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गरीब और बेबस लोगों की आवाज़ थे ‘अदम गोंडवी’

अदम गोंडवी

अदम गोंडवी

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत  छेड़िए ,
अपनी कुर्सी के लिए जज़्बात को मत छेड़िए 

हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है,
दफ्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए।

गर गलतियां बाबर की थीं, जुम्मन का घर फिर क्यों जले?
ऐसे नाज़ुक वक्त में हालात को मत छेड़िए।

हैं कहां हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ खां,
मिट गए सब, कौम की औकात को मत छेड़िए।

छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ,
दोस्त, मेरे मज़हबी नग्मात को मत छेड़िए। 

एक दिन कुछ खोजते-पढ़ते यह कविता मेरे हाथ लगी ओर मैंने इसे पढ़ा। इस कविता ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। मन में एक टीस-सी उठी कि क्यों ना इस लेखक के बारे में पता किया जाए। कौन हैं, किसकी कविता है?

जब खोजा तो नाम पता चला “अदम गोंडवी” साधारण व्यक्तित्व का आदमी, जो बस शायद 5वीं तक पढ़ा है मगर उसके ज्ञान का भंडार किसी पीएचडी वाले को भी पानी पिला दे।

सीधे अपनी बात कहना अदम की आदत

किसी भी बात को साफ और सीधे तरीके से कह डालना, उन्हें औरों से बिल्कुल अलग करता था। बहुत कम बोलने वाले अदम अपनी गज़लों और कविताओं के माध्यम से ही बोलते थे। लोग सरकार और नेताओं से डर कर चुप हो जाते हैं लेकिन अदम उनसे सीधे सवाल करने का साहस रखते थे।

इसकी बानगी आप इसी कविता में देख लीजिए

जो डलहौज़ी ना कर पाया वो यह हुक्काम कर देंगे

कमीशन दो तो हिन्दुस्तान को नीलाम कर देंगे,

ये वन्दे-मातरम् का गीत गाते हैं सुबह उठकर

मगर बाज़ार में चीज़ों का दोगुना दाम कर देंगे,

सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे

वे अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे।

इस गज़ल में आप साफ देख सकते हैं कि किस तरह से अदम नेताओं के दोगलेपन की धज्जियां उड़ा रहे हैं। अदम किसी भी बात को सीधे और तीखे तेवर के साथ बोलते थे। सच कितना ही कड़वा हो, उसे उतनी ही कड़वाहट के साथ बोलते थे। उन्होंने इस समाज की हर बुराइयों पर करारा प्रहार किया है।

उन्होनें युवकों को राजनेताओं के घिसे-पिटे वादों से कमज़ोर और बेबस होते देखा है। वह कहते थे कि जो युवा इस देश की तस्वीर बदल सकता था, आज इन नेताओं के दिए सस्ते नसे में अपने आपको मार रहा है।

उनकी कविताएं बोलती थी कई बातें  

22 अक्टूबर, 1947 को आटा ग्राम गोंडा, उतर प्रदेश में जन्में अदम गोंडवी का मूल नाम रामनाथ सिंह था। जब कोई उनके बारे में पूछता तो वह अपने बारे में बस यही बोलते-

“मेरा क्या है मेरे गाँव का पुछिए” फिर कहते,

“फटे कपड़ों में तन ढाके गुज़रता हो जहां कोई, समझ लेना वह पगडंडी ‘अदम’ के गाँव जाती है।”

अदम के सादेपन और उनके कपड़ों को देखकर कोई उनकी तरफ ज़्यादा ध्यान नहीं देता था मगर अदम जब अपनी कविताएं बोलते तो लोगों को सोचने पर मजबूर कर देते थे।

घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है,

बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है।

बगावत के कमल खिलते हैं, दिल के सूखे दरिया में,

मैं जब भी देखता हूं आंख बच्चों की पनीली है

सुलगते जिस्म की गर्मी का फिर एहसास हो कैसे?

मोहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है

गज़ल को ले चलो अब गांव के दिलकश नज़ारों में।

कुछ एसे ही थे अदम गोंडवी। बात को बिना तोड़ मरोड़ कर कहने वाले। वह तो बस पहली लाईन के बाद सीधे दूसरी लाईन बोल देते थे। वह गरीब, बेबस और सरकार के सताए हुए लोगों की आवाज़ थे।

नई मोनालिसा

उनकी यह कविता बड़ी मशहूर है, “मैं चमारो की गली तक ले चलूंगा आपको।” यह एक लड़की से रेप की सच्ची घटना पर उनके द्वारा लिखी गई थी। इस कविता मे अदम गोंडवी ने उस लड़की को ‘नई मोनालिसा’ कहा है। यह कविता आपको अंदर तक झकझोर देती है।

‘चमारों की गली’ कविता भारतीय समाज की गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा है, जिसमें बहादुरी और सामंती व्यवस्था के दोगलेपन को सबके सामने उजागर किया गया है।

अदम औरों की तरह किताबी और सुरक्षित कविता ना लिखकर ऐसी कविताएं लिखते थे, जिनसे सरकार का ही नहीं, बल्कि सामंती व्यवस्था का भी असली चेहरा सामने आता था।

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