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“महान विचारक भगत सिंह को बम और पिस्तौल तक सीमित रखना अन्याय है”

भगत सिंह

भगत सिंह

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गाँव खट्कड़ कलां है, जो पंजाब में है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती है। भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से बहुत प्रभावित रहे।

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर गहरा प्रभाव डाला। इस अमानवीय कृत को देख कर उनका मन देश को स्वतंत्र करवाने के लिए बेचैन हो उठा। भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर एक क्रांतिकारी संगठन की शुरुआत की।

लाहौर षड्यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। भगत सिंह को 23 मार्च 1931 की शाम सात बजे सुखदेव और राजगुरू के साथ फांसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हंसते-हंसते देश के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया।

भगत सिंह की दुर्लभ तस्वीर। फोटो साभार: Twitter

आज के दौर में भगत सिंह के विचारों को जानना और उन्हें आगे बढ़ाना हर युवा के लिए क्यों ज़रुरी हैं? यह सवाल मुझे आज के नेताओं ने सोचने पर मजबूर कर दिया है। भगत सिंह जैसा युवा क्रांतिकारी और विचारक कभी पैदा नहीं हुआ और शायद ना कभी होगा। आज के युवा कम ही जानते हैं कि भगत सिंह एक विचारक भी थे जो अपने विचारों के धार से देश को आज़ादी दिलाना चाहते थे।

“पिस्तौल और बम इंकलाब नहीं लाते, बल्कि इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है।”

भगत सिंह का यह कथन हर उस इंसान को पढ़ना चाहिए जो उनकी सोच और काबिलियत का दायरा बम और पिस्तौल तक ही सीमित कर देते हैं।

उनकी आज़ादी का मतलब हर तरह की सामाजिक बुराईयों से आज़ादी था। वह जातिवाद, शोषण, असमानता, गरीबी, बेरोज़गारी इन सबसे आज़ादी चाहते थे। आज़ादी के 70 सालों बाद भी समाज में इन बुराईयों का वर्चस्व हमारी सरकारों की विफलता का प्रतीक है।

आज कल लोग लोकतंत्र में कम और अपने नेताओं में ज़्यादा यकीन रखते हैं। अपने नेताओं की आलोचना उनसे बर्दाश्त नहीं होती। नेताओं पर या किसी विचारधारा पर अंधविश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि वे आपके विचारों को खोखला कर देते हैं।

सांप्रदायिकता पर भगत सिंह के विचार

सांप्रदायिक भावना भड़काने वाले नेताओं पर भगत सिंह की टिप्पणी पढ़ी जानी चाहिए। इस विषय में उन्होंने “कम्युनल रायट्स एंड देयर क्योर” नाम से एक लेख लिखा था जो “कीर्ति” अखबार ने जून 1928 में छापा था।

भगत सिंह कहते हैं “यदि राजनीति को धर्म से अलग कर दिया जाए तो राजनीति पर हम सभी इकट्ठा हो सकते हैं। धर्मों में हम चाहे अलग-अलग ही रहें। हमारा ख्याल है कि भारत के सच्चे हमदर्द हमारे बताए इलाज पर ज़रूर विचार करेंगे और भारत का इस समय जो आत्मघात हो रहा है उससे हमें बचा लेंगे।”

इस बात से आज का कौन सा नेता सहमत होगा? शायद कोई नहीं। सभी नेता अपने वोट बैंक के लिए धर्म की राजनीति करते हैं चाहे वो देश में भाजपा की सरकार हो या बंगाल में त्रिणमूल -कांग्रेस की सरकार, सभी धर्म के नाम पर समाज को बांट रहे हैं। लोगों को इनसे बचने की ज़रूरत है।

आज की मीडिया जो सांप्रदायिक भावना भड़काने का प्रयास करती है उसके बारे में भगत सिंह 1928 में लिखते हैं, “दूसरे सज्जन जो सांप्रदायिक दंगों को भड़काने में विशेष हिस्सा लेते रहे हैं, अखबार वाले हैं। पत्रकारिता का व्यवसाय किसी समय बहुत ऊंचा समझा जाता था। आज यह बहुत ही गंदा हो गया है। ये लोग एक-दूसरे के विरुद्ध बड़े मोटे-मोटे शीर्षक देकर लोगों की भावनाएं भड़काते हैं। एक-दो जगह ही नहीं, कितनी ही जगहों पर इसलिए दंगे हुए हैं कि स्थानीय अखबारों ने बड़े उत्तेजना पूर्ण लेख लिखे हैं। ऐसे लेखक बहुत कम हैं जिनका दिल और दिमाग ऐसे दिनों में भी शांत रहा हो।”

वह आगे लिखते हैं, “अखबारों का असली कर्त्तव्य शिक्षा देना, लोगों के दिमाग से संकीर्णता निकालना, सांप्रदायिक भावनाएं हटाना, परस्पर मेल-मिलाप बढ़ाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता बनाना था लेकिन इन्होंने अपना मुख्य कर्त्तव्य अज्ञानता फैलाना, संकीर्णता का प्रचार करना, सांप्रदायिक बनाना, लड़ाई-झगड़े करवाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है। यही कारण है कि भारतवर्ष की वर्तमान दशा पर विचार कर आंखों से रक्त के आंसू बहने लगते हैं और दिल में सवाल उठता है कि ‘भारत का बनेगा क्या?”

नए नेताओं पर भगत सिंह के विचार

जुलाई 1928 में भगत सिंह ने अपने लेख “डिफरेंट व्यूज़ ऑफ न्यू लीडर्स” पर दो युवा नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस की नीतियों और विचारों का विश्लेषण किया। उनकी उम्र उस वक्त क्या रही होगी? बस 20 साल। 20 साल की उम्र में आज का कौन सा युवा होगा जो राहुल गाँधी और नरेंद्र मोदी की नीतियों और विचारों पर सटीक विश्लेषण करेगा? बहुत कम क्योंकि आज की राजनीति और उसके समर्थकों ने खुद को विचारों से अलग कर लिया है। आज चुनाव सिर्फ चेहरों पर लड़ा जाता है, नीतियों पर नहीं। राजनीति में राज तो है पर नीति गायब है।

भगत सिंह। फोटो साभार: Getty Images

भगत सिंह लिखते हैं, “सुभाष आज शायद दिल को कुछ भोजन देने के अलावा कोई दूसरी मानसिक खुराक नहीं दे रहे हैं। अब आवश्यकता इस बात की है कि पंजाब के नौजवानों को इन युगान्तरकारी विचारों को खूब सोच-विचार कर पक्का कर लेना चाहिए। इस समय पंजाब को मानसिक भोजन की सख्त ज़रूरत है और यह पंडित जवाहरलाल नेहरू से ही मिल सकता है।”

बकौल भगत सिंह, “इसका अर्थ यह नहीं है कि उनका अंधा पैरोकार बन जाना चाहिए लेकिन जहां तक विचारों का संबंध है वहां तक इस समय पंजाबी नौजवानों को उनके साथ होना चाहिए ताकि वे इन्कलाब के वास्तविक अर्थ, हिंदुस्तान के इन्कलाब की आवश्यकता, दुनिया में इन्कलाब का स्थान क्या है, आदि के बारे में जान सकें। सोच-विचार के साथ नौजवान अपने विचारों को स्थिर करें ताकि निराशा, मायूसी और पराजय के समय में भी भटकाव के शिकार ना हों और अकेले खड़े होकर दुनिया से मुकाबले में डटे रह सकें। इसी तरह जनता इन्कलाब के ध्येय को पूरा कर सकती है।”

विद्यार्थी और उनकी राजनीतिक जीवन पर भगत सिंह के विचार

इस विषय में जुलाई 1928 में भगत सिंह ने “स्टूडेंट एंड पॉलिटिक्स” नाम से एक लेख लिखा था। भगत सिंह कहते हैं, “सभी मानते हैं कि हिंदुस्तान को इस समय ऐसे देश-सेवकों की ज़रूरत है जो तन-मन-धन देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आज़ादी के लिए न्योछावर कर दें लेकिन क्या बूढ़ों में ऐसे लोग मिल सकेंगे? क्या परिवार और दुनियादारी के झंझटों में फंसे सयाने लोगों में से ऐसे लोग निकल सकेंगे? यह तो वही नौजवान कर सकते हैं जो किसी जंजाल में ना फंसे हो और जंजालों में पड़ने से पहले विद्यार्थी या नौजवान तभी सोच सकते हैं यदि उन्होंने कुछ व्यावहारिक ज्ञान भी हासिल किया हो, सिर्फ गणित और ज्योग्राफी का ही परीक्षा के पर्चों के लिए घोंटा ना लगाया हो।”

आज के दौर में मध्यम वर्ग, किसान, मज़दूर की हालत बिल्कुल ही खराब है। किसानों की आत्महत्या बढ़ती जा रही है मगर कोई नेता इस विषय पर ध्यान नहीं देता है। किसानों को फसल के सही दाम नहीं मिलते जिस कारण वे आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं।

भगत सिंह कहते हैं, “भारत की वर्तमान लड़ाई ज़्यादातर मध्य वर्ग के लोगों के बलबूते लड़ी जा रही है जिसका लक्ष्य बहुत सीमित है। कांग्रेस दुकानदारों और पूंजीपतियों के ज़रिये इंग्लैंड पर आर्थिक दबाव डाल कर कुछ अधिकार ले लेना चाहती है मगर जहां तक देश के करोड़ों मज़दूर और किसान जनता का ताल्लुक है, उनका उद्धार इतने से नहीं हो सकता। यदि देश की लड़ाई लड़नी है तो मज़दूरों, किसानों और सामान्य जनता को आगे लाना होगा, उन्हें लड़ाई के लिए संगठित करना होगा। नेता उन्हें आगे लाने के लिए अभी तक कुछ नहीं करते, ना कर ही सकते हैं। इन किसानों को विदेशी हुकूमत के साथ-साथ भूमिपतियों और पूंजीपतियों के जुए से भी उद्धार पाना है मगर काँग्रेस का उद्देश्य यह नहीं है।”

उन्होंने आगे कहा, “कांग्रेस के लोग संपूर्ण क्रांति नहीं चाहते। सरकार पर आर्थिक दबाव डाल कर वे कुछ सुधार और ले लेना चाहते हैं। भारत के धनी वर्ग के लिए कुछ रियायतें चाहते हैं और इसलिये मैं यह भी कहता हूं कि कांग्रेस का आंदोलन किसी ना किसी समझौते या असफलता में खत्म हो जाएगा। इस हालत में नौजवानों को समझ लेना चाहिए कि उनके लिये वक्त और भी सख्त आ रहा है। उन्हें सतर्क हो जाना चाहिए कि कहीं उनकी बुद्धि चकरा ना जाए या वे हताश ना हो बैठें। महात्मा गाँधी की दो लड़ाइयों का अनुभव प्राप्त कर लेने के बाद वर्तमान परिस्थितियों और अपने भविष्य के प्रोग्राम के संबंध में साफ-साफ नीति निर्धारित करना हमारे लिए अब ज़्यादा ज़रूरी हो गया है।”

मशहूर जन कवि अवतार सिंह संधू ‘पाश’ की भगत सिंह पर एक कविता

भगत सिंह

पहला चिंतक था पंजाब का,

सामाजिक संरचना पर जिसने

वैज्ञानिक नज़रिए से विचार किया था,

पहला बौद्धि‍क

जिसने सामाजिक विषमताओं की, पीड़ा की

जड़ों तक पहचान की थी,

पहला देशभक्‍त

जिसके मन में

समाज सुधार का

ए‍क निश्चित दृष्टिकोण था,

पहला महान पंजाबी था वह

जिसने भावनाओं व बुद्धि‍ के सामंजस्‍य के लिए

धुंधली मान्‍यताओं का आसरा नहीं लिया था,

ऐसा पहला पंजाबी

जो देशभक्ति के प्रदर्शनकारी प्रपंच से

मुक्‍त हो सका,

पंजाब की विचारधारा को उसकी देन

सांडर्स की हत्‍या

असेम्‍बली में बम फेंकने और

फांसी के फंदे पर लटक जाने से कहीं अधिक है,

भगत सिंह ने पहली बार

पंजाब को

जंगलीपन, पहलवानी व जहालत से

बुद्धि‍वाद की ओर मोड़ा था,

जिस दिन फांसी दी गई

उसकी कोठरी में

लेनिन की किताब मिली

जिसका एक पन्‍ना मोड़ा गया था,

पंजाब की जवानी को

उसके आखिरी दिन से

इस मुड़े पन्‍ने से बढ़ना है आगे

चलना है आगे।

नोट: लेख में प्रयोग किए गए तथ्य कुलदीप सिंह नैयर की किताब शहीद भगत सिंह, क्रांति के प्रयोग से लिए गए हैं।

अन्य संदर्भ- https://www.marxists.org/hindi/bhagat-singh/index.htm

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