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“पिछले 5 वर्षों में केवल धर्म की राजनीति को बढ़ावा मिला है”

नरेन्द्र मोदी

2019 के लोकसभा चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक पार्टियों द्वारा जाति और धर्म की राजनीति की जा रही है। यह बहुत ही चिंता का विषय है क्योंकि इन चुनावों में युवा, पढ़े लिखे और जागरूक वोटर्स का औसत प्रतिशत करीब 65% है। भारत में यह केवल 18 से 35 आयु के युवाओं का प्रतिशत है।

भारत विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है तथा विश्व के कई विकसित और अत्याधुनिक देशों में भारत के युवाओं की प्रतिभा का लोहा मनवाया जा रहा है

विश्व के बड़े बिज़नेस समूहों में भारत के युवाओं ने अपना लोहा मनवाया

विश्व के बड़े उद्योगों और बिज़नेस समूहों में भारत का युवा वर्ग नेतृत्व कर रहा है। विश्व की दस बड़ी कंपनियों के सीईओ में से 7 भारतीय हैं। देश के लिए बड़े ही गर्व की बात है कि हमारे देश के युवाओं ने पूरी दुनिया में नाम रोशन किया है।

चेन्नई के सुंदर पिचाई गूगल के सीईओ हैं, हैदराबाद के सत्य नाडेला माइक्रोसॉफ्ट, गाज़ियाबाद के निकेश अरोड़ा पालो अल्टो नेटवर्क, तेलंगना के शांतनु नारायण एडोब, दिल्ली के राजीव सूरी नोकिया, जॉर्ज कुरियन नेट एप और इंदिरा नूरी अमेज़न संभाल रही है।

सुंदर पिचाई। फोटो साभार: Getty Images

ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे कि भारत के प्रतिभावान नौजवानों ने अपनी कला और प्रतिभा का लोहा हर क्षेत्र में मनवाया है। इसके बावजूद भी आज 21वीं सदी में देश की सवा सौ करोड़ जनता को सबसे बड़े लोकतांत्रिक पर्व में कई वर्ष पीछे धकेला जा रहा है।

आज भी समाज को जाति और धर्म के नाम पर बांट कर वोट मांगे जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने कई राज्यों के वरिष्ठ नेताओं के प्रचार करने पर प्रतिबंध लगाया है। यह सच में बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि पढ़े-लिखे और जागरूक मतदाता भी धर्म और जाति के दलदल में फंसते जा रहे हैं।

मीडिया चैनल्स भी टीआरपी के लिए साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दे रहे हैं

मुख्य टीवी चैनलों में भी जिस प्रकार लोकसभा क्षेत्रों के वोटरों को जातियों में बांट कर दिखाया जाता है, वह भी तर्कसंगत नहीं है। यह दलित मतदाता क्षेत्र है, यह ब्राह्मण सीट है, यहां राजपूतों की आबादी अधिक है, ऐसी खबरें आने से देश का युवा भी इस जाति और धर्म के जाल में फंसता नज़र आ रहा है।

चुनावी माहौल में जनता को भ्रमित करने का प्रयास किया जा रहा है। अधिकांश मीडिया समूह अपने चैनलों, वेबसाइट और समाचार पत्रों के माध्यम से इस बात को लगातार बढ़ावा दे रहें हैं। वे यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि देश में धर्म और जाति की सियासत जनहित और जन समस्याओं की सियासत से कहीं अधिक बलशाली है।

धर्म के नाम पर युवाओं को भटकाया जा रहा है

देश की युवा पीढ़ी को जनहित के मुद्दों से भटका कर धर्म और जाति जैसे मुद्दों पर लाया जा रहा है। 2019 के चुनावी प्रचार में सभी राजनीतिक दल अपनी जीत के लिए धर्म की राजनीति करने से ज़रा भी परहेज़ नहीं कर रहे हैं। इस अत्याधुनिक भारत में ये बड़े नेता और मुख्य पार्टियां युवा पीढ़ी को गलत रास्ते पर धकेल रहे हैं।

फोटो साभार: Twitter

जनहित के किसी मुद्दे पर कोई मीडिया बात नहीं करना चाहती है। मीडिया सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण करके अपना उल्लू सीधा कर रही है। भारतीय सेना के नाम पर वोट मांगने से भी परहेज़ नहीं किया जा रहा है।

धर्म की सियासत करना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण

देश में आदर्श राजनीति के मूल सिद्धांत कहीं गुम हो चुके हैं। जिस भारत ने पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई है, वह इन चुनावों में धूमिल होती दिखाई दे रही है। अब इसका निर्णय हमारे देश का पढ़ा-लिखा और जागरूक युवा करेगा कि धर्म और जाति में बंट कर वोट करना है या फिर जनहित के मुद्दों और क्षेत्र की जनता की समस्याओं पर मतदान करना है।

युवा पीढ़ी को समझना चाहिए कि धर्म की राजनीति करने वाले चंद नेता सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं और युवाओं को बेरोज़गारी, महिला सुरक्षा, महंगाई, सड़कों का संरक्षण, जैसे मुद्दों से भटकाना चाहते हैं।

चुनाव आयोग को इस बात को समझना चाहिए और धर्म की राजनीति करने वाले दलों को मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। उसे उनके प्रचार, प्रसार पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना चाहिए।

युवा पीढ़ी का वोट तय करेगा 2019 की जीत

जो नेता सिर्फ जाति, धर्म, समुदाय पर ही बात करते हैं, उनको इन चुनावों में देश की युवा पीढ़ी को आईना दिखाना चाहिए और जनहित, विकास और क्षेत्र के मुद्दों पर मतदान करना चाहिए। यदि युवा वर्ग आज नहीं समझा तो कभी नहीं समझ पाएगा।

फोटो साभार: Getty Images

इस बार के लोकसभा चुनावों में देश के कई राज्यों में लोकसभा के प्रत्याशी सिर्फ नरेंद्र मोदी और भारतीय सेना के नाम पर वोट मांगते दिखाई दे रहे हैं। देश में यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि एक ही व्यक्ति देशभक्त है और किसी ने कुछ भी नहीं किया है।

देश की आज़ादी के 35 वर्ष बाद जिस पार्टी की स्थापना 1980 में होती है, वह आज युवाओं को भटकाने का प्रयास कर रही है कि देश में जो भी तरक्की और विकास हुआ है वह केवल पांच वर्षो में ही हुआ है।

2019 चुनावों में बैकफुट पर दिख रही है भाजपा

2014 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने विकास के मुद्दों को ज़ोर शोर से उठाया था और जनता से झूठे वादे किए जिनमें दो करोड़ युवाओं को प्रति वर्ष रोज़गार, विदेशों से काला धन लाकर सभी के खाते में 15-15 लाख रुपए डालने का वादा, किसानों की कर्ज़ माफी, मुख्य रूप से शामिल हैं।

आज सभी मुद्दों पर बीजेपी का राष्ट्रीय नेतृत्व पिछड़ता दिखाई दे रहा है। उनका मकसद सिर्फ लोगों को मुद्दों से भटका कर हिन्दू-मुस्लिम के दलदल में धकेलना है। पिछले पांच वर्षों में जिस प्रकार से बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा धर्म और जाति की राजनीति की गई, उससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

कश्मीर में कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों के विषय की बात हो या हिन्दू बहुल राज्यों में राजपूत, ब्राह्मण, दलित, जाट, में बांटने की बात हो या बंगाल, बिहार और उत्तर पूर्व राज्यों में धर्म के मुद्दों को उठाने की बात हो, युवा पीढ़ी को यह सोचना पड़ेगा कि वह धर्म और जाति को चुने या मुद्दों को।

मुख्य चुनाव आयुक्त और विभिन्न राज्यों में नियुक्त हुए चुनाव अधिकारियों को सुनिश्चित करना चाहिए कि जनसभाओं में नेतागण किस भाषा का प्रयोग कर रहें है। सोशल मीडिया के अधिकांश प्लेटफॉर्म पर धर्म और जाति के नाम पर ध्रुवीकरण किया जा रहा है। समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों में धर्म और जातियों के वोट बैंक की सियासत पर पूर्ण प्रतिबंध लगना चाहिए।

धर्म और जाति के खिलाफ युवाओं को जागरूक होने की आवश्यकता

युवाओं को एकजुट होकर इस धर्म की सियासत से लड़ना पड़ेगा। उन्हें धर्म, जाति को छोड़कर अपने उम्मीदवार और क्षेत्र के मुद्दों पर वोट करना चाहिए, जिसके कारण देश को ऐसा नेतृत्व मिले जो धर्मनिरपेक्ष हो और सभी धर्मों के लोगों को समान रूप से साथ लेकर चल सके।

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