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चुनावी मौसम में उत्तर भारत के आम गाँवों की परिकल्पना

चाय पर चर्चा

चाय पर चर्चा

चैत्र के आगमन से जन-मन प्रसन्न है। खेतों ने स्वर्ण अनाज दिए हैं और सूर्य उच्च तेज़ को प्राप्त कर रहा है। महिलाएं रामनवमी का उत्सव मना रही हैं। खेतों में गुल्ली-डंडा खेलते बच्चे चौपालों में बड़े-बुजुर्गों की राजनीतिक चकल्लस पर गाल बजा रहे हैं और लोकतंत्र महापर्व के आनंद में डूबे हैं।

कच्ची सड़कों पर धूल उड़ाती गाड़ियों से नेतागण जब लोक दुआर पर उतरते हैं तो कुएं की जगत पर बैठा जनसमूह हर्ष ध्वनि करता है। जल्दी-जल्दी खाट बिछाई जाती है और कुलीन समाज का अछूत अपने लोटे में ‘ठंडा-जल’ लेकर प्रेम-भाव और समर्पण के साथ उपस्थित होता है, जिसमें आम और खास दोनों की विशिष्टता का अनुबोधन है।

गांँव की कच्ची पगडंडी जहां डामर वाले रोड से मिलते हैं, वहीं कोने में सड़क के दोनों तरफ क्रमबद्ध लकड़ी की गुमटियां और फूस के दुकान सजे हैं। यह गांँव का बाज़ार है।

यहां आस-पास के छोटे व्यापारी सौदा लेकर सड़क पर बैठते हैं ताकि लाभ कमा सकें। गाड़ियों की चिल्लम-पों पर इस बाज़ार की सौदा-आवाज़ें हावी हैं।

लोग बाज़ार पहुंच रहे हैं। कुछ लोग चाय की दुकान पर बैठे हैं तो कुछ पान-गुटखा खा रहे हैं। बीड़ी पीते, मैली-कुचैली धोती और फटी गंजी पहने बुज़ुर्गों का समूह चर्चा में मगन है। यहां चुनावी चकल्लस चाय की दुकानों पर मिलती है।

पूरा शहर भाग रहा है। सुबह से रात तक लोग सिर्फ काम करते हैं। बच्चे कंधे पर बस्ता टांगे तेज़ी से कोचिंग के लिए जा रहे हैं। कुछ लोग पैदल, कुछ साइकिलों से और कुछ मोटर गाड़ियों से जा रहे हैं। पूरा शहर संकरे रास्तों की चपेट में है।

शाम को सारा शहर रौशनी से जगमगा उठता है। चाय की अड़ियों पर गरमा-गरम राजनीतिक बहसें हो रही हैं। विभिन्न पार्टियों के समर्थक अपनी-अपनी लॉबी की आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।

सुपरमार्केट में बड़ी चहल-पहल है क्योंकि नवरात्रि की सेल लगी है और इसका लाभ हर कोई उठाना चाहता है। पटरियों पर ठेलेवालों और खेमचेवालों ने कब्ज़ा जमाया हुआ है। जिससे यहां भीड़ सबसे अधिक दिखती है।

महंगी गाड़ियों से उतरते लोग ब्रांडेड शोरूम में जा रहे हैं। आम शहर पटरियों पर दैनिक जीवन खरीद रहा है। गोलगप्पे खाती महिला से पत्रकार पूछता है, “इस बार आप किसे वोट देने जा रही हैंं?” महिला कुछ क्षण देखती हैं, फिर मुस्कुराती हुई कहती हैं, “जो घर खर्चे के ध्यान रखे।”

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