एक राजनीतिक स्वप्न ने मन मस्तिष्क में आकार लेना शुरू किया था और यह स्वप्न दिमाग नहीं दिल देख रहा था। चुनावी हलचल का दौर चल रहा है, हर दल बड़ी ही शिद्दत से चुनावी दंगल में हाथ आजमा रहा है। सबकी नज़र में केवल सत्ता हथियाने का लक्ष्य है।
हर कोई दांव-पेंच में लगा हुआ है। राजनीति के खेल में आज मंज़र कुछ अलग ही दिखाई दे रहा था। अगर दिमाग दौड़ाऊं तो अब तक राजनीति के मैदान पर पक्ष और विपक्ष दो ही पार्टियों के मध्य खेल होता था लेकिन पहली बार देख रही हूं कि राजनीति के खेल में दो पार्टियां आमने-सामने नहीं बल्कि गठबंधन पार्टियां एक पाले में और एक अकेली पार्टी दूसरे पाले में है।
अरे-अरे! अकेली पार्टी कहना ठीक नहीं होगा बल्कि अकेला व्यक्ति कहना ज़्यादा सही रहेगा। कुछ इस तरह कह सकते हैं, “गठबंधन पार्टी बनाम मोदी।” एक अकेला व्यक्ति जिसे धूल चटाने की ख्वाहिश में हर दल जोड़, गठजोड़ के हर पैंतरे आजमाने में लगा है।
मज़ेदार बात यह है कि भक्तों के मन में भक्ति और विश्वास के साथ-साथ मोदी नाम और व्यक्तित्व की एक छवि बनी हुई है लेकिन जो धुर विरोधी हैं, उनके मन में भी हर पल मोदी नाम का जाप चल रहा है। हार का डर हो या जीत के विश्वास की खुशी, दोनों ही स्थिति में मोदी के नाम का व्यक्तित्व भारी है।
मन की चेतन या अवचेतन दोनों ही अवस्थाओं में हर किसी के दिलो दिमाग में एक नाम है। अब से पहले किसी के नाम से सरकार को मैंने तो अपने होशोहवास में नहीं जाना मगर भाजपा के शासनकाल में भाजपा सरकार, काँग्रेस के शासनकाल में काँग्रेस सरकार का सम्बोधन ही सुनने को अधिक मिलता था।
आज मोदी सरकार सुनकर लगता है कि पार्टी की सरकार नहीं एक सशक्त नेतृत्व वाले राजा का शासन हो, जिसकी जितनी प्रशंसा करने वाले हैं, उससे कम आलोचक भी नहीं। आलोचक भी तभी कोई हो सकता है, जब एक समीक्षक के आंकलन की सीमाओं को तोड़ते हुए कोई आगे निकल जाए तो समीक्षक के समीकरण ध्वस्त होकर आलोचक को जन्म देते हैं।
निश्चित ही मोदी जी ने सभी समीकरणों को तोड़ा है, जिसे स्वीकार पाना इतना आसान नहीं है। जिस तरह बदलाव में वक्त लगता है, उसी तरह नए समीकरणों को हल करने और स्वीकारने में वक्त तो लगना ही है। जब तक यह समझ नहीं आता तब तक नए समीकरण की आलोचना होना मनुष्य की स्वाभाविक प्रक्रिया है।
किसी भी तरह का पक्ष ना लेते हुए निष्पक्ष रूप से यह ज़रूर कहूंगी कि मोदी का व्यक्तित्व बदलाव की दिशा में सुनामी जैसा है और वह सुनामी अच्छी है या बुरी, यह आप स्वविवेक से तय कीजिएगा लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी जी में हलचल तो हर दिल में पैदा करने की क्षमता है।
मंदिर में एक पुजारी जी से सुना था कि भजते रहो निरन्तर तो भगवान मिलेंगे, उल्टा भजो या सीधा भजो बस मन में सच्ची लगन हो तो ज़रूर मिलेंगे। इस बात पर भरोसा करूं तो निष्कर्ष यह निकलता है कि डर, गुस्सा, प्रेम या भक्ति से जैसे भी हो हर कोई तो मोदी को हराने या जीताने के लिए जप रहा है और जब इतनी शिद्दत से हर कोई मोदी को मन के भीतर सोते जागते जप रहा है, तो मोदी जी भी निराश नहीं करेंगे और ऊपर वाला तो बिल्कुल निराश नहीं करेगा सबकी कामना पूर्ण होगी।
फिलहाल वक्त है चुनाव के रण में बूथ पर जाकर मतदान करने की जो इस बात का प्रमाण है कि आप वयस्क और देश के सच्चे नागरिक हो। दिल की सुनो, दिमाग की सुनो बाकी किसी की ना सुनो और अपने मताधिकार का प्रयोग करो। मेरा मतदान भी राष्ट्रहित में ही होगा जिस पर मुझे गर्व होगा। चलते-चलते एक और बात,
“राजनीति लड़ने की नहीं बढ़ने का रणनीति है
राज्य बढ़ें यह नीति नहीं, राज करें यह नीति नई है।
शतरंज सा अब यह खेल नहीं शह और मात का,
विषधरों सी फुफकारती ज़हरीली हुई रणभूमि है।