सूर्या दसवीं कक्षा का छात्र है। जैसे हर दसवीं के छात्र को बोर्ड परीक्षाओं को लेकर मन में घबराहट होती है, वैसी सूर्या को भी है। गणित और संस्कृत विषय अक्सर उसके डर और घबराहट को बढ़ा देते हैं। सूर्या के साथ हुई एक घटना को मैं आप सभी से साझा कर रही हूं।
इसलिए नहीं पढ़ा सकती क्योंकि वह लड़का है
सूर्या अपनी कॉलोनी के पास की एक प्रियंका दीदी से संस्कृत-व्याकरण समझने गया। वह बहुत से बच्चों को अपने घर में पढ़ाती है। सूर्या बहुत उम्मीद से उनके पास पढ़ने गया था, वह भी उसे पढ़ाने के लिए तैयार हो गई और कमरे में बैठने को कहा। प्रिंयका उसे पढ़ाती कि उससे पहले घर के सदस्यों ने प्रियंका को उसे पढ़ाने से मना कर दिया।
प्रियंका को थोड़ा अजींब लगा क्योंकि वह बच्चों को तो घर में पढ़ाती ही हैं फिर आज क्या हुआ? उसने जब इसकी वजह पूछी तो घरवालों ने कहा कि वह लड़के को नहीं पढ़ा सकती। प्रियंका ने फिर पूछा, क्यों नहीं पढ़ा सकती तो जवाब मिला क्योंकि वह लड़का है।
बिना पढ़ाए भेजना पड़ा वापस
प्रियंका ने इस बात का विरोध करते हुए अपने घरवालों से कहा कि आप भी अपने घर के लड़कों को किसी महिला शिक्षिका के यहां पढ़ने मत भेजिए लेकिन उसके घर के सदस्य नहीं माने और आखिरकार प्रियंका ने बिना पढ़ाए सूर्या को वापस भेज दिया। वह मन ही मन में सोच रही थी कि एक शिक्षिका के तौर पर उसे लड़कों को नहीं पढ़ाने दिया जा रहा है, फिर वह अपने पेशे के साथ कैसे न्याय करेगी?
प्रियंका को अपने घर के सदस्यों की इस सोच पर शर्म आ रही थी और उसे सूर्या के लिए बुरा भी लग रहा था। एक टीचर होकर, वह एक छात्र को पढ़ा नहीं पाई। आश्चर्य कि बात है कि प्रिंयका के घर में सभी शिक्षित हैं फिर भी उनकी सोच विकसित नहीं है।
मैं लड़का हूं, इसलिए मुझे नहीं पढ़ाया गया
सूर्या ने प्रियंका दीदी के घर की बातें सुन ली थी। वह बहुत मायूसी के साथ घर वापस चला गया और जब माँ ने पढ़ाई के बारे में पूछा तो बिना जवाब दिए अपने कमरे में चला गया। कुछ देर बाद जब वह खाना खाने के लिए अपने कमरे से बाहर निकला तो माँ ने दोबारा पूछा, कैसी रही पढ़ाई? सूर्या ने बहुत मायुसी से कहा दीदी नहीं पढ़ा पाईं क्योंकि मैं लड़का हूं और इसलिए उनके घरवालों ने पढ़ाने से मना कर दिया।
सूर्या की माँ को प्रिंयका के घरवालों की इस छोटी सोच पर बहुत गुस्सा आया और मन में आया कि वह उनके घर जाकर सबको खरी-खोटी सुनाकर आए लेकिन वह नहीं गईं क्योंकि वह प्रियंका के घरवालों की सोच से भली-भांति परिचित थीं मगर उन्होंने नहीं सोचा था कि प्रियंका के घरवालों की सोच इतनी गिरी हुई होगी।
मुझे यह घटना सूर्या के घर जाने पर पता चली। मैंने सूर्या की माँ का ध्यान हटाने के लिए कहा, आंटी मैं पढ़ा देती हूं। आप उसकी परीक्षाओं की चिंता मत करो। तभी सूर्या ने पीछे से कहा, “अरे नहीं दीदी मैं लड़का हूं। आप मुझे कैसे पढ़ा सकती हैं?” इतना कहते ही वह वहां से उठकर चला गया।
टीचर के लिए सभी छात्र महत्वपूर्ण
उसके कहने के तरीके से मैं समझ गई कि उसे अपने साथ घटित हुई चीज़ों का बुरा लगा है। इसके साथ मैं आंटी की चिंता भी समझ रही थी और प्रियंका के हालात और उसकी मजबूरी भी मुझे दिख रही थी।
एक ऑनलाइन एजुकेटर होकर मैं जानती हूं कि टीचर के लिए उसके सभी छात्र कितने महत्वपूर्ण होते हैं। मैं समझ सकती थी कि प्रिंयका ने कितना मजबूर होकर सूर्या को वापस भेजा होगा।
जब मैंने प्रियंका को इस घटना के बाद कॉल किया तो उसने रोते हुए, थोड़े गुस्से के साथ अपने परिवारवालों की सोच मुझसे साझा की। उसने बताया कि किस प्रकार उसके घर में लड़का-लड़की के बीच भेदभाव किया जाता है। उसकी बातें सुनकर मैं रुआंसी हो गई। कुछ देर बात करके मैंने फोन रख दिया। तब से मेरे दिमाग में यह घटना और सूर्या की वह बात, “अरे दीदी आप मुझे कैसे पढ़ा सकती हो मैं तो लड़का हूं।”
समाज की सच्चाई आई सामने
मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा भी हमारे समाज में हो सकता है। एक टीचर एक छात्र को इसलिए नहीं पढ़ा सकती क्योंकि वह एक लड़का है। लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जाता इसके बारे में मैंने सुना था लेकिन आज समाज की एक दूसरी सच्चाई भी सामने आ गई।
यह पूरी घटना मुझे बहुत दुखित करती है कि ऐसे सोच वाले समाज और देश का क्या होगा? इसके साथ मेरे मन में यह सवाल भी आ रहा था कि लड़के को पढ़ाने से मना कर दिया, अगर वह छात्र LGBT कम्युनिटी से होता, तो ना जाने उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाता।
शहर में रहने वालों की सोच ऐसी है तो गाँवों में क्या स्थिति होगी? ऐसे बहुत से सवाल मेरे दिमाग में चल रहे हैं, जिनका जवाब शायद वक्त के साथ मुझे मिल जाए।
नोट: किरदारों के नाम बदले गए हैं।