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“सुकून है इस बार बीजेपी हो या कॉंग्रेस मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है”

लोकसभा 2019 चुनाव का पहला चरण पूरा हो गया। ठीक उसके पहले सभी पार्टियों ने अपने-अपने घोषणा पत्र में अपने वादों को जनता के सामने रखा है। गौर करने वाली बात यह है कि दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के घोषणा पत्र बहुत बिंदुओं पर एक जैसे लगते हैं।

वहीं कुछ-कुछ बिंदुओं पर असमानताएं बरकरार हैं। सबसे ज़्यादा जिस बात पर गौर किया जाना चाहिए वो यह कि इस बार बीजेपी के घोषणा पत्र में राममंदिर को प्रमुखता से नहीं रखा गया है। मतलब यह कि जिस मुद्दे को लेकर बीजेपी अस्तित्व में आई थी, इस बार वह मुद्दा, वह कट्टरवाद, उस हिंदुत्व के प्रति लगाव देखने को नहीं मिल रहा है।

फोटो सोर्स- Getty

जो बात सबसे ज़्यादा गौर करने वाली है वो यह कि दोनों पार्टियों ने मुख्य रूप से ज़मीनी मुद्दों को जगह दी है। अनुछेद 370 पर भी दोनों पार्टियों ने अपना रुख साफ किया है। जहां बीजेपी 370 हटाने के पक्ष में है, वहीं कॉंग्रेस उसे यथास्तिथि के पक्ष में है।

एक और बात यह है कि

नौकरियों पर दोनों पार्टियां अवसर पैदा करने की बात कर रही हैं पर कॉंग्रेस ने एक कदम आगे बढ़कर नौकरी का डाटा भी उपलब्ध कराने की बात की है, जो कि बीजेपी सरकार यहां पिछड़ती नज़र आ रही है। सबसे मुख्य बात किसानों को लेकर की गई है,

बाकी 15 लाख के बदले इस बार 72000 भी है मैदान में।

अगर हम एक आम आदमी की नज़र से देखें, तो दोनों पार्टियों के घोषणा पत्र को देखने से थोड़ा सुकून इस बात से मिलता है कि इस बार मुद्दों पर चुनाव लड़ा जा रहा है या कहीं ना कहीं अब नेताओं को भी समझ आने लगा है कि जुमलों पर राजनीति नहीं हो सकती।

आज का वोटर समझदार हो गया है, वो मुद्दे की बात करता है। उसे मंदिर मस्जिद के पहले नौकरी चाहिए, वो किसानों की बात करता है, वो देश की सुरक्षा को लेकर सजग है। यह युवाओं की ही ताकत है कि दोनों पार्टियों ने बुनियादी मुद्दों को ही जगह दी है अपने घोषणा पत्र में।

जहां तक क्षेत्रिय पार्टियों की बात करें तो कुछ मुद्दों को छोड़कर सभी पार्टियों ने प्रमुखता से बुनियादी मुद्दों को हथियार बनाया है। यह अपने आप में काफी सुखद है। वह उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा, रालोद गठबंधन के बाद अखिलेश यादव ने अहीर रेजिमेंट की बात करके अपने पुराने वोट को सिर से समेटने की कोशिश की है, तो दूसरी तरफ गुजरात रेजिमेंट की मांग कर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की है तथा दूसरी तरफ सामाजिक न्याय की बात कर अपने पुराने दलित पिछड़ा वोट बैंक को फिर से एक साथ करने की कोशिश की है। ऐसे में यह देखना मज़ेदार होगा कि देश का रुख क्या होगा।

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