वैसे तो आपने चाणक्य नीति के बारे में काफी कुछ सुना होगा, बल्कि हो भी सकता है कि इन नीतियों को अपने जीवन में अमल में लाया भी होगा। क्या आप इन नीतियों से सहमत हैं, क्या आप जानते हैं इन नीतियों के जनक स्वयं चाणक्य ही हैं या फिर सिर्फ उनके द्वारा इनका प्रयोग किया गया। क्या आज यह नीतियां युवाओं को सही मार्गदर्शन दे सकती हैं।
गौरतलब है कि चाणक्य प्रखंड विद्वानों में से एक थे परन्तु चंद्रगुप्त मौर्य असाधारण और अद्भुत शिष्य थे। ऐसे अद्भुत शिष्य को खोजने के लिए भी पारखी नज़र की आवश्यकता थी, वो नज़र थी आचार्य चाणक्य की। चाणक्य का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, चंद्रगुप्त मौर्य के मंत्रिमंडल में महामंत्री रहे विद्वान चाणक्य की अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और राजनीतिक विषयों में गहरी पकड़ थी।
चाणक्य की नीतियां जितनी पहले समय में कारगर थी, उतनी ही आज है, जिनपर अमल करके व्यक्ति खुशहाल जीवन जी सकता है लेकिन यह नीतियां चाणक्य ने भी अपने जीवन के अनुभवों से ही सीखी थी। एक बार का वाक्या है, चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य की सेना के साथ मगध की राजधानी पाटलीपुत्र पर आक्रमण कर दिया और धनानंद की सेना और किलेबन्दी का ठीक से आंकलन नहीं कर पाए और बुरी तरह हार का सामना कर जान बचाकर भाग खड़े हुए।
चंद्रगुप्त और चाणक्य ने बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाई और चाणक्य एक घर में जाकर छुप गए। पास में चौके में एक दादी अपने पोते को खाना खिला रही थी। दादी ने उस दिन खिचड़ी बनाई थी, जो कि बहुत गर्म थी। दादी ने खिचड़ी के बीच में छेदकर गर्मा गर्म घी भी डाल दिया और पानी भरने चली गयी। थोड़ी देर के बाद बच्चा ज़ोर से चिल्ला रहा था और कह रहा था, “जल गया, जल गया”। दादी ने आकर देखा तो पोते ने गर्म खिचड़ी में उंगलियों को डाल दिया था।
दादी ने कहा, तू चाणक्य की तरह मूर्ख है, गरम खिचड़ी का स्वाद लेना हो तो उसे कोनों से खाया जाता है और तूने मूर्खों की तरह बीच में ही डाल दिया और अब रो रहा है।
चाणक्य तुरंत बाहर निकल आए और बुढ़िया के पांव छूकर बोले,
आप सही कहती हैं कि मैं मूर्ख ही था, तभी राज्य की राजधानी पर आक्रमण कर दिया और आज हम सबकी जान के लाले पड़ रहे हैं।
इस अनुभव के बाद चाणक्य ने मगध को चारों तरफ से धीरे-धीरे कमज़ोर करना शुरू किया और एक दिन चंद्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाने में सफल हुए। कुछ ऐसे ही अनुभवों के कारण प्रकांड विद्वान चाणक्य ने इन नीतियों को अपनाना प्रारम्भ किया।
वो चाणक्य नीति, जो युवाओं की सीखनी चाहिए
आज अगर हम इन नीतियों को अपने जीवन में लाते हैं, तो शायद सफलता जल्दी मिले और अनुभव होने के कारण हम भी बहुत कुछ हासिल कर पाए। आज हमारे देश में सबसे अधिक आबादी युवाओं की है और इन्हीं युवाओं के हाथों में देश का भविष्य टिका हुआ है। तो आइये कुछ ऐसी ही नीतियों और अनुभवों को आपके साथ साझा करते हैं, जो युवाओं की सोच को और उनके परिणामों को बदलने में कारगर साबित हो सकते हैं।
- वर्तमान समय की स्थिति के अनुसार हम लगातार परिश्रम करने में कतराते हैं और लगातार कर रही मेहनत का परिणाम ना मिलने पर अपनी किस्मत को दोष देने लगते हैं और निराश होकर बैठ जाते हैं लेकिन हमें ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए बल्कि इस परिस्थिति में और कड़ी मेहनत करनी चाहिए, क्योंकि चाणक्य की एक नीति कहती है, “परिश्रम वह चाबी है, जो किस्मत का दरवाज़ा भी खोल देती है”।
- कहते हैं हम अक्सर अपनी किस्मत को कोसते हैं और कहते हैं कि हमारी किस्मत में यह चीज़ नहीं है लेकिन यह मूर्खता है, क्योंकि चाणक्य ने चंद्रगुप्त के एक सवाल का उत्तर अपनी नीतियों के ज़रिए भली भांति दिया है। चन्द्रगुप्त कहते हैं, किस्मत पहले ही लिखी जा चुकी है, तो कोशिश करने से क्या मिलेगा, चाणक्य ने इसका उत्तर अपने ही अंदाज़ में दिया और कहा,
क्या पता किस्मत में लिखा हो कि कोशिश करने से ही मिलेगा।
- कहते हैं मन के हारे हार है और मन की जीते जीत, देश के युवा साथियों को इस बात को समझना चाहिए, क्योंकि हम अक्सर हैरान होकर थक कर बैठ जाते हैं लेकिन हम आत्मचिंतन नहीं करते हैं, जो कि बेहद ज़रूरी है। चाणक्य की एक नीति विशेष तौर पर युवा पीढ़ी के लिए ही है, जो बहुत जल्दी ही हार मान जाते हैं। चाणक्य ने कहा है,
जो व्यक्ति शक्ति ना होते हुए मन से हार नहीं मानता, उसको दुनिया की कोई ताकत नहीं हरा सकती है। खुद पर यकीन रखिये और डटकर मेहनत करिए आप जीतेंगे, आज नहीं तो कल ज़रूर जीतेंगे।
- अक्सर ज़िन्दगी में हम कई लोगों को अपना मित्र मानते हैं और कुछ लोग हमारे शत्रु भी बन जाते हैं, जिसका परिणाम भावनात्मक सुख और दुख भी होता है। कई दफा यही लोग बदल भी जाते हैं जिस कारण हमारे जीवन पर खासा असर पड़ता है। लेकिन आचार्य चाणक्य मानते हैं,
संसार में ना कोई आपका मित्र है ना शत्रु, बस तुम्हारा अपना विचार ही सर्वश्रेष्ठ है और वही इसके लिए उत्तरदायी है। यानी आप अपने विचारों को अच्छा बनाइये और यही सर्वोच्च हैं।
- आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में अमूमन देखा गया है, हम अपने बारे में ना सोच पाते हैं और ना ही कुछ कर पाते हैं। छोटी-छोटी बातों पर हमें गुस्सा आ जाता है। जो कि हमारी सेहत के साथ-साथ जीवन के लिए भी खतरनाक है, इसलिए चाणक्य कहते हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी ताकत व्यक्ति का विवेक है, इसलिए हमेशा हमें अपने विवेक और बुद्धि से काम लेना चाहिए। कई बार विवेक से किया हुआ काम बन जाता है और गुस्से से बिगड़ जाता है।
- जन्म से लेकर मृत्यु तक का सफर तय करने वाला यह मानव जीवन हमेशा सफल और बेहतर अनुभव के साथ बीतने का प्रयास करता है लेकिन हम किसी ना किसी कमी को लेकर हमेशा परेशान रहते हैं। चाणक्य नीति यही कहती है,
व्यक्ति अपने कर्मों से महान होता है ना कि अपने जन्म से, इसलिए हमें अपने कर्मों से अपनी पहचान बनानी चाहिए ना कि अपने जन्म से कि आप कहां और किस परिस्थितियों में पैदा हुए।
- आज के युवाओं में धैर्य की थोड़ी कमी है लेकिन मेहनत का कोई अभाव नहीं है। अगर सही दिशा दिखाई जाए तो किसी भी देश का कोई भी वर्ग वो सभी लक्ष्य प्राप्त कर सकता है जो वो चाहता है। जीवन में किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले हमें खुद से कुछ सवाल करने बेहद जरूरी हैं। ऐसा बेहतरीन ज्ञाता और गुरुओं के गुरु चाणक्य का मानना है। वे कहते हैं कोई भी काम शुरू करने से पहले खुद से पूछिए,
मैं ऐसा क्यों करने जा रहा हूं? इसका क्या परिणाम होगा?, क्या मैं सफल हो पाऊंगा?
यह तीन सवाल इसलिए आवश्यक हैं क्योंकि कई बार हम जल्दबाज़ी में कुछ फैसले ऐसे ले लेते हैं, जिनके बारे में हम कुछ नहीं जानते और वो हमारी क्षमता से बाहर होता है, इसलिए ज़रूरत है कि हम खुद से ये तीन सवाल करें और फिर आगे बढ़े।
- आखिर में चाणक्य की वो नीति जिसे वो स्वयं पर भी आज़माते थे और बहुत कुछ सीखते थे। चाणक्य का मानना है कि हम अपनी युवा अवस्था में ही नहीं बल्कि पूरे जीवनकाल में इस नीति को साथ लेकर चले। चाणक्य कहते हैं,
हमेशा दूसरों की गलतियों से भी सीखो, अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने में तुम्हारी आयु कम पड़ जाएगी, इसलिए कोशिश करें कि खुद की गलतियों को कम करने के लिए औरों की गलतियों से भी सबक लें और उस गलती को करने से बचें।
भारत एक महान देश है, यहां मेहनती लोगों की कोई कमी नहीं है। अगर कमी है तो वो है सही मार्गदर्शन की, सही दिशा की, सही लोगों की, सही संगती की, सही समय की और साथ ही कमी है दृढ़ संकल्प की और निश्चय की। अगर युवाओं को अपने जीवन में बेहतर परिणाम और यादगार अनुभव की लालसा है तो स्वयं को खुद में खोजने का काम करना होगा और इतिहास में रहे गुणी और विद्वानों के दिखाए हुए रास्तों पर चलना होगा। तब ही हम एक सफल इंसान और ज़िम्मेदार नागरिक बन सकते हैं।