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“बेटियों से ही घर का काम कराने की अपेक्षा क्यों करता है हमारा समाज?”

भोजन तैयार करती लड़की

भोजन तैयार करती लड़की

बेटी शब्द सुनते ही कुछ लोगों के मन में खुशी की बहार आ जाती है, तो कई लोग इस शब्द को बोझ की नज़रों से देखते हैं। यह वे लोग होते हैं जिनके लिए बेटा वह तमाम चीज़ें कर सकता है जो बेटी नहीं कर सकती।

कुछ राज्यों में बेटियों को माँ की कोख में मारकर, लोग खुद को बहादुर समझते हैं। कुछ लोग समाज की मजबूरी का हवाला देकर यह कदम उठाते हैं। वे सोचते हैं कि अगर ऐसा नहीं किया तो समाज में वह क्या मुंह दिखाएंगे? समाज में उन्हें ज़िल्लत भरी ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ेगी।

सामाजिक रीति-रिवाज़ और हत्यारा बनता पिता

समाज के रीति-रिवाज़ों के कारण एक पिता हत्यारा बनता है। हर रोज़ ना जाने कितनी लड़कियों के साथ दुष्कर्म होता है। जिसके बाद उन लड़कियों के साथ-साथ उस लाचार पिता की भी ज़िंदगी नर्क बन जाती है। एक पिता अपनी बेटी को ही अपनी इज्ज़त मानता है और जब वह ही नहीं रहती तो वह जीते जी मर जाता है।

फोटो साभार: pixabay

कहने को‌ तो लड़कियां लड़कों से आगे निकल रही हैं। हर क्षेत्र में योगदान दे रही हैं, खुद के पैरों पर खड़ी हो रही हैं लेकिन दूसरी ओर आज भी कई राज्यों और गाँवों में लड़कियों को माँ की कोख में ही मार दिया जाता है।

लड़कियां पराया धन आखिर क्यों?

बेटियों के जन्म होने पर उन्हें बचपन से ही बस यही सिखाया जाता है कि बेटी पराया धन होती है, तुम्हें पराये घर जाना है और तुम्हारा ससुराल ही तुम्हारा असली घर होगा।

उसे घर के काम-काज सिखा दिए जाते हैं और शादी के बाद काम करने वाली मशीन बना दिया जाता है। जो पति, सास-ससुर और बच्चों को संभालने में पूरा जी़वन बिता देती है। खुद के लिए तो वह कभी जीती ही नहीं है।

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माँ-बाप कहते हैं पराया धन हो और ससुराल वाले अपना धन समझते नहीं हैं। नौ माह तक बच्चे को अपनी कोख में पालती है। इतना दर्द सहती है मगर इन सब के बाद भी उसका नाम कहीं नहीं जुड़ता। उसका खुद का वर्चस्व ही खत्म हो जाता है। भारत मे ज़्यादातर महिलाओं का यही जी़वन बनकर रह गया है।

2011 की जनगणना के अनुसार प्रति 1000 पुरुष पर केवल 940 महिलाएं हैं, जबकि आज़ादी के वक्त सेक्स अनुपात सामान्य था। 2001 के बाद इसमें इज़ाफा हुआ लेकिन बहुत कम। महिलाओं की घटती आबादी का मुख्य कारण “कन्याभ्रूण हत्या” भी है।

आज एक तरफ जहां देश तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर बेटियों के प्रति लोगों की तंग मानसिकता बेहद शर्मनाक छवि पेश कर रही है। वक्त रहते इसे बदलने की ज़रूरत है।

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