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“मोदी जी, सफाईकर्मियों के पैर तो धुल गए, गरीबी कब धुलेगी?”

अभी हाल ही में एक क्षणिक सुखद तस्वीर दिखी, जिसमें हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री जी कुछ सफाईकर्मियों के पैर धोते नज़र आए। राजनीति से लबालब यह तस्वीर मुझे क्षणिक सुखद इसलिए लगी क्योंकि जब यही सफाईकर्मी आए दिन दम घुटने से सीवर, नाले और गटर में मरते हैं, तब प्रधानमंत्री जी के कानों पर जूं नहीं रेंगती।

किसी भाषण में इनका जिक्र तक भी नहीं होता है। इनके सम्मान में शोकसभां भी नहीं होती हैं। आजकल तो संविधान में रातों-रात घोटाला हो रहा है। शायद ये कोई नया कानून हो कि सफाईकर्मियों के पांव साफ करने से पहले उनका बजट साफ कर दिया जाए, जिसका अनुसरण करते हुए मोदी जी ने मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास का बजट जो 2013 में 4500 करोड़ के करीब था, उसे साफ करके 10 करोड़ पर ला दिया है।

दलित प्रेम तो बस दिखावे की राजनीति है

मोदी जी का यह दलित प्रेम और सफाईकर्मियों के प्रति दयालुता तो बस दिखावे की राजनीति है क्योंकि अगर उन्हें वाकई कुछ करना होता तो आज सीवर में मज़दूर ना मर रहे होते। सफाईकर्मियों का बजट कम ना होता मगर उन्हें विदेश घूमने और चुनावी रैलियों से इतनी फुर्सत ही नहीं मिलती कि उनके लिए उत्तम व्यवस्था की जाए।

नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार: Getty Images

मोदी जी ने जिन सफाईकर्मियों के पैर धोए थे, उनकी ज़िन्दगी अब भी वैसी ही है। सोशल मीडिया पर हमने उन्ही सफाईकर्मियों में से एक महिला सफाईकर्मी को यह कहते सुना कि हमारी ज़िन्दगी तो अब भी वैसी ही है। मोदी जी के पैर धुलने से कुछ भी नहीं बदला। बड़ा सवाल यह है कि मोदी जी ने उनके पैर तो धो दिए लेकिन उनकी ज़िन्दगी से गरीबी कब धुलेगी?

सीवर में मज़दूर की मौत की खबरें आम हो गई हैं

यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि एक मज़दूर की मौत सीवर में या सेफ्टी टेंक में दम घुटने से हुई हो। किसी भी दिन का कोई भी अखबार उठा लीजिए, आपको एक ना एक ऐसी खबर मिल ही जाएगी लेकिन तब इन सब पर आपकी आपराधिक चुप्पी इन सफाईकर्मियों की समझ से बाहर हो जाती है।

अगर मोदी जी उनके लिए कुछ करना चाहते हैं तो उन्हें उचित सुविधा मुहैया कराई जानी चाहिए। अच्छी मशीनों की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि कोई सफाईकर्मी दम घुटने से ना मरे।

70 सालों में भी अगर सीवर में उतरने वालों की जाति नहीं बदली है, तो क्या “देश बदल रहा है” का नारा बेमानी नहीं है? इनके लिए कुछ करना ही है तो कम-से-कम वोटों की खेती के लिए ही सही इनके अधिकारों को मत छीनिए।

दलितों पर अलग-अलग तरीके से वार

13 प्वाइंट रोस्टर से आपने जो मनुवादी तमंचा चलाया है, उसकी मार से कई दलित, पिछड़े और आदिवासी, वापस उसी सीवर में मौत के मुंह में धकेल दिए जाएंगे।

ये सफाईकर्मी भीख नहीं मांग रहे हैं, केवल अपना हक चाहते हैं। ये अपना पांव खुद धो लेंगे, बस इन्हें उचित और स्थाई सुविधा मुहैया कराईये।

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