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“क्यों इस देश को कन्हैया जैसे नेता की ज़रूरत है”

कन्हैया कुमार

कन्हैया कुमार

एक नौजवान लड़का अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने जब बिहार से दिल्ली आता है, तब उसे अंदाज़ा भी नहीं होता है कि उसका भविष्य कैसा होगा। आज भी देश में गरीब घर के बच्चों का कामयाबी की राह पर चलना सामान्य बात है। जी हां, मैं कन्हैया कुमार की बात कर रहा हूं।

क्या गरीब घर के बच्चों को अच्छे स्कूल में जाने का कोई हक नहीं है? इन बच्चों के माता-पिता किसी सेठ से पैसे लेकर इन्हें अच्छी जगह पढ़ने नहीं भेजते हैं बल्कि अपनी मेहनत की कमाई से भेजते हैं। लोगों की सोच यह है कि जो शोषित हैं, वे हमेशा शोषित ही रहें। अगर उन्होंने शिक्षा हासिल कर ली तो वे शोषक वर्ग को चुनौती दे देंगे। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस देश में कन्हैया जैसे नेता की ज़रूरत है।

कन्हैया कुमार। फोटो साभार: फेसबुक

मज़दूर का बेटा क्या केवल सेठों की गुलामी करने के लिए ही बना है? शिक्षा पर क्या केवल धनी लोगों का अधिकार है? यह एक नई शुरुआत हुई है। गरीब तबके के लोग जब भी आगे बढ़ते हैं तो उन्हें रास्ते से हटाने की पूरी कोशिश की जाती है। इन लोगों को यह भूलना नहीं चाहिए कि रावण ने हनुमान को एक साधारण बंदर समझने की भूल की थी और हनुमान ने पूरी लंका जला दी थी। अब इस सांप्रदायिक लंका का भी समय आ गया है।

सत्ता के नशे में चूर आज के रावण भूल गए हैं कि एक गुमशुदा छात्र की मां रोते-रोते सड़कों पर घसीटी गई, एक छात्र ने आत्महत्या कर ली लेकिन न्याय देने की बजाय जिन लोगों ने आवाज़ बुलंद की, उन्हें ही देशद्रोही साबित करने की कोशिश की गई। जनता ये सब नहीं भूली है।

जब देश इतने मुश्किल दौर से गुज़र रहा था तब देश के किसानों, मज़दूरों, बेरोज़गारों की आवाज़ बना एक युवा छात्र नेता, जिसे देशद्रोही साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई।

चुनाव के समय सरकार अपने काम की समीक्षा करने की बजाय सेना और वैज्ञानिकों के किए गए कामों का श्रेय क्यों ले रही है? क्या सरकार की उपलब्धियों में शहरों के नाम बदलने के अलावा कुछ नहीं है? सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार जैसे बुनियादी मुद्दों पर चुनाव क्यों नहीं लड़ रही है? सरकार बेरोज़गारी के सवालों से क्यों भाग रही है? सरकार बेरोज़गारी के आंकड़े क्यों दबा रही है?

इन सभी मुद्दों पर बात करने आज देश के कई क्रांतिकारी सोच रखने वाले नेता सामने आ रहे हैं, जो संविधान की रक्षा में अपनी अहम भूमिका निभाएंगे। उनसे यह उम्मीद है कि वे शिक्षा का बाज़ारीकरण होने से रोकेंगे और न्याय के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे।

इसके साथ ही आरबीआई और सीबीआई जैसी संस्थाओं को भी सभी धर्म निरपेक्ष नेताओं के साथ मिलकर संकट से उबारेंगे और देश में एक मज़बूत उम्मीद बनकर आएंगे।

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