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सात साल की जांच के बाद भी नवरुणा कांड एक रहस्य क्यों बना हुआ है?

स्थानीय पुलिस जांच, सी.आई.डी. और फरवरी 2015 में सीबीआई जांच से गुज़रते हुए यह मुकदमा देश के सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। 75 महीने बाद भी ना कोई ठोस सुराग मिल पाया है और ना ही कोई ठोस कार्रवाई हुई है। माता-पिता की आंखों में अभी भी उनकी बेटी का चेहरा घूम रहा है।

मैं बात कर रही हूं मुज़फ्फरपुर जिले के चर्चित “नवरुणा कांड” की। यह केस आज भी उलझा हुआ है और लोगों के लिए एक रहस्य बना हुआ है।

यह घटनाक्रम 18 सितंबर 2012 की रात को शुरू हुआ था। जवाहर लाल रोड में रहने वाले अतुल चक्रवर्ती और मैत्री चक्रवर्ती के घर से उनकी 12 साल की बेटी नवरुणा चक्रवर्ती का खिड़की के 3 सींखचो को तोड़कर अपहरण कर लिया गया। 19 सितंबर को जब मां अपनी बेटी को जगाने के लिए कमरे का दरवाज़ा खटखटाती है और जवाब ना मिलने पर बाहर जाकर खिड़की से झांकती है तो उनके होश उड़ जाते हैं।

बेटी कमरे में नहीं मिलती है और आसपास कॉपी-किताब बिखरे हुए होते हैं। खिड़की से टूटी तीन सींखचे इस बात की गवाही देते हैं कि उनकी बेटी का अपहरण कर लिया गया है। बेटी को कमरे में ना पाकर दोपहर तक अतुल दंपति सगे संबंधियों के यहां पता लगाते हैं और अंत में कोई समाचार नहीं मिलने पर वे कुछ लोगों के साथ मुज़फ्फरपुर नगर थाना पहुंचते हैं और अपनी बेटी की बरामदगी के लिए गुहार लगाते हैं।

थानाध्यक्ष टालू रवैया अपनाते हुए कहते हैं, “आवेदन दे दीजिए और जाकर आप भी पता लगाइए। कहीं वह खुद ही भाग गई होगी”। पुलिस के इस रवैये पर अतुल चक्रवर्ती ने विनती करते हुए कहा, “साहब, अगर भागना होता तो वह गेट खोलकर भागती, खिड़की तोड़कर नहीं। आप पता लगाइए कहीं देर ना हो जाए”।

एक पिता का मन यह मानने को तैयार ही नहीं था कि उसकी बेटी के साथ यह क्या हो गया? उसके ऊपर से पुलिस का टालू रवैया उनकी परेशानी और बढ़ा रहा था। कई घंटे बीत गए लेकिन पुलिस नहीं आई। अमूमन पुलिस ऐसे किसी मामले को पहले प्रेम-प्रसंग से जोड़कर देखती है और इस केस में भी यह हुआ।

जब इस घटना की खबर शहर में आग की तरह फैली तब टाउन डी.एस.पी, थानाध्यक्ष, आई.ओ. अधिकारी दल-बल के साथ पहुंचे। तफ्तीश के दौरान मिली दो डायरी ने आखिरकार इस घटना को प्रेम प्रसंग की ओर मोड़ ही दिया। डायरी में ड्रीम बॉय का ज़िक्र किया गया था। इसके बाद अपहरण की प्राथमिकी दर्ज की गई और अनुसंधान की ज़िम्मेदारी इंस्पेक्टर अमित कुमार को सौंपी गई। पूछताछ हुई पर कोई नतीजा सामने नहीं आया। इधर नवरुणा के माता-पिता ने आत्मदाह की चेतावनी दी‌। 22 अक्टूबर को डी.आई.जी. के आदेश पर नवरुणा की बरामदगी के लिए विशेष टीम तैयार की गई पर 23 अक्टूबर को आई.ओ. बदल गए।

इसी खिड़की से हुआ था नवरुणा का अपहरण

नाले से मिले कंकाल ने दी जांच को नई दिशा

26 नवंबर 2012 को नवरूणा के घर के सामने बने नाले की उड़ाही की गई जिसमें से नर कंकाल को बरामद किया गया। लोगों ने यह आशंका जताई कि कंकाल नवरुणा का हो सकता है। उस वक्त कई तरह की सवाल उठे जैसे इस नर कंकाल से कोई दुर्गंध क्यों नहीं आई? इसका जवाब आया कि हो सकता है मृत शरीर को केमिकल ट्रीटमेंट करके फेंका गया हो।

बाद में उस लाश की एबालमिंग की बात आई। एबालमिंग एक चिकित्सीय प्रक्रिया है जिसमें एक प्रकार का रसायन मृत शरीर की नसों में डाला जाता है और लाश पर उसका संलेपण भी किया जाता है। ऐसा करने से लाश जल्दी नष्ट नहीं होती और किसी प्रकार की दुर्गंध भी नहीं आती। नर कंकाल मिलने के बाद उसकी पहचान तक नहीं हो सकी कि वह लड़के की है या लड़की की। इसी बीच अतुल दंपति से डी.एन.ए. जांच की बात कही गई पर उन्होंने मना कर दिया।

नवरूणा का घर

शहर से लेकर दिल्ली तक विरोध हुए

नवरुणा की बरामदगी नहीं होने पर शहर से लेकर दिल्ली के जंतर मंतर तक धरना प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हो गया। पीड़ित माता-पिता से लेकर आम जनता तक पुलिस से जवाब मांग रही थी कि आखिर न्याय कब मिलेगा। लोग सीबीआई जांच की मांग करने लगे थे। माता-पिता ने पुलिस पर आरोप लगाया कि वह बड़े नेताओं और अफसरों को बचाने का प्रयास कर रही है। इस पर भी सवाल उठे कि जांच की गति धीमी क्यों है? पर बेबस माता-पिता की फरियाद सुनने वाला कोई नहीं था।

इस आंदोलन के दौरान एक नागरिक होने के नाते 30 अक्टूबर 2012 को दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र अभिषेक ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से नवरुणा कांड में पहल करने की गुहार लगाई और दिसंबर के पहले हफ्ते में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। 7 जनवरी 2013 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका स्वीकार कर ली गई और 25 फरवरी को सुनवाई की तारीख तय करके राज्य सरकार और डी.जी.पी. को हाज़िर होने के लिए नोटिस भेजा गया।

सुनवाई की तारीख नज़दीक आते-आते तारीख फिर बढ़ा कर दो महीने बाद निर्धारित की गई मगर फिर सुनवाई नहीं होने के कारण तारीख 1 जुलाई तय कर दी गई। इससे परेशान होकर अतुल चक्रवर्ती ने अर्जेंसी लगाई और सुनवाई 7 मई 2013 को हुई।

यह गौर करने वाली बात है कि संवेदनशील मामलों में जांच अधिकारियों का रवैया कितना लचीला है। माता-पिता अपनी बेटी के न्याय के लिए लड़ रहे हैं मगर तारीख पर तारीख मिल रही है। खैर 7 मई 2013 की सुनवाई में राज्य सरकार के वकील ने फॉरेंसिक रिपोर्ट की मौखिक जानकारी दी। फॉरेंसिक रिपोर्ट भी अधूरी ही रही जिसके कारण जस्टिस लोढ़ा ने डी.एन.ए. जांच की बात पर आपत्ति जताई।

नवरुणा के माता-पिता

अगली तारीख 23 अगस्त को पड़ी मगर उस दिन भी सुनवाई नहीं हुई और उसके बाद कई तारीखें गुज़र गई। 10 अक्टूबर, 11 नवंबर, 25 नवंबर, तारीखें गुज़रती गई। इन सब तारीखों के बाद मुख्यमंत्री नितीश कुमार की नींद खुली और उन्होंने 18 सितंबर 2013 को नवरूणा मामले की जांच के लिए सी.बी.आई. जांच की अनुशंसा कर दी। मगर सी.बी.आई. ने मुख्यमंत्री की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया।

25 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में इस मामले को सी.बी.आई. को सौंप दिया गया। इससे अतुल दंपति को तसल्ली हुई कि अब उन्हें न्याय ज़रुर मिलेगा मगर समय बीतता चला गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के करीब 3 महीने बाद सी.बी.आई. ने 14 फरवरी 2014 को एफ.आई.आर. दर्ज की। 18 फरवरी 2014 को सीबीआई की टीम पूछताछ के लिए निकली जिसमें सीबीआई के तत्कालीन एस.पी. राजीव रंजन, डी.एस.पी. अजय कुमार, नवरुणा कांड के आई.ओ. इंस्पेक्टर आर.पी. पांडे शामिल थे। सीबीआई ने घंटों अतुल दंपति से पूछताछ की जिसमें यह बात सामने आई कि 8 कट्ठा ज़मीन के लिए 12 साल की नवरुणा का अपहरण हुआ।

दरअसल बात यह थी कि अतुल चक्रवर्ती ज़मीन बेचकर कोलकाता बस जाना चाहते थे। अपने घर-परिवार से सहमति मिलने के बाद उन्होंने अपनी ज़मीन का सौदा 1 सितंबर 2012 को तीन करोड़ रुपए में कर दिया। एडवांस रकम चुका दिए गए थे पर इसके 18वें दिन नवरुणा का अपहरण हो गया जिससे इसे भू-माफियाओं से जोड़कर देखा जाने लगा। इधर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य मानवाधिकार आयोग को केस ट्रांसफर कर दिया जो कि सी.बी.आई. जांच शुरू होने के बाद स्थगित कर दिया गया।

डी.एन.ए. जांच के लिए राज़ी हो गए अतुल दंपति

सी.बी.आई. की पूछताछ और नर कंकाल की पुष्टि के लिए अतुल दंपति डी.एन.ए. जांच के लिए राज़ी हो गए और 25 मार्च 2014 को मुज़फ्फरपुर के एस.के.एम.सी.एच. में उन्होंने अपना ब्लड सैंपल दे दिया।

सी.बी.आई. की जांच चल ही रही थी कि इसी बीच एक चौंकाने वाली बात सामने आई कि अतुल चक्रवर्ती पर सिविल कोर्ट में मुकदमा दर्ज है। उन पर आरोप लगा कि उन्होंने ज़मीन की बिक्री के वक्त लिए गए 21 लाख रुपए पचा लिए थे जिसे वह अपनी बेटी के अपहरण का नाटक कर छुपाना चाहते थे। असल में बात यह थी कि ज़मीन का एडवांस देने वाला व्यक्ति उन पर ज़मीन रजिस्ट्री के लिए दबाव बनाने लगा था।

इस पर अतुल चक्रवर्ती हाई कोर्ट के एक वकील से सलाह लेकर ज़मीन रजिस्ट्री के लिए राजी हो गए। वह खरीदार ज़मीन की पूरी कीमत देने के लिए दो महीने का वक्त मांगने लगा। मगर अतुल सिर्फ 15 दिन का वक्त ही देना चाहते थे। इस बात पर भी दोनों पक्षों में बहस हुई थी जिसे सुनने के बाद कोर्ट ने एक माह का समय आवंटित किया था। इसके कुछ दिनों बाद सी.आई.डी. ने खरीदार को एक नोटिस जारी किया जिसमें उससे तीन करोड़ रुपए का हिसाब मांगा गया कि आखिर इतने पैसे उसके पास कैसे आए। इस नोटिस के बाद खरीदार पीछे हटने लगा और वह सिविल कोर्ट के टाइम बॉन्ड के खिलाफ हाई कोर्ट चला गया।

सिविल कोर्ट में दो साल तक केस चलता रहा। अंततः इस मुकदमे को डिस्मिसिव विथ डिफॉल्ट करार दे दिया गया। उधर हाईकोर्ट में सुनवाई का सिलसिला शुरू हो गया मगर हाई कोर्ट ने भी इस मामले को सिविल कोर्ट के आधार पर 6 सितंबर 2016 को डिसमिस टू डिफॉल्ट कहकर खारिज कर दिया। इन तारीखों की चक्की में न्याय पिसता रहा और बेबस माता-पिता आस लगाए रह गए।

अपनी बेटी की साईकिल दिखाते पिता

इस बीच छापेमारी हुई और कुछ लोग पकड़े गए जिससे लोगों के अंदर उम्मीद जागी कि अब सी.बी.आई. अपराधी को पकड़ लेगी पर सभी पकड़े गए लोग सबूत के अभाव में छूट गए। इस मामले में एक नया मोड़ आया जब नवरूणा कांड के याचिकाकर्ता अभिषेक रंजन ने 30 मार्च 2016 को सुप्रीम कोर्ट में अवमानना दायर कर दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुस्त पड़ी सी.बी.आई. को कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाब मांगा।

इस दौरान सी.बी.आई ने 6 मई 2016 को सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखा और जांच रिपोर्ट सौंपने के लिए 31 अक्टूबर 2016 तक का समय मांगा और सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी स्वीकार कर ली। फिर जैसे ही सुनवाई की तारीख नज़दीक आई, सी.बी.आई. ने 30 अक्टूबर 2016 को आवेदन कर 6 महीने का समय देने की गुहार लगाई और यह समय भी उसे मिल गया।

अब सुनवाई 13 अप्रैल 2017 को होनी थी। इस दिन सी.बी.आई. ने अर्जी दी कि उसे एक आदमी का नार्को टेस्ट कराना है जिसके लिए उसे 4 महीने तक का समय चाहिए। इसके बाद सी.बी.आई. को सितंबर तक का समय दे दिया गया। इतनी तारीखों के बाद भी सी.बी.आई. किसी नतीजे पर नहीं पहुंची और यह केस और भी पेचीदा बनता गया।

सी.बी.आई. ने एक बार फिर 6 महीने का वक्त देने की अपील की। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी के साथ मार्च 2018 तक का समय दिया। इसके बाद 20 अप्रैल को मुकदमे की सुनवाई हुई मगर इस दिन भी सी.बी.आई. जांच रिपोर्ट नहीं दे सकी और फिर समय की गुहार लगा कर सितंबर तक का समय मांग लिया। सी.बी.आई. की तारीखें मीडिया की सुर्खियां बटोरती गई पर नतीजे खोखले रहे।

तारीखों का सिलसिला चलता रहा

सुप्रीम कोर्ट में पिछली सुनवाई 2 नवंबर 2018 को हुई थी जिसमें सी.बी.आई. ने पुनः 6 महीने का वक्त मांग लिया। सी.बी.आई. ने तीन साल सिर्फ एक्सटेंशन में ही निकाल दिया। 2012 से 2019 आ गया यानि लगभग 7 साल हो गए। आखिर उस मासूम बच्ची के साथ क्या हुआ इसका जवाब किसी के पास नहीं है। सी.बी.आई. इतने दिनों से जांच कर रही है पर वह ना किसी नतीजे पर पहुंच पा रही है और ना ही उसे कोई सुराग मिला है।

अतुल दंपती का कहना है कि इस केस में रसूखदारों, नेताओं और बड़े अफसरों का हाथ है। कोर्ट तारीखों के पूल बांध रही है जिसकी नींव में न्याय पीसता जा रहा है। एक तरफ मुख्यमंत्री नितीश कुमार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ आंदोलन का सहयोग करते हैं जबकि उन्हीं के राज्य में इस तरीके की घटनाएं होती हैं जिस पर वह खामोश हो जाते हैं। नवरुणा के साथ क्या हुआ इसका जवाब कौन देगा?

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