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मतदान से जुड़े वे अधिकार जो देश के हर नागरिक को जानने चाहिए

हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि मतदान के प्रति उदासीनता रखने वालों को सरकार से सवाल करने का कोई हक नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अधिक-से-अधिक लोग अपने मताधिकार का उपयोग कर सकें, इसके लिए उन्हें जागरूक बनाना बेहद ज़रूरी है।

वर्ष 2011 में भारत सरकार ने चुनावों में लोगों की भागीदारी बढ़ाने और जागरूकता लाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 25 जनवरी को ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ के रूप में मनाने की घोषण की। इसी दिन भारत निर्वाचन आयोग का गठन हुआ था। इसका उद्देश्य मतदाताओं के पंजीकरण में वृद्धि करना, खासकर युवा मतदाताओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करना और सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार सुनिश्चित करना है।

फोटो सोर्स- Getty

किसी भी लोकतांत्रिक देश में सबसे महत्वपूर्ण अधिकार मतदान का होता है-

आमतौर पर हममें से ज़्यादातर लोग यह जानते हैं कि भारत में 18 वर्ष या उससे अधिक के किसी भी व्यक्ति को देश के सभी राजनीतिक चुनावों में मतदान करने का अधिकार प्राप्त है। अगर मतदान सूची में आपका नाम रजिस्टर हो गया हो, तो आप मतदान केंद्र पर जाकर अपना वोट दे सकते हैं। भारतीय संविधान में भारत के नागरिकों को मतदान से संबंधित कुछ अन्य विशेष अधिकार दिये गये हैं। आपको उनके बारे में भी पता होना चाहिए।

1. जानने का अधिकार

सभी मतदाताओं को चुनाव में भाग लेने वाले प्रत्याशियों की जानकारी के बारे में जानकारी प्राप्त करने पूरा अधिकार है। भारतीय संविधान की धारा-19 के अंतर्गत नागरिकों को यह अधिकार दिया गया है। इसके आधार पर कोई भी व्यक्ति ना केवल अपने क्षेत्र के बल्कि देश के किसी भी क्षेत्र के प्रत्याशियों के चुनावी घोषणा पत्र की जानकारी, उनका वित्तीय लेखा-जोखा और आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में जान सकता है।

2. नोटा का अधिकार

मतदाताओं को अपना मत ना देने का भी पूरा अधिकार है और चुनाव आयोग द्वारा बाकायदा इस बात का रिकॉर्ड भी रखा जाता है। इस अधिकार को नोटा (NOTA-None of the Above) कहा जाता है। यदि कोई मतदाता चुनाव में खड़े होने वाले किसी भी उम्मीदवार को योग्य नहीं समझता हो, तो वह इस विकल्प का उपयोग कर सकता है। अर्थात, इस विकल्प के ज़रिये मतदाता चुनाव में उतरे प्रत्याशियों में से किसी को भी ना चुनने के अधिकार का प्रयोग करता है।

3. अनपढ़ एवं अशक्त मतदाताओं को अधिकार

चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार, ऐसे लोग जो शारीरिक रूप से मतदान केंद्र तक पहुंच पाने में अक्षम या असमर्थ हैं, उन्हें डाक मतपत्र के माध्यम से मतदान करने की सुविधा दी गई है। वे चुनाव अधिकारी की मदद से विशेष मतदान कर चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बन सकते हैं। जो मतदाता अशिक्षित हैं, वे अपने जनप्रतिनिधि के चुनाव चिन्ह को ईवीएम मशीन में देखकर उसके सामने का नीला बटन दबाकर मतदान कर सकते हैं।

4. अप्रवासी भारतीयों को मताधिकार

अप्रवासी भारतीय भी चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बन सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें स्वयं को चुनाव आयोग में पंजीकृत कराना होगा।

5. कैदियों के मताधिकार

जनप्रतिनिधि कानून 1951 की धारा 62 (5) के तहत ऐसा कोई भी व्यक्ति जो न्यायिक हिरासत में है या फिर किसी अपराध के लिए सज़ा काट रहा है, वह वोट नहीं दे सकता है। सामान्य जनता के अलावा वोट सिर्फ वही दे सकते हैं, जो पुलिस हिरासत में नहीं हैं।

6. मतदान में अयोग्यता की प्रक्रिया

भारतीय संविधान के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मतदान के नियमों पर खड़ा नहीं उतरता है, तो उसे मतदान प्रक्रिया से बहिष्कृत करने का भी प्रावधान है। यदि कोई व्यक्ति आईपीसी की धारा 17 (1) (इ) (रिश्वत संबंधी) के अंतर्गत या 17 (1) (एफ) (चुनाव पर अनुचित प्रभाव) का दोषी पाया जाता है, तो उसे मतदान का अधिकार नहीं मिलता। एक से अधिक क्षेत्र में मतदान करने वाला व्यक्ति भी मतदान प्रक्रिया से बाहर कर दिया जाता है।

7. वोट को चुनौती देने का अधिकार

मतदान प्रक्रिया के दौरान फर्ज़ी मतदान रोकने के लिए ‘चैलेंज्ड वोट’ की प्रक्रिया अपनायी जाती है। इसके लिए आपको मात्र दो रुपये खर्च करने होते हैं। इस प्रक्रिया को ‘चैलेंज्ड वोट’ कहा जाता है। इसका उपयोग वोट डालने से ठीक पहले किया जा सकता है। अगर किसी पोलिंग एजेंट को किसी मतदाता की पहचान पर शक हो, तो वह पीठासीन अधिकारी को दो रुपये की फीस देकर उक्त मतदाता की पहचान की चुनौती दे सकता है।

इसके बाद पीठासीन अधिकारी उस चैलेंज की जांच करते हैं। अगर मतदाता की पहचान सही होती है, तो उसे वोट देने की अनुमति दे दी जाती है, अन्यथा उस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है।

इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति किसी भी तरीके से मतदान प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास करता है, तो उसे एक साल की कैद अथवा ज़ुर्माना या फिर दोनों की सज़ा भुगतनी पड़ सकती है।

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