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“जया प्रदा पर आज़म खान का बयान यौन हिंसा की श्रेणी में आता है”

लोकसभा चुनाव का समय है। पहले चरण के लिए मतदान हो चुके हैं और दूसरे चरण के लिए राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं के बीच वोट की अपील कर रही हैं। ज़ाहिर है कि मतदाताओं के बीच पहुंचने का सबसे कारगर तरीका जनसभाएं हैं। वे जनसभाएं जो तमाम पार्टियों के दिग्गज कहे जाने वाले नेताओं अथवा प्रतिनिधियों से सुशोभित होती हैं। जहां, एक भव्य मंच बनाया जाता है। कुर्सियां लगी होती हैं और कद तय करता है कि कौन कहां विराजमान होने वाला है?

वहां भारी भीड़ जमा होती है। उम्मीद जताने वाली भीड़, नाश्ते का पैकेट का लालच देकर जुटाई गई भीड़, कोई कामकाज ना होने की वजह से किसी तरह चकाचौंध में वक्त बिता लेने की सोचकर आने वाली भीड़ या फिर हैलिकॉप्टर के साथ सफेदपोश नेताजी को देखने आने वाली भीड़।

कुल मिलाकर ये भीड़ ही होती है। कहते हैं कि इनके मत में किसी भी देश का भविष्य तय करने का माद्दा होता है। हां, वह अलग बात है कि ये भीड़ जयकारा लगाती, झंडा लहराती और नेता जी की कही किसी भी सही-गलत बात पर किलकारियां भरती नज़र आती है। जैसा कि रामपुर में हुआ, उस आज़म खान की रैली में जिनकी राजनैतिक जीवन की कुल जमापुंजी इतनी है कि वो किसी के भी खिलाफ गंदा और ज़हरीला बोल लेने की गज़ब की प्रतिभा रखते हैं।

जया प्रदा पर आज़म खान का बयान यौन हिंसा जैसा है

फोटो सोर्स- Getty

समाजवादी पार्टी के दिग्गज और वरिष्ठ नेता कहे जाने वाले आज़म खान ने अभिनेत्री और भाजपा प्रत्याशी जया प्रदा को लेकर अभद्र, अश्लील और महिला विरोधी बयान दिया। इस बयान को किसी भी महिला के प्रति यौन हिंसा की संज्ञा दी जा सकती है, जैसा कि हमारे देश का कानून भी कहता है। आज़म खान के पूरे बयान का सार यही है कि वो जया प्रदा को किसी ज़माने में रामपुर लाए थे और राजनीतिक हस्ती के तौर पर स्थापित कराने में अपनी भूमिका निभाई थी। इस दौरान वो यह भी कहते हैं कि उन्होंने जया प्रदा को उंगली पकड़कर रामपुर की गलियों और सड़कों से परिचित करवाया।

वो यहां अपना एक और एहसान बताना नहीं भूलते कि उन्होंने किसी को भी जया प्रदा को छूने या कंधा लगाने नहीं दिया। अब आज़म खान साहब ही जाने कि क्या वो बता रहे थे कि रामपुर के सबसे श्रेष्ठ टूरिस्ट गाइड वही हैं या फिर यह कि उन्होंने जया प्रदा के शुरुआती राजनीतिक सफर में बतौर उनके अंगरक्षक काम किया था।

अगर यह नहीं है तो फिर आज़म खान क्या कहना चाहते हैं कि बतौर अभिनेत्री जया प्रदा सार्वजनिक ज़िन्दगी में किसी के भी छू लेने की वस्तु हैं या फिर महिला होने के नाते इतनी कमज़ोर हैं कि आज़म खान ने उनको राजनीतिक समर्थन देकर इतना बड़ा एहसान किया है कि वह उन्हें कुछ भी बोले लेने की हिम्मत और कुव्वत रखते हैं?

इस बयान के तो यह भी मायने निकलते हैं कि आखिरकार जया प्रदा को उन्होंने किससे बचाया? कुल मिलाकर यह पूरा बयान एक महिला को कमज़ोर, भोग-विलास की वस्तु और पुरुषों में आश्रित बताया जाना है। खासतौर पर तब जबकि, महिला एक अभिनेत्री हो। क्या किसी महिला का फिल्मों में काम करना, किरदार अदा करना उनका चरित्र तय कर देता है? बयान और सोच से तो ऐसा ही लगता है।

फिर फिल्मों में काम करना इतना गलत है और महिलाओं का फिल्मों में किरदार निभाना सामाजिक तौर पर इतना अस्वीकार्य है तो फिर लोग देखते ही क्यों हैं। गज़ब सोच है ना, छुप-छुपाकर, नज़रें बचाकर सब करेंगे लेकिन महिलाओं की बात आएगी तो मर्दानगी दिखाने के लिए संस्कारी हो जाएंगे। कितना आसान है कि महिलाओं को निशाना बना लेना। स्वयंभू होकर महिला रक्षक दल का मुखिया हो जाना। बात-बात पर उनको कमज़ोर साबित कर देना। हर जगह और हर किरदार में।

अब आज़म खान पर लौटते हैं

रामपुर की गलियां घुमाने वाली बात पर ही ‘दिग्गज’ रुक नहीं गए। उन्होंने वो कह दिया जो अधिकांश पुरुषों की मानसिकता में सालों से बदबूदार सड़न बनकर जमा है। उन्होंने रामपुर की जनता को संबोधित करते हुए सबसे ओछी बात कह दी।

उन्होंने वही किया, जो तर्क खत्म हो जाने के बाद अधिकांश लोग करते हैं। विवेक मर जाए तो कह जाते हैं। वही जो मर्दाना भ्रम होने पर अक्सर पुरुष कर जाते हैं। वही, जिससे दुनियाभर की महिलाओं को रोज़ाना दो-चार होना पड़ता है। जब तर्क हार जाता है। जब मुद्दा हार जाता है। खासतौर पर तब, जब हार में बौखलाहट होने लगती है।

आज़म खान ने कुछ ऐसा ही किया जैसा, सिंगर बनने का सपना देखने वाली नाबालिग लक्ष्मी के साथ एक 32-35 साल के आदमी ने किया, क्योंकि शादी के लिए एकतरफा कोशिश को लक्ष्मी ने मना कर दिया था, जैसा 2013 में दिल्ली में निर्भया के साथ हुआ क्योंकि निर्भया ने अपने ऊपर कसी जा रही अश्लील फब्तियों के लिए किसी को थप्पड़ जड़ दिया था, जैसा कि आगरा की संजलि के साथ उसके रिश्ते के भाई ने किया क्योंकि वो संजलि से एकतरफा ‘प्यार’ करता था लेकिन संजलि ने उसके पागलपन में दिलचस्पी नहीं दिखाई थी, या फिर जैसा देहरादून में हुआ जहां थप्पड़ मारे जाने से नाराज़ युवक ने छात्रा को जलाकर खाई में फेंक दिया।

पुरुष एक स्त्री से कैसे हार सकता है!

ऐसा ही होता आया है ना। मर्द हैं इसलिए हार स्वीकार नहीं है। जीत चाहिए किसी भी कीमत पर। सही हो गलत हो क्या फर्क पड़ता है। पुरुष हैं इसलिए जीतना चाहिए। बचपन से ही डाली जाती है यह बात। हमें भी कहा गया था, जब हम गोटी खेलते हुए पड़ोस की एक लड़की से हार गए थे और खेल के नियम के मुताबिक मुझे उससे अपनी हथेली पर थप्पड़ खाना था। पापा ने कहा था, शर्म आई तुम्हें कि एक लड़की से हार गए और फिर मार भी खा रहे हो।

उनके लिए मेरा हारना महत्वपूर्ण नहीं था महत्वपूर्ण यह था मैं एक लड़की से कैसे हार गया? हमें यही सिखाया जाता है ना? सारे लड़कों को यही सिखाया जाता है। लड़की से हारना शर्मिंदगी की बात है यह हमेशा मन में बिठाया जाता है, क्योंकि लड़कों को मर्द बनना है एक दिन। लड़कियों पर शासन करने वाला खोखला मर्द। मुझे पूरा यकीन है, आज़म खान साहब को भी उनके वालिद ने यही सिखाया होगा, शायद लंगड़ी टांग खेलते हुए, शायद पिट्टो या फिर कोई और खेल। तो आज़म खान ने वही किया। जो ट्रेनिंग और सीख मिली थी उसे अप्लाई किया। परखा कि मर्द बनने में कोई कसर तो नहीं रह गई। आज़माया विपक्ष की महिला नेता के अंतवस्त्रों को निशाना बनाकर। एक पार्टी और विचारधारा को कोसने के लिए उनके अंतवस्त्रों का रंग बताकर। आजम खान साहब ‘थोथे समाज का खोखला मर्द’ बन जाने में पूर्णतया सफल रहे। आपको आपकी मर्दानगी मुबारक हो आज़म साहब।

यह सिर्फ आजम खान की दिक्कत नहीं है। दिक्कत दरअसल उस पुरुषवादी मानसिकता की है, जो सदियों से सड़ांघ बनकर समाज की हवाओं में घुल गई है। महिलाओं के लिए ज़हरीला बन चुकी है। हर तबका, हर जात, धर्म, समुदाय और देश महिलाओं के लिए समान मानसिकता रखता है।

आज़म खान के बयान से भी ज़्यादा उस बयान पर ताली बजाना वीभत्स था

और एक बात, आज़म खान का जया प्रदा के अंतवस्त्रों पर टिप्पणी करना जितना वीभत्स था उतना ही भयावह था, नीचे उमड़ी भीड़ का इस नीच बयान पर ताली पीटकर ठहाके लगाना। क्या विवेक इतना मर गया है कि सोच ना पाएं कि गलत क्या है और सही क्या।

इस तरह के घटिया और अश्लील मैसेज सोशल मीडिया पर खूब शेयर किए जा रहे हैं, जिनमें समाजवादी पार्टी से जुड़ी तमाम महिलाओं को निशाना बनाया गया है। सोशल मीडिया पर किरण राय नाम की एक महिला तो एक कदम आगे निकल गईं। उन्होंने खाकी रंग का अंडरवियर ऑनलाइन आर्डर किया और इसे अखिलेश यादव के पते पर भेज दिया। सोशल मीडिया में अपने इस घटिया कृत्य को साझा करते हुए उन्होंने यह भी लिखा कि यह अखिलेश की पत्नी या बेटी के काम आ जाएगा।

यह कैसी मानसिकता है। नारी के अपमान के बदले नारी का अपमान, तो फिर यह न्यायसंगत कैसे हुआ? कैसे कोई महिला किसी महिला के लिए ऐसा कह सकती है। आज़म का बयान केवल जया प्रदा के खिलाफ नहीं था, बल्कि संपूर्ण महिला जाति के खिलाफ था। उन्होंने जो कहा वो महिला मात्र के प्रति घृणित पुरुषसत्तावादी मानसिकता का प्रतिनिधित्व करता है। किरण ने अपने कृत्य से उनकी मानसिकता, महिलाओं के प्रति हिंसा का समर्थन ही किया है। हैरान हूं कि एक महिला ऐसा कैसे कर सकती है?

महिलाओं का अपमान करने का यह पहला मामला नहीं है

महिलाओं के प्रति आपत्तिजनक टिप्प्णी किए जाने का यह पहला मामला नहीं है। देश के प्रधानमंत्री भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी कॉंग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गॉंधी के लिए ‘कॉंग्रेस की विधवा’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर चुके हैं। मोदी कैबिनेट में पहली बार मानव संसाधन विकास मंत्री और फिर कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी को उनके टीवी अभिनेत्री होने की वजह ओछे और अश्लील उपमाओं से नवाज़ा जा चुका है।

कई महिला नेता भी इस फेहरिश्त में शामिल रही हैं। राहुल गांधी का बयान भी उल्लेखनीय है कि जब राफेल मामले में रक्षा मंत्री निर्मला द्वारा संसद में दिए गए उनके संबोधन पर राहुल ने कहा था कि प्रधानमंत्री आरोपों से बचने के लिए एक महिला के पीछे छुप गए हैं। यानी, राहुल की नज़रों में जेएनयू की छात्रा रहीं, दशकों से राजनीति में सक्रिय रहकर रक्षा मंत्री तक का सफर तय करने वाली निर्मला सीतारमण का महत्व इसलिए कम हो जाता है क्योंकि वो एक महिला हैं। उन्होंने यह खयाल नहीं रखा होगा कि उनकी दादी इंदिरा गॉंधी देश की प्रधानमंत्री रही और मॉं सोनिया गांधी कॉंग्रेस जैसी बड़ी पार्टी की अध्यक्ष।

आखिर क्यों हम महिलाओं का बर्दाश्त नहीं कर पाते। निजी कंपनियों, पत्रकारिता से लेकर राजनीति और बॉलीवुड तक महिलाओं इसलिए निशाना बनाई जाती हैं, क्योंकि बीमारी बन चुकी पुरुषवादी मानसिकता उन्हें साझा साथी और मज़बूत मानने को तैयार नहीं है। आखिर क्यों? खैर यह नहीं भूलना नहीं चाहिए कि महिलाओं को कमज़ोर मानने वाली समाज की दीवारें मर्दाना कमज़ोरी के विज्ञापनों से अटी रहती हैं।

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