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जुमलेबाज़ी करने की कला को नेता जन-संपर्क का नाम क्यों देते हैं?

राजनीतिक रैली

राजनीतिक रैली

चुनावी माहौल हर समय एक जैसा ही रहा है। बदलते समय के साथ बस कुछ नए ट्रेंड आते गए। मुझे अपने बचपन के समय का चुनाव अभी भी याद है। यह पहले ही घोषणा हो जाती थी कि इस दिन ये नेता आने वाले हैं फिर पूरे क्षेत्र में एक अलग ही माहौल बन जाता था।

सबके दिलों में एक ही चाह होती थी कि नेता जी को देखना है। आसमान में हेलीकॉप्टर दिखते ही सारे लोग सरपट उसकी तरफ भाग पड़ते थे। दूर से आने वाले लोग तो काफी पहले से ही जमा हो जाते थे।

यदि एक बच्चे के नज़रिए से देखें तो कुछ समझ नहीं आता था कि क्या हो रहा है। यह समझ नहीं आता था कि आखिर ऐसा कौन सा अवतार आया है, जिसे देखने के लिए लोग अपने काम-धाम छोड़कर इतनी भीड़ में आए हैं।

कोई दशहरे का पर्व भी तो नहीं है। गाजे-बाजे और स्टेज देखकर ऐसा लगता था कि दो-चार दूल्हों का एक साथ जयमाला हो रहा है। खैर, हर कोई तालियां बजाता, चीखता और चिल्लाता रहता था। उसी भीड़ में से कोई नारे भी लगा रहा था।

फोटो साभार: Getty Images

इन सब में मेरे लिए सिर्फ ‘हेलीकॉप्टर’ देखने लायक था। ज़्यादा नहीं, बस दस-पंद्रह मिनट में सारा खेल खत्म हो जाता था, जिनको जो भी जुमलेबाज़ी करनी होती थी, वे करके चले जाते थे। यह बस पंद्रह मिनट का मेला होता था, जिसमें हर उम्र, जाति और धर्म के लोग भटक जाते थे।

लगभग पंद्रह-सोलह साल के बाद भी यह सिलसिला जारी है। इस देश का यह दुर्भाग्य है कि अब उस हेलीकॉप्टर से उस नेता का बेटा आता है। कल तक जो आम जनता मैदान में नेताओं के जुमलों पर तालियां बजा रही थी, वह आज उनके बेटे के लिए भी उसी जगह बैठकर तालियां बजा रही है।

वही नारे, वही वाह-वाही और आज भी वही 15 मिनट का मेला लग रहा है। जनता मेहनत करते-करते सूख कर कांटा हो गई है। जनता आज भी घर, नौकरी और अनाज की तलाश में मेहनत कर रही है और नेता जी हैं कि 10 मिनट के लिए हेलीकॉप्टर से आकर कुछ जुमले पढ़ के चले जाते हैं। इस ‘जुमला’ पढ़ने की कला को वे ‘जन संपर्क’ का नाम दे देते हैं, जबकि जनता की समस्याओं और दुखों से उनका कोई वास्ता नहीं रहता है।

ये नेता चुनाव में अरबों रुपए खर्च करके कहते हैं कि वे हमें रोज़गार देंगे और हमारी आमदनी बढ़ाएंगे लेकिन बदले में चुनाव का सारा खर्च हमारे सर मढ़ देते हैं। जब ये नेता हाई-टेक मंच के ज़रिये गरीब जनता से कहते हैं कि वे उनके सेवक हैं, तो उस समय लगता है कि भारतीय लोकतंत्र के लिए इससे बड़ा उपहास क्या हो सकता है।

ये नेता वादे तो ऐसे करते हैं जैसे 130 करोड़ जनता की बोली लग रही हो। जो पार्टी जितनी ऊंची बोली लगाएगी, वही सत्ता में आएगी फिर भी यह जनता खुद को बिकती देख कर भी तालियां बजाती है।

मेरी नज़र आज भी नेताओं पर ना जाकर उनके हेलीकॉप्टर पर ही जाती है। इसी से पता चलता है कि उनके और हमारे जीवन के स्तर में कितना फर्क है।

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