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“शाम के बाद अंतिम संस्कार नहीं करना चाहिए, जैसे अंविश्वास जिनके बीच मैं बड़ा हुआ”

गाँव में सभा के दौरान महिलाएं

गाँव में सभा के दौरान महिलाएं

जहां भारत की बात हो और अंधविश्वास की बात ना हो, ऐसा कैसे हो सकता है? अंधविश्वास के बिना तो भारत की व्याख्या अधूरी है। भारत में आप किसी भी जगह चले जाइए आपको अंधविश्वास का अलग-अलग चेहरा देखना को मिलेगा। कुछ अंधविश्वास ऐसे भी हैं जो शायद पूरे भारत में स्वीकार्य हैं।

शहर हो या गाँव, अंधविश्वास हर जगह अपनी जड़ जमाए हुए है। गाँवों में इसका रूप कुछ ज़्यादा ही विराट है, जिसकी वजह ग्रामीणों की अज्ञानता और अशिक्षा को माना जा सकता है। गाँवों में ज़्यादातर लोग खेती करते हैं लेकिन अब यह स्थिति धीरे- धीरे बदल रही है और युवा अन्य रोज़गारों की ओर बढ़ रहे हैं।

ग्रामीणों के लिए परेशानी का सबब है अंधविश्वास

युवा अब सरकारी नौकरियों में भी जा रहे हैं लेकिन ग्रामीण युवाओं का ज़्यादातर प्रतिशत सी और डी ग्रेड की ओर ही आकर्षित होता है। इसका एक कारण यह है कि उनके घर की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होती है, जिस वजह से उच्च शिक्षा प्राप्त करने से वे वंचित रह जाते हैं और जल्द से जल्द बारहवीं या ग्रेजुएशन करने के बाद कोई जॉब करके घर की ज़िम्मेदारी संभालना उनकी प्राथमिकता बन जाती है।

इस वजह से लोग शिक्षित होते हुए भी अशिक्षित जैसी ही मानसिकता रखते हैं और जो अंधविश्वास उनके परिजनों ने उनको सिखाए थे, उन अंधविश्वासों को ये लोग बिना कोई सवाल किए मानते रहते हैं। यही कारण है कि जो अंधविश्वास मध्यकाल में अपनी जड़ जमाए हुए थे वही अंधविश्वास आज भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।

रात में मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार नहीं

अभी हाल ही की बात है, हमारे किसी रिश्तेदार की रात में करीब 10:30 बजे मृत्यु हो गई। हमारे यहां एक अंधविश्वास यह है कि रात के 10 बजे के बाद अगर किसी की मृत्यु हो जाए तो रात में उसका अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है। अब हुआ यह कि उसके मरने के बाद लोग उसके घरवालों को सांत्वना देने के लिए उसके घर आए। दो या ढाई घंटे में सब अपने घर वापस चले गए और सिर्फ मृतक के परिजन ही उसकी लाश के साथ पूरी रात बैठे रहे। अगले दिन सुबह मृतक का अंतिम संस्कार किया गया।

नोट: तस्वीर प्रतीकात्मक है। फोटो साभार: Twitter

मैंने अपने परिजनों से पूछा कि रात में अंतिम संस्कार क्यों नहीं किया जा सकता? उनका जवाब आया, “हमें नहीं पता। पीढ़ियों से ऐसा होता आ रहा है। अगर हमारे बुज़ुर्ग लोग इस प्रथा को मानते थे तो इसमें कुछ तो सच्चाई होगी ही।”

अंधविश्वास के कारणों पर अजीबो-गरीब तर्क देता सर्च इंजन

  1. अगर व्यक्ति की मृत्यु रात में या शाम ढलने के बाद होती है तो उसका अंतिम संस्कार सुबह सूर्योदय से लेकर शाम में सूर्यास्त होने से पहले करना चाहिए। सूर्यास्त होने के बाद शव का दाह संस्कार करना शास्त्र के खिलाफ माना गया है। अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु दिन के समय होती है, तब भी सूर्यास्त से पहले उसका अंतिम संस्कार करना होता है।
  2. शास्त्रों के अनुसार सूर्यास्त के बाद शव का अंतिम संस्कार नहीं किया जाना चाहिए। इसका कारण यह माना जाता है कि सूर्य ढ़लने के बाद अगर अंतिम संस्कार किया जाता है तो दोष लगता है। इससे मृतक व्यक्ति को स्वर्ग में कष्ट भोगना पड़ता है और अगले जन्म में उसके किसी अंग में दोष हो सकता है। एक मान्यता यह भी है कि सूर्यास्त के बाद स्वर्ग का द्वार बंद हो जाता है और नर्क का द्वार खुल जाता है।
  3. एक मत यह भी है कि सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य ही जीवन और चेतना भी है। आत्मा सूर्य से ही जन्म लेती है और सूर्य में ही विलीन होती है। सूर्य नारायण का रुप है और सभी कर्मों को देखते हैं। जबकि चंद्रमा पितरों का कारक है। यह पितरों को संतुष्ट करने वाला है। रात के समय आसुरी शक्ति प्रबल होती है जो मुक्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है। इन्हीं कारणों से शास्त्रों में शाम ढ़लने के बाद मृतक व्यक्ति का अंतिम संस्कार नहीं करने की बात कही गई गई है।
  4. शास्त्रों में बताया गया है कि शाम ढलने के बाद अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके शव को आदर पूर्वक तुलसी के पौधे के पास रखना चाहिए और शव के आस-पास दीप जलाकर रखना चाहिए। शव को रात में कभी भी अकेले नहीं छोड़ना चाहिए। मृतक व्यक्ति की आत्मा अपने शरीर के आस-पास भटकती रहती है और अपने परिजनों के व्यवहार को देखती है इसलिए परिवार के सदस्यों को मृतक व्यक्ति के शव के पास बैठकर भगवान का ध्यान करना चाहिए ताकि मृतक व्यक्ति की आत्मा को शांति मिले।
  5. शव को अकेले नहीं छोड़ने के पीछे यह कारण माना जाता है कि शरीर को छोड़कर जब आत्मा निकल जाती है तो शरीर एक खाली घर की तरह हो जाता है। इस खाली घर पर कोई भी बुरी आत्मा अधिकार जमा सकती है। इसलिए बुरी आत्माओं से शव की रक्षा के लिए लोगों का आस-पास होना ज़रूरी है। व्यवहारिक तौर पर शव को कोई जीव हानि नहीं पहुंचाए इसलिए भी इसके आस-पास लोगों का होना ज़रुरी माना गया है।

मेरे जैसे नास्तिक के लिए तो यह एक बकवास कहानी से ज़्यादा कुछ नहीं है। मैं अंधविश्वास के ऐसे कई किस्सों  के बीच बड़ा हुआ हूं। ये सारे अंधविश्वास मेरे पूरे गाँव और उसके आस-पास के क्षेत्रों में स्वीकार्य हैं। इनमें से कुछ अंधविश्वास निम्नलिखित हैं।

इन अंधविश्वासों को देखकर लगता है कि भारत अपनी तुलना चीन, जापान, अमेरिका और बाकी विकसित देशों से कितना भी कर ले लेकिन अभी भी वह सामाजिक क्षेत्र में मध्यकाल में ही अटका हुआ है। कोई देश तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक वह वैचारिक रूप से जागरूक नहीं हो जाता।

इसलिए जो अंधविश्वास आपके गले नहीं उतरते उन पर सवाल खड़े करिए, उनको नकारिये और वैचारिक रूप से मध्यकाल से निकलकर आधुनिक युग में प्रवेश करने का प्रयास करिए क्योंकि इस देश की बागडोर आप ही के हाथों में है। आप ही इस देश के कर्णधार हैं।

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