संबित पात्रा जी पुरी से चुनाव लड़ रहे हैं और ज़ोर शोर से प्रचार कर रहे हैं। उनकी कई तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर आई हैं, जहां वह किसी गरीब के घर खाना खाते हुए दिख रहे हैं। हालांकि, यह सब हर नेता करता है और इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है।
मैंने पात्रा जी के प्रचार के दौरान उनका एक इंटरव्यू देखा, जिसमें उन्होंने वह बात कही जो मेरे लिए चौंकाने वाली थी। जब पत्रकार ने पूछा, “पुरी में लोग नरेंद्र मोदी जी को वोट दे रहे हैं या संबित पात्रा को दे रहे हैं?” इस पर पात्रा जी ने बेझिझक कह दिया,
वोट लोग नरेंद्र मोदी जी को ही दे रहे हैं, हम क्या चीज़ है? हम तो उनकी गिलहरी है। छोटे से कार्यकर्ता है, जो नरेंद्र मोदी के आइडियाज़ को लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
अब इस बयान से कई बातें मुझे समझ आईं, जो चिंताजनक है। जहां एक नेता जो जनता का प्रतिनिधि बनने के लिए वोट मांग रहा है, वह तो पहले से मोदी जी का प्रतिनिधि बन चुका है। भारत में हर एक सांसद लोगों का प्रतिनिधि होता है ना कि सरकार का या किसी व्यक्ति विशेष का।
वह खुद के विकास के वादों पर वोट मांगता है। जनता यह समझकर वोट देती है कि हमारे क्षेत्र का सांसद हमारी समस्याओं को संसद में रखेगा और सरकार तक पहुंचाएगा पर वह भावी सांसद तो पहले ही किसी और का हो गया है, वह किसी और के माध्यम से अपने लिए वोट मांग रहा है।
वह जनता के विकास के लिए किसी और पर निर्भर है। उसकी बातों से लग रहा है कि वह जनता की बजाय किसी और को जवाबदार है। लगता है, जब जनता उनके पास अपनी समस्या लेकर जाएगी तो वह साफ-साफ बोल देंगे,
मैं कुछ नहीं कर सकता, हम कौन होते हैं, जब मोदी जी जो चाहेंगे वह हो जायेगा।
वह सिर्फ एक ही व्यक्ति की चाटुकारिता में ही व्यस्त रहेंगे और जनता को भूल जाएंगे। अगर सरकार ने उनके क्षेत्र की समस्या पर ध्यान नहीं दिया तो वह भी चुप बैठ जाएंगे क्योंकि वह तो सरकार की गिलहरी हैं। अगर मोदी जी का कोई विचार उन्हें पसंद नहीं आया तो वह उनका विरोध नहीं करेंगे और जनता को बहलाते रहेंगे।
देश की संसदीय प्रणाली में हर सांसद, जब तक वह मंत्री नहीं है, स्वतंत्र होता है और सरकार से जवाब मांगता है। वह सरकार पर अपने क्षेत्र की समस्या को लेकर दबाव बनाता है। संबित पात्रा तो पहले ही किसी और की गिलहरी बन गए हैं, तो जनता की कौन सुनेगा।
उनका यह बयान तो देश की पूरी संसदीय प्रणाली के नियमों के ही विरुद्ध है, जहां सांसद सिर्फ अपने क्षेत्र की जनता का प्रतिनिधित्व करता है। उन्हें अपने आप पर इतना भरोसा भी नहीं है कि खुद के दम पर वोट मांग सके। जब किसी और व्यक्ति की वजह से उन्हें वोट मिलेंगे तो यह स्वाभाविक है कि वह काम भी उसी के लिए करेंगे। वैसे यह चुनाव आज व्यक्ति विशेष पर ही लड़ा जा रहा है और सारे नेता एक ही व्यक्ति के भरोसे हैं पर संबित पात्रा जी का यह खुलकर दिया हुआ बयान इस बात की संपूर्ण पुष्टि करता है जो एक लोकतंत्र के लिए सही नहीं है।