो कभी मिलने वाले सम्मान को लेकर। भला हो सानिया मिर्ज़ा, पीवी सिंधु, साइना नेहवाल, टीना डाबी, अंजना ओम कश्यप, श्वेता सिंह, दीपिका पादुकोण और बबिता फोगाट जैसी शख्सियतों का, जो ना सिर्फ खुद मिसाल बनकर सामने आईं, बल्कि अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा भी बनीं।

ऐसी ही शख्सियतों द्वारा लोगों की गंदी हो चुकी मानसिकता को बदला सकता है। इसके लिए “आधी आबादी” को फौलादी बनने की ज़रूरत है।

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