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“क्या सवर्ण आरक्षण कोई बड़ा बदलाव ला पाएगा?”

सवर्ण आरक्षण

सवर्ण आरक्षण

कुछ माह पहले आर्थिक रूप से कमज़ोर “गरीब सवर्णों” को शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन तथा सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण संबंधित संविधान संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों में पूर्ण बहुमत से पास हो गया। इस अध्यादेश को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजुरी भी प्राप्त हो गई।

आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों द्वारा यह मांग काफी लंबे समय से आ रही थी लेकिन सभी पार्टियां इसपर एकमत नहीं थी। जिसके कारण यह कई सालों से अटका हुआ था मगर अब यह अध्यादेश सर्वसम्मति से संसद के दोनों सदनों में पूर्ण बहुमत से पारित हो गया है।

10% आरक्षण कोटा कुछ बातों का खंडन भी करता है

यह विधेयक संविधान में वर्णित उस बात का  खंडन करता है कि लोगों के बीच अधिकतम 50% आरक्षण ही होना चाहिए। यह इसका भी खंडन करता है कि आरक्षण आर्थिक आधार पर नहीं, बल्कि केवल सामाजिक और जाति के आधार पर ही दिया जा सकता है।

इस विधेयक में इन सब बातों का खंडन करते हुए आर्थिक आधार पर गरीब सवर्णों को 10 % अतिरिक्त आरक्षण का प्रावधान किया गया है, जिसे एक ऐतिहासिक कदम ही कहा जा सकता है।

इस बिल के तहत अब सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन के वक्त 10% आरक्षण उन गरीब सवर्णों को प्राप्त होगा जो सरकार द्वारा उल्लेखित शर्तों पर खरे उतरते हैं।

क्या है 10% आरक्षण के लिए मापदंड

उन शर्तों के तहत यह उल्लेखनीय है कि

आरक्षण के बीच आने वाली मुश्किलें

आरक्षण का मसला शुरू से ही एक जटिल सवाल रहा है। पहले से ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व पिछड़े वर्ग की जातियों को  सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण मिला चुका है। उसके द्वारा यह सख्त आदेश है कि आरक्षण की सीमा को इससे आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।

अतः यह सवाल हमेशा से उठता रहा है कि जो सामान्य वर्ग के गरीब तबके के लोग हैं, उन्हें मुख्यधारा में कैसे जोड़ा जाए? चूंकि संविधान की मूल प्रस्तावना में सभी नागरिकों के विकास के लिए समान अवसर प्रदान करने की बात की गई है लेकिन बार-बार एक सवाल उठ रहा था कि आखिर सामान्य वर्ग के जो गरीब तबके के लोग हैं, उन्हें कैसे समान अवसर प्रदान करवाया जाए ?

इन्हीं सब के बीच उनके लिए भी आरक्षण की मांग उठाई जाने लगी लेकिन बड़ा सवाल यह था कि आरक्षण कैसे दिया जाए? एक-तरफ सर्वोच्च न्यायालय आरक्षण के लिए सीमा तय कर चुकी है। उसके अनुसार उससे आगे की सीमा बढ़ाया नहीं जा सकता तो दूसरी ओर पहले से आरक्षण प्राप्त कर रहे वर्गों से भी कटौती करना भी असंभव था।

अतः इस संबंध में सरकार के सामने संविधान में संशोधन करने के सिवा कोई और तरीका भी नहीं था। इस प्रकार सरकार ने काफी चालाकी से आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लिए आरक्षण का मसौदा तैयार किया।

इसे सरकार द्वारा उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम कहा जा सकता है। उनका विचार है कि इससे संवैधानिक प्रावधानों में किसी भी प्रकार की कोई तोड़-मरोड़ नहीं किया जाएगा। अन्य जातियों को जो आरक्षण मिल रहा है,उनमें किसी भी प्रकार की कोई कटौती नहीं की जाएगी।

जैसा कि सभी लोग जानते हैं कि अभी तक जो आरक्षण मिल रहा था, वह सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ेपन को आधार बनाकर दिया जा रहा था। जैसा कि संविधान में वर्णित है। परंतु वर्तमान में आरक्षण के लिए जो रूप रेखा तैयार की गई है, वह किसी जाति या धर्म विशेष के लिए नहीं है। यह आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर दी जा रही है। इसके अंतर्गत सभी धर्मों व जातियों  के आर्थिक रूप से पिछड़े लोग आ जाएंगे।

हमारे संविधान की मूल भावना गरीबों को मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने की है। इसलिए सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम काफी सराहनीय है। परंतु कुछ राजनीतिक दलों ने इसका विरोध भी किया है। अतः सरकार को चाहिए कि सभी दल मिलकर इस आरक्षण संबंधी प्रावधान का सटीक तरीके से समीक्षा करें।

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