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“भाजपा में बुज़ुर्गों की आह, मोदी-शाह जोड़ी के लिए अपशकुन है”

भारतीय जनता पार्टी को राजनीति में ऊंचाइयों पर ले जाने का जिनका (लालकृष्ण आडवाणी) श्रेय निर्विवाद है, वो जीते जी अपने को व्यतीत घोषित किये जाने के प्रयास के चलते इतने आहत हैं कि अंदर ही अंदर उनके मन में प्रतिशोध फुंफकारने लगा है। 90 वर्ष की उम्र पार करके भी आडवाणी जी अभी चूके नहीं हैं। उम्र से चूकना तय होता भी नहीं है।

कोई-कोई 50 वर्ष की उम्र में ही श्लथ हो जाता है, तो कोई सैकड़ा की दहलीज़ पर पहुंचने के बाद भी ठंडा नहीं पड़ता। आडवाणी जी की ऊर्जा भंडार पर ढक्कन लगाकर विस्फोट को निमंत्रण दे दिया गया है। उनका ट्वीट इसकी भूमिका है, जिससे सृजित विमर्श ने मोदी एंड कंपनी का संतुलन खराब कर दिया है।

आडवाणी जी के चहकने का अंदाज़

फोटो सोर्स- Getty

ट्वीट पर आडवाणी जी कुछ इस अंदाज़ में चहके कि उन्होंने कह दिया कि मैंने अपने राजनीतिक विरोधियों को कभी राष्ट्रद्रोही नहीं माना। अंध भक्ति के घटाटोप में हर अनर्थ को नज़रअंदाज किया जा रहा है। मोदी जी अगर आडवाणी जी को संतुष्ट रख सके होते तो वो भी इस मुद्दे पर शायद चुप ही बने रहते। जबकि असहमति के हर स्वर को राष्ट्रद्रोह करार देने के अनिष्टकारी प्रभाव को तत्काल समझ लेने की पर्याप्त सूझ-बूझ आडवाणी जी में सदा विद्यमान है।

कोई कैसे करे राष्ट्र भगवान के खिलाफ कुछ कहने का पाप

ज़िम्मेदार पार्टियां अगर राष्ट्रद्रोह कर सकती हैं तो ना यह देश सुरक्षित रह सकता है और ना ही लोकतंत्र। प्रतिपक्ष को राष्ट्रद्रोही के रूप में प्रस्तुत करने का हथकंडा अविश्वास का ऐसा संकट पैदा कर सकता है, जिससे लोकतंत्र ही बेइमानी हो जाये। इंदिरा इज़ इंडिया की तर्ज़ पर एक व्यक्ति को राष्ट्र भगवान के रूप में स्थापित करने से चुनाव का औचित्य ही समाप्त हो जायेगा, क्योंकि भगवान के विरुद्ध किसी को चुनने का कुफ्र लोग क्यों करना चाहेंगे।

विकल्प सोचना देशद्रोहियों की गोद में जाकर बैठना

लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष के अलग-अलग ध्रुव अनिवार्य हैं, ताकि सत्ता पक्ष को यह डर रहे कि अगर उसने जन भावनाओं के अनुरूप कार्य करने में कोताही बरती तो लोगों के पास दूसरी जगह चले जाने का विकल्प है लेकिन दूसरी जगह अगर देशद्रोही बैठे हैं तो कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है।

लोकतंत्र में सत्ता की अदला-बदली सामान्य और सहज प्रक्रिया है, जिसके कारण इस व्यवस्था में नेता राज सिंहासन से उतरकर नीचे की पंक्ति में बैठने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहता है।

जब तक नेताओं में यह भावना है, तभी तक लोकतंत्र सुरक्षित है लेकिन सत्ता में पहुंचने के बाद गद्दी से नीचे उतरने की कल्पना तक दुश्वार लगने लगे तब वही होता है, जो आज हो रहा है। दरअसल, कर्णधारों के मानस में लोकतंत्र नहीं चक्रवर्ती सम्राट का बिंब बसा है। भाजपा का लक्ष्य था कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त करना। अन्य दल इसके विरोध में थे, जिन्हें जनता भी अभी कुछ समय पहले तक अनुमोदित करती रही लेकिन ज़रूरी नहीं है कि एक दल या संगठन, जिसे सही समझे वही सही हो।

370 बनाये रखकर जिन्होंने काम किया वे कश्मीर समस्या को नियंत्रित नहीं कर पाये। लोगों ने फैसला लिया कि अब उन्हें मौका दिया जाये, जो 370 के समाप्त होने से घाटी में नया आगाज़ होने का सपना दिखा रहे हैं।

चक्रवर्ती सम्राट बनने का भूत गड़बड़ी की जड़ में

इस हिसाब से जब भाजपा को सत्ता मिली, तो उसे यह काम करना चाहिए था। भाजपा के इस कदम से परीक्षण हो जाता कि 370 को लेकर उसका दृष्टिकोण कितना फलदायी है लेकिन चक्रवर्ती सम्राट का भूत आड़े आ गया। कश्मीर में पीडीएफ को सहयोग देकर सरकार बनाने से अनुच्छेद 370 के बारे में कोई प्रतिकूल फैसला नहीं किया जा सकता। यह बात भाजपा के नीति-नियंता जानते थे, फिर भी उन्होंने सब्र नहीं किया।

चक्रवर्ती बनने की हसरत में उन्होंने मुफ्ती के साथ बेमेल गठबंधन में शामिल होकर सरकार गठित कराई, जिससे 370 हटाने के नाम पर फरेब करने की तोहमत उनके खाते में जमा हो गई है। जो लोग आज ऐसा नहीं मान रहें वे ही कल इस बात को कहेंगे।

विपक्षी सरकारों को रोकने के मामले में कॉंग्रेस का बेहद कंलकित इतिहास रहा है। मीडिया ने कॉंग्रेस के इस रवैये को कितनी बेरहमी से बेनकाब किया, इसकी गवाही उस समय के अखबारों में मिल जायेगी। कॉंग्रेस के समय मंहगाई बढ़ी, गरीबी बढ़ी, भ्रष्टाचार बढ़ा, बेरोज़गारी बढ़ी तो क्या निष्पक्ष मीडिया ने उस पर कोई रहम किया था।

मीडिया का काम तो सत्ता की बखिया उधेड़ना है। कल कॉंग्रेस सत्ता में थी, तो उसके प्रति मीडिया का वही रुख था जो आज मोदी सरकार के प्रति है लेकिन मोदी सरकार के लिए मीडिया के दायित्व की परिभाषा बदली जा रही है और मीडिया की इस भूमिका को भी देशद्रोह के खाने में डाला जा रहा है।

कॉंग्रेस की लीक पर चलने की कोशिश क्यों

बात हो रही थी हर जगह अपनी सरकार देखने के लिए बेइमानी करने की। अगर कॉंग्रेस का इतिहास ऐसा करने का रहा है तो भाजपा को उसकी लीक पर चलने से बचना चाहिए था। गोवा देश के पैमाने पर नगर महापालिका स्तर का राज्य है। अगर ऐसे राज्य में अनैतिक हथकंडे अपनाकर भाजपा सरकार ना बनाती तो उसका दबदबा गिरने वाला नहीं था, बल्कि उसका नैतिक तेज़ और बढ़ता जो विपक्ष पर बढ़त बनाने में उसे महत्वपूर्ण योगदान देता।

यह दूसरी बात है कि चक्रवर्ती बनने का अरमान वर्तमान सत्ताधारियों पर इस कदर तारी है कि वे हर किसी को रौंदने के लिए अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा दौड़ाने को तैयार बैठे रहते हैं।

शतायु होने की ओर अग्रसर आडवाणी को विदाई देने में किसी को आपत्ति ना होती बशर्ते गरिमापूर्ण ढंग से यह काम किया जाता लेकिन राष्ट्रपति चुनाव से लेकर हर अवसर पर उन्हें निर्वासन में धृष्टतापूर्ण ढंग से धकेलने का उपक्रम उजागर होता रहा, जिससे उनके साथ षड़यंत्र किये जाने की धारणा बन गई।

आडवाणी जी के साथ ही क्यों पार्टी के अन्य कद्दावर नेताओं की भी जबरन छुट्टी करने में पूरा ज़ोर दिखाया गया। चक्रवर्ती सम्राट नहीं चाहता कि उससे बड़े या बराबर के कद का कोई उनके सामने रह जाये, इसीलिए तमाम बुज़ुर्ग नेता पार्टी के फैसले को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने आडवाणी जी के आवास पर जाकर उनसे आधा घंटे तक मंत्रणा की, वरना एक ज़माने में डॉ. जोशी भी कम अकड़ू नहीं थे। कई और ऐसे ही नेताओं के आडवाणी के दरबार में पहुंचने की खबर है। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की भी आक्रोश भरी पार्टी को लिखी गई चिट्ठी सामने आ चुकी है। बुज़ुर्गों की आह मोदी-शाह जोड़ी के लिए बड़ा अपशकुन है।

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