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सरकारी स्कूलों में ज़मीन पर बैठकर पढ़ने वाले बच्चे

नमस्कार,

मेरा नाम मोहम्मद मिनहाज अंसारी (समीर अली अंसारी) है। मैंने उत्तर प्रदेश में अभी आयोजित 69000 शिक्षक भर्ती की परीक्षा दी है, हालांकि रिज़ल्ट अभी न्यायालय में लंबित है। मुख्य बिंदु पर आते हुए मैं एक ऐसे विषय पर बात करना चाहता हूं, जिसपर प्रशासन का ध्यान नहीं जाता और ना ही इनके खिलाफ कोई आवाज़ उठाई जाती है।

मेरा कहना है कि आखिर सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए बैठने की उचित व्यवस्था क्यों नहीं होती है?

फोटो प्रतीकात्मक है। सोर्स- Getty

मैं और राज्यों का तो नहीं बता सकता लेकिन उत्तर प्रदेश की हालत प्राइमरी शिक्षा व्यवस्था में बद से बद्तर है। आखिर सरकार के पास इतना बजट क्यों नहीं है कि बच्चों के बैठने के लिए कुर्सी मेज़ की व्यवस्था की जाए। मैं जब भी सरकारी स्कूलों में बच्चों को टाट पर बैठकर पढ़ते देखता हूं तो मुझे अफसोस होता है यह सोचकर कि आखिर शिक्षा जगत में इन बच्चों पर ध्यान क्यों नही दिया जाता है।

बच्चों के बैठने की व्यवस्था, लाइट की व्यवस्था, टॉयलेट की व्यवस्था जो केवल एक बार किया हुआ इनवेस्टमेंट है मगर उस पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता?

आखिर क्यों किया जाता है इसे नज़रअंदाज़?

जब मैंने शिक्षक बनने का सोचा तबसे दिल में सिर्फ एक अरमान लेकर बैठा हूं कि अगर मैं कभी शिक्षक बना तो इस व्यवस्था को बदलने का प्रयास ज़रूर करूंगा।

मैं प्रशासन के साथ ही शिक्षकों से भी सवाल करना चाहता हूं, क्या उनका फर्ज़ नहीं बनता कि प्रशासन पर इसके लिए दबाव बनाए। मेरा मानना है कि वातावरण बच्चों को अच्छी तरह से सीखने पर बल देता है लेकिन वो वातावरण उनको मिलेगा कैसे?

कब वो दिन आएगा जब सरकारी स्कूल के मास्टर का बच्चा भी सरकारी स्कूल से पढ़ना शुरू करेगा। शायद ऐसा नहीं होगा, क्योंकि ऐसा कोई चाहता ही नहीं। ना ही सरकार, ना ही शिक्षक और ना ही समाज। मुझे उम्मीद है कि वह दिन आएगा, ज़रूर आएगा।

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