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धार्मिक उन्माद की लहरों में कहीं डूब ना जाए विकास की नैय्या

धार्मिक उन्माद

धार्मिक उन्माद

चुनावों का दौर है। हिंदू-मुसलमान एक बार फिर खतरे में है। मेन स्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया पर सही-गलत खबरों और तस्वीरों का आवागमन जारी है। आज सोशल मीडिया पर हर तीसरा इंसान आपको ‘नेहरू के राज़’, ‘सोनिया गांधी की इटली की तस्वीरें’ और ‘राहुल गांधी मुस्लिम है’, जैसे पोस्ट शेयर करते दिख जाएगा। भाजपा-कॉंग्रेस, सपा-बसपा, तीसरा मोर्चा, वाम दल सभी की तरफ से ‘ट्रोल सेनाएं’ अपने-अपने काम में लग चुकी हैं।

100 करोड़ हिन्दुओं की सुरक्षा का ज़िम्मा किसका?

इन तमाम खबरों के मध्य, जो सबसे हास्यास्पद खबर चलाई जा रही है, वह यह है कि अगर मोदी फिर से पीएम नहीं बने तो हिंदुत्व खतरे में आ जाएगा। मेरे एक बेहद करीबी रिश्तेदार हैं, उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर किया, जिसमें कुछ यूं लिखा था “18 करोड़ मुसलमानों और 7 करोड़ ईसाईयों की सुरक्षा के लिए 22 पार्टियां हैं पर 100 करोड़ हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए बस एक आदमी है”।

फेसबुक पर यह तस्वीर तेज़ी से साझा की जा रही है। फोटो सोर्स- फेसबुक

इशारा ज़ाहिर तौर पर पीएम मोदी की तरफ था। हां, तो यह जो मेरे रिश्तेदार हैं, वह होली, दिवाली, छठ इत्यादि में भी घर आने का समय नहीं निकाल पाते और तब इनका हिंदुत्व भी खतरे में नहीं पड़ता पर अभी चुनाव नज़दीक है, तो इनका हिंदुत्व खतरे में है और चुनाव जीतकर मोदी जी इनका हिंदुत्व सुरक्षित करा देंगे।

जनेऊ की कसम खाकर बोलो ब्राह्मण को वोट दोगे-

बहुत पहले, 2003 में तिग्मांशु धुलिया की एक फिल्म आई थी, ‘हासिल’। इरफान खान, जिमी शेरगिल और आशुतोष राणा जैसे मंझे हुए कलाकारों से सजी इस फिल्म को लोगों ने खूब सराहा। इस फिल्म की पटकथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय (माफी चाहूंगा, अभी इलाहाबाद विश्वविद्यालय का नाम ‘प्रयागराज यूनिवर्सिटी’ नहीं हुआ है इसलिए आप भी इलाहाबाद ही पढ़िए) की स्टूडेंट पॉलीटिक्स के इर्द-गिर्द घूमती है। इसका ज़िक्र यहां इसलिए कर रहा हूं क्योंकि फिल्म में एक जगह निवर्तमान छात्र संघ अध्यक्ष गौरी शंकर पांडेय (आशुतोष राणा) के छोटे भाई को वोट मांगने के लिए छात्रावास जाकर स्टूडेंट्स से जनेऊ हाथ में लेकर कसम खिलाते दिखाया गया है, “जनेऊ की कसम खाओ कि वोट हमें ही दोगे”।

मतलब साफ है कि अगर गौरी शंकर पांडेय का छोटा भाई चुनाव जीत जाता तो कैंपस में ब्राह्मण सुरक्षित हो जाते। खैर, वह चुनाव हार जाता है।

वह कैंपस का चुनाव था, यह देश का चुनाव है। वह फिल्म थी, यह हकीकत है। अगर ऐसे नेताओं के हाथों मेरा धर्म सुरक्षित होने लगा तो लानत है। मेरा धर्म, मेरे साथ मेरे जन्म से है। कोई नेता चुनाव जीते या हारे इससे ना तो मेरे धर्म पर कोई सकारात्मक ना ही कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। किसी नेता के चुनाव जीतने या हारने से मेरे धर्म का क्या लेना-देना? मेरा धर्म जीवन-प्रत्यंत है, यह पांच-पांच साल के अंतराल में नहीं बदलता।

संवैधानिक ढांचे पर प्रहार-

संविधान के अनुच्छेद क्रमांक 25 और 26 के अनुसार हर व्यक्ति को अपनी मर्ज़ी का धर्म अपनाने और उसे अपने तरीके से निभाने का पूरा अधिकार है। अगर कोई कहता है कि किसी नेता के चुनाव जीतने से उसका धर्म सुरक्षित होता है, तो वह ना सिर्फ धार्मिक भावनाओं को आहत करता है बल्कि विधि द्वारा स्थापित इस देश के संवैधानिक ढांचे पर भी प्रहार करता है।

अफवाहों से बचे हमारा धर्म सुरक्षित है-

मैं उच्च जाति में जन्मा हिंदू हूं और मुझे नहीं लगता है कि मेरा धर्म खतरे में है। मेरा मानना है कि मेरा धर्म तब तक खतरे में नहीं आएगा जब तक मैं इसे सही ढंग से निभाते रहूंगा। मेरे धर्म को किसी शेर की ज़रूरत नहीं है।

हमारा धर्म तब सुरक्षित होगा, जब हम इसका सही से अनुपालन करें। इसके नियमों और विचारों को समझें, होली, दिवाली, छठ इत्यादि में घर जाएं। सोशल मीडिया पर ‘वायरल तस्वीरों’ और ‘मीम’ के ज़रिए हमारे धर्म को समझना और समझाना छोड़कर अगर हम अपनी धार्मिक पुस्तकों और ग्रंथों का अध्ययन कर लें तो ज़्यादा बेहतर ढंग से अपने धर्म को समझ पाएंगे।

डर लगता है कि कहीं इन सबके बीच विकास का मुद्दा पीछे ना रह जाए, इसलिए लोगों से अपील है कि 11 अप्रैल से मतदान शुरू है, अपने क्षेत्र के लिए सही उम्मीदवार चुनिए और अगर शेर देखना हो तो चिड़ियाघर चले जाइए।

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