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कला पाठशाला: यहां बच्चे सीखते हैं जीवन जीने की हर कला

कक्षा पाठशाला

कक्षा पाठशाला

“अरे, वो देखो उस बच्चे को। ना कपड़े पहनने का सलीका है, ना बोलने का और ना ही खाने का। बात-बात पर अभी से ही मुंह पर गाली है और कैसे कचरे में से जूठा खाना निकाल कर गंदे हाथों से खा रहा है। उसे पता नहीं क्या कि बैक्टीरिया आ जाएगा और तो और नशे से इसकी आंखें भी चढ़ी हुई हैं। पूरे शरीर में कीचड़ लगा रखा है, साथ ही शरीर से इतनी बदबू आ रही है, मानो महीनों से ना नहाया हो। चलो यार यहां से वरना हमें भी बीमारी हो जाएगी। कैसी जानवरों जैसी ज़िन्दगी जीते हैं ये लोग? इन सब गंदी आदतों से कितनी खतरनाक बीमारी हो सकती है इन्हें। ये बीमारियां बाकी लोगों तक भी फैल सकती हैं।”

जो बच्चे झुग्गियों या सड़क किनारे रहते हैं, उनके संदर्भ में ऐसी बातें लोग कहा करते हैं। लोगों को क्या पता कि ये बच्चे झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं। चारों तरफ जमा कूड़े-कचरे के ढेर के बीच। इनके माता-पिता व परिवारजन आर्थिक रुप से बेहद कमज़ोर वर्ग के होते हैं।

कोई कूड़ा बीनकर तो कोई दूसरों के घर चूल्हा-चौका व मज़दूरी आदि द्वारा जीविका चलाने की कोशिश करते हैं। दो वक्त के खाने तक का ठिकाना नहीं होता यहां फिर क्या अच्छा और क्या बुरा है, किस तरह से जीवन जीना चाहिए, शिक्षा व साफ-सफाई का क्या महत्त्व है, यह सब बातें इन मासूम बच्चों को कैसे पता चलेगी।

ऐसा ही एक इलाका है “कौशाम्बी” के नीलम विहार में जो सीमंत विहार सोसाइटी के सामने है। दोनों इलाके में ज़मीन-आसमान का अंतर है। जहां ‘सीमंत विहार’ में ऊंची-ऊंची बिल्डिंगें हैं, जहां संपन्न घराने के लोग रहते हैं। वहीं दूसरी तरफ उसके ठीक सामने ‘नीलम विहार’ में चारों तरफ शहर से लाए गए कचरों के ढेर के बीच कई सारी झोपड़ियां हैं, जिसमें बेहद गरीब लोग अपने तरीके से अपनी दुनिया बसाए हुए हैं और उनके बच्चे भी कचरों को ढोते हुए, कम उम्र में ही मज़दूरी का बोझ अपने कंधे लेते इधर-उधर दिन भर भटकते रहते हैं ।

एक दिन यहां कुछ अलग हुआ जिससे इनकी ज़िन्दगी की दिशा बदल गई। “बीइंग सोशल” एनजीओ की एक वॉलंटियर ‘स्निग्धा बनर्जी’ की नज़र इन बच्चों पर पड़ी और उन्हें इन मासूम बच्चों के जीवन में शिक्षा, कामयाबी व खुशियों भरी आशा की किरण लाने का एक आइडिया आया। “बीइंग सोशल” एनजीओ के अध्यक्ष गौरव सिंह व अन्य सभी वॉलंटियर ने उनकी सलाह का स्वागत करते हुए वहां पर ‘कला पाठशाला’ की नींव रखी।

यह एक साप्ताहिक पाठशाला है, जो कि फिलहाल हर शनिवार व रविवार को ‘कौशाम्बी’ के नीलम विहार में चलाई जाती है। इसके अलावा कला पाठशाला की शाखा बिहार के पटना में भी है। यहां पर बच्चों को गुणवत्ता पूर्वक शिक्षा दी जाती है। उन्हें सिर्फ एक बार पढ़ाकर टाला नहीं जाता बल्कि इस तरह से बार-बार प्रैक्टिस कराया जाता है ताकी उन्हें समझ में आए।

फोटो साभार: फेसबुक

इस पाठशाला की खास बात यह है कि यहां सिर्फ कोर्स की किताबें ही नहीं बल्कि डांस-गायन, कुकिंग और पेंटिंग आदि कला भी सिखाए जाते हैं, जो उनके लिए भविष्य में आत्मनिर्भर बनने के कई दरवाज़ें खोल सके। यही ईनाम है इस पाठशाला में पढ़ाने वाले वॉलंटियर के लिए कि इन बच्चों में हुनर भरना और निखारना। यहां पर मुफ्त शिक्षा के अलावा ड्रेस, पुस्तकें, कॉपी-सिलेट, पेंसिल और ब्रश-पेस्ट आदि बेसिक सामान भी बच्चों को दी जाती है।

‘कला पाठशाला’ में किताबी पढ़ाई के अलावा इन आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों को जीने की सही कला भी सिखाई जाती है। जैसे, कैसे बैठते-उठते हैं, समय पर स्कूल आना, झूठ नहीं बोलना, साफ-सफाई का ध्यान रखना और तहज़ीब से रहना आदि, जो कला उन्हें घर में नहीं मिल सकती।

यहां हर पर्व-त्यौहार इन बच्चों के साथ केक काटकर, मिठाई बांटकर और तरह-तरह के हेल्थ व अवेयरनेस कैंपेन का आयोजन करके मनाया जाता है, जिससे यह बच्चे और इनके अभिभावक जीवन जीने की सही कला सिख सके और देश की तरक्की में अहम योगदान दे सके।

फोटो साभार: Facebook

हाल ही में एक वॉलंटियर ‘श्रेया’ ने एक दिन एक बच्चे की आंखें चढ़ी हुई पाई। पता करने पर पता चला कि वह 6 साल का बच्चा ड्रग्स का आदि हो गया था। उसने समय रहते उस बच्चे को इतने बड़े खतरे से बचा लिया। अगर यह एनजीओ ‘बीइंग सोशल’ यहां काम नहीं कर रहा होता तो शायद वह बच्चा और उसके अभिभावक भूल-भुलैया में ही फंस कर रह जाते।

बीइंग सोशल एक रजिस्टर्ड एनओ है, जिसने 28 मई 2017 को इस 2 दिन की साप्ताहिक ‘कला पाठशाला’ की नींव ‘कौशाम्बी’ में डाली थी, जिसे अब रेगुलर ‘कला पाठशाला’ बनाए जाने की योजना चल रही है। इस देश में आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों के लिए एक नहीं हज़ारों कला पाठशालाओं की ज़रूरत है।

हर राज्य और हर शहर में ज़रूरत है वरना यह मासूम बच्चे ड्रग्स और आतंकवादी एजेंसी के चंगुल में फंस कर गुमराह होकर अपनी और दूसरों की ज़िंदगी बर्बाद करते रहेंगे। देश की प्रगती के लिए ज़रूरी है इन बच्चों के भविष्य को सही दिशा देने की। भारत की सवा सौ करोड़ आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी अशिक्षित है।

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