राष्ट्रवाद आज इस कदर चर्चा में क्यों है? राष्ट्रवाद शब्द का इस्तेमाल तो गुलाम मुल्कों मे होता है! यह बात केवल मैं नहीं कह रहा हूं, आप इस शब्द के प्रयोग में लाए गए आंकड़े देख लीजिए। खैर, आज़ाद देशों में तो राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रनिर्माण या राष्ट्रसेवा जैसे शब्दों का उपयोग होता है।
2014 के बाद से राष्ट्रवाद शब्द हमारे बीच तेज़ी से चर्चित हो गया है तो इसका मतलब क्या समझा जाए? क्या अब हम गुलामी की तरफ बढ़ रहे हैं? मेरा मतलब अब आप देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोदी जी तक मत ले जाएं क्योंकि देश का प्रधानमंत्री कभी देशवासियों को गुलामी की तरफ नहीं धकेलना चाहेगा।
वह देश की सीमाओं को पारकर किसी भी घुसपैठिए को हम देशवासियों के ऊपर कभी राज नहीं करने देगा। वह कभी हमारी आज़ादी छिनने नहीं देगा लेकिन क्या सच में देश की आज़ादी का मतलब देश की सरहदों की सुरक्षा भर है? असल में देश की आज़ादी के यह मायने कभी नहीं होते, देश की आज़ादी देशवासियों की खुशी, आपसी सामंजस्य और एक-दूसरे को साथ लेकर चलने की भावना से होती है।
राष्ट्रवाद को लेकर महान वैज्ञानिक आइंस्टीन का एक कथन है, “Nationalism is an infantile disease. it is the measles of mankind.” यानि राष्ट्रवाद एक शिशु रोग है, जो मानव जाति के लिए एक खसरा है।
आज मुझे कुछ लोगों की फेसबुक पर प्रोफाइल दिखी, कुछ लोग यहां गर्व से नाम के आगे राष्ट्रवादी लिखते हैं। ये लोग अगर असल राष्ट्रवादी ही होते तो भी यह दिखावा जायज़ ना कहलाता।
अपने देश में आज कुपढ़ों का बोलबाला है, जिन्होंने सोशल मीडिया के हरकत में आते ही अपने कुपढ़े ज्ञान को अनपढ़ो के बीच फैलाना शुरू कर दिया। एक कौम के कुपढ़ों ने आतंकवाद को जन्म दिया जो जगज़ाहिर है। हां, मै बात कर रहा हूं इस्लामिक आतंकवाद की। बेरोज़गारी और धर्मांन्धता ही आतंकवाद या सांप्रदायिक युद्धों को जन्म देती है।
बेरोज़गारी आज अपने देश में पिछले 45 वर्षो का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है और सोशल मीडिया में फैल रहा गलत ज्ञान लोगों को कुपढ़ बना रहा है, जिसके कारण अब एक और कौम कुपढ़ों को सत्ता में हक और तवज्जो और देकर आतंकवाद को जन्म देगी। जी हां, यहां मै बात कर रहा हूं हिन्दू आतंकवाद की।
जो इंसान सही ज्ञान रखकर आज सत्तारूढ़ पार्टी की तरफदारी करते हैं, मैं उनकी दिल से इज्ज़त करता हूं। ऐसे लोग हमेशा रहेंगे और ऐसे लोग बहुत ज़रूरी भी हैं, जैसे विपक्ष ज़रूरी है, वैसे ही पक्ष भी मज़बूत होना चाहिए। यही तो लोकतंत्र है, यही तो आज़ाद देश है जहां देश के नागरिकों के छोटे से छोटे मुद्दे भी लोग इतने ज़ोर-शोर से उठाएं कि सरकारों की नींद उड़ा दें।
उन्हें यह दिखा दे कि तुम नेता लोग जनता से हो, जनता तुम लोगों से नहीं। हमें बस आज़ादी के असल रूप को समझने की ज़रूरत है फिर आपको आज के वक्त में पूरे देश में फैली गन्दी राजनीति खुद की आंखों से साफ दिखाई देगी।
एक बात और कि अगर मैं अपनी बात भारत माता की जय लिखकर समाप्त करूं तो उससे मेरी छवि अटूट देशप्रेमी वाली बनती है क्या? देशभक्त और देशद्रोह का पैमाना सिर्फ ‘भारत माता की जय’ बोलना ही है क्या? यह सवाल आपके लिए छोड़ कर जा रहा हूं।