हम कहाँ जा रहे हैं….?
असम के बिश्वनाथ चराली बाज़ार में “शौकत अली” को दंगाई भीड़ घेरती है और सुअर का मांस खिलाने के लिए मज़बूर कर देती है,
असम में गोमांश पर प्रतिबंध नही है, शौकत अली पिछले कई वर्षों से पके हुए मांस का व्यवसाय करता है,
घटना 7 अप्रैल की है जिसको द क्विंट ने प्रकाशित किया है,भीड़ शौकत अली को बांग्लादेशी कहती है और नागरिक होने का सर्टिफिकेट मांगती है, और सुअर के मांस का पैकेट कई वीडियो में देखने को मिला है जिसको खिलाने के लिए शौकत को मज़बूर कर दिया गया,
हालांकि शौकत के रिश्तेदार की तरफ़ से भीड़ के लिए एफआईआर कराई गई है लेकिन सोचना यह है कि कौनसा राज्य या कोना बाक़ी रह गया है जिसमे गाय के नाम पर कोई व्यक्ति लिंच ना हुआ हो?
आख़िर इनके अंदर ख़ौफ़ पैदा क्यों हो?
सुप्रीम कोर्ट ने मोब लिंचिंग को लेकर केंद्र सरकार को सख़्त क़ानून बनाने के आदेश दिए लेकिन सरकार ने कोर्ट के आदेशों को ठेंगा दिया है, और लिंचर को संरक्षण दिया जा रहा है,
क्या हमने यही माँगा था…?
गोरी लांकेश की उनके घर मे गोली मार कर हत्या करदी जाती है और कुछ लोग सोशल मिडिया पे उनको कुतिया बोलते है ओर उनही बोलने वालो को कई सत्ताधारी नेता फोलो करते है.
क्या हमने यही चाह था….?
जिस सेना के नाम पे वोट मांगे, ज़िन सेनिक भाइयो के नाम 5 साल अपना गुण गान किया आज वही सेनिक भाई सरकार के खिलाफ चुनाव लड़ने को मजबूर है,
ऐसी क्या वजह है एक दो दस नहीं बल्की करीब 10000 सेनिक भाई सरकार के खिलाफ प्रचार कर रहे है,
जो सेना जो हमारे सेनिक भाई हमारी शान है वो आज ये सब कर रहे हैं,
क्या हमने यही नया हिंदुस्तान माँगा था…?
बोहत सारा बोहत कुछ हुआ है फिर चाहे वो 1984 हो या 2002 गुजरात.
क्या हमने यही सोचा था…?
चीन हमारे दो साल बाद आजाद हुआ था ओर वो आज हमसे बोहत आगे है, सरकार कोई भी हो हमे सिर्फ निराशा ही मिली है
क्या भगात सिंह के सपनो का हिंदुस्तान यही है…?
क्या आपको नहीं लगता के हमे कई तीसरे बिकल्प की ज़रूरत है