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लाखों के मंच पर चढ़कर फर्ज़ी जनहित के वादे कब तक करेंगे राजनेता?

राजनीतिक रैली

राजनीतिक रैली

महानवमी का डिब्बा, उस पर आसीन सफेदपोश नेताजी मालामाल और ठीक सामने बैठी जनता फटेहाल। कुछ ऐसी ही तस्वीर चुनाव के समय भारत माता की दिखाई देती है। जिस रैली को सुनने हमारी भोली-भाली और भावुक जनता भूखे, प्यासे और फटे-पुराने कपड़े पहन कर जाती है, उस रैली के मंच का ही दाम लाखों में होता है।

नेताओं के हेलीकॉप्टर, चमड़े के जूते और बगूले की पंख के समान सफेद पोशाक की कीमत जोड़ दे तो पेटी भर जाए। यह छाया चित्र उस भारत माता की है जिसके करोड़ों भक्त प्रतिदिन भूखे पेट सोने को मजबूर हैं और उनके तथाकथित रहनुमा करोड़ों की रैली और चुनाव प्रचार करते हैं।

लाखों के मंच पर चढ़कर फर्ज़ी वादे

आखिर वह कौन सी व्यवस्था है जो इन नेताओं को लाखों रुपए से बने मंच पर चढ़कर फर्ज़ी जनहित वादें करने देती है मगर आम जनता को दो वक्त की रोटी भी नहीं दे पाती? इतना धन आखिर इन राजनीतिक दलों के पास कहां से आता है?  

एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) की रिपोर्ट बताती है कि देश के टॉप चार राष्ट्रीय दलों ने वर्ष 2017-18 में तकरीबन 980 करोड़ रुपए अपने चुनावी फायदे के लिए फूंक दिए। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को वित्त वर्ष 2017-18 में 1027.34 करोड़ रुपए की प्राप्ति हुई, जो अन्य राजनीतिक दलों को प्राप्त आय से कहीं ज़्यादा है। इसमें से तकरीबन 758.47 करोड़ रुपए उसने उसी प्रचार-प्रसार में लगा दिए जिसमें आप फटेहाल हालात में गए थे।

बीजेपी ने अपनी आय में से तकरीबन 553.38 करोड़ रुपए यानि अपनी कुल आय का 53.87% अज्ञात स्रोतों से प्राप्त किया। बाकी की कमाई उसे इलेक्टोरल बॉन्ड से हुई थी।

विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी काँग्रेस की बात करें तो वर्ष 2017-18 में उसकी कुल आय 199 करोड़ रुपए रही, जिसमें से उसने 197 करोड़ रुपए चुनाव प्रचार में खर्च कर दिए। काँग्रेस ने अपनी कुल आय में से 120 करोड़ रुपए यानी कि 60.21% की प्राप्ति अज्ञात स्रोतों से की थी। बाकी बचे रकम की प्राप्ति उसने इलेक्टोरल बॉन्ड से की थी।

कुछ ऐसी ही स्थिति अन्य राष्ट्रीय पार्टियों की रही। बसपा ने वर्ष 2017-18 में 51.7 करोड़ रुपए एकत्रित किए जिसमें से उसने 14.78 करोड़ रुपए चुनाव प्रचार पर खर्च किए। उसने अपनी कुल आय में से 10.67 करोड़ की प्राप्ति अज्ञात स्रोतों से की।

शरद पवार। फोटो साभार: Getty Images

शरद पवार की एनसीपी की वर्ष 2017-18 में कुल आय 8.15 करोड़ रुपए रही और उसने पार्टी प्रचार के लिए 8.84 करोड़ रुपए खर्च किए यानि आय से ज़्यादा। एनसीपी ने अपनी आय का 65.89% हिस्सा अज्ञात स्रोतों से प्राप्त किया था।

ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने वित्त वर्ष 2017-18 में 5.167 करोड़ रुपए प्राप्त किए, जिसका करीब 2% हिस्सा उसने अज्ञात स्रोतों से प्राप्त किया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 1.55 करोड़ रुपए प्राप्त किए, जिसमें से उसने 0.19% अज्ञात स्रोतों से प्राप्त किया।

यानि देश की तकरीबन 6 राष्ट्रीय पार्टियों की कुल आय वर्ष 2017-18 में 1292.907 करोड़ रुपए रही, जिनमें से टॉप चार दलों ने तकरीबन 980 करोड़ रुपए बड़ी-बड़ी रैलियों और जनसभाओं में खर्च कर दिए

मतलब तस्वीर साफ है कि देश की सभी राजनीतिक पार्टियां पैसे खर्च करने में बहुत आगे है। नेता बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं, बड़ी-बड़ी रैलियां करते हैं और आम जनता दर-दर की ठोकरें खाती है।

नोट: आंकड़े एडीआर की आधिकारिक वेबसाइट से लिए गए हैं।

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