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चुनावी माहौल में महिला सुरक्षा पर क्यों चुप हैं राजनीतिक पार्टियां?

नरेन्द्र मोदी, राहुल गाँधी और अमित शाह

नरेन्द्र मोदी, राहुल गाँधी और अमित शाह

इस चुनावी माहौल में कई राजनीतिक बातें हो रही हैं लेकिन राजनीति से दूर जो बात मेरा ध्यान केंद्रित करती है, वह है महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाएं। एक लड़की होने के नाते मुझे सोचने पर मजबूर करती है कि कब तक लड़कियां खुद को कमज़ोर मानकर समाज में बदनामी के डर से अन्याय के प्रति चुप रहेंगी?

ऐसी ही एक घटना है, जिसने मुझे अंदर तक झकझोर दिया लेकिन बुराईयों के प्रति लड़ने के लिए प्रेरित भी किया।

लड़कियों के लिए कब सुरक्षित होगा समाज?

एक लड़की जिसने अपने जीवन के 17वें पड़ाव में कदम रखा और अपने सपनों को साकार करने कॉलेज पहुंची मगर एक खबर ने उसके सपनों को किनारा कर दिया।

उसके ज़ेहन में सवालों का अंबार उमड़ पड़ा कि क्यों लड़कियों के लिए रात में बाहर निकलना इतना मुश्किल है? यह बात दिसंबर 2012 की है, जब मैंने निर्भया की खबर सुनी। इस खबर ने कुछ समय के लिए मेरे अस्तित्व पर ना जाने क्यों एक प्रश्नचिह्न छोड़ दिया। मैं कई दिनों तक रात में बाहर निकलने से डरती रही लेकिन इन बुराईयों से लड़ने की असीम ताकत मुझे मेरी माँ से मिली।

अपने ही रिश्तेदारों से क्यों असहज हैं हम

मुझे याद है बचपन में जब भी किसी रिश्तेदार के यहां कोई कार्यक्रम होता तो मुझे अकेले जाने से रोक दिया जाता और माँ के साथ ही जाने दिया जाता था, जिसका विरोध करने पर मुझे एक बात समझाई गई कि ज़माना बहुत खराब है। किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

आज इतने सालों बाद भी स्तिथियों में सुधार नहीं दिख रहा है। जब भी कोई लड़की चाहे मेट्रो सिटी की हो या किसी छोटे गाँव की, जब वह घर से बाहर निकलती है, असहज महसूस करती है। ज़्यादा दु:ख तब होता है, जब वह अपने ही घर में असहज हो जाती है। लड़कियां कई दफा किसी अनजान की वजह से नहीं, बल्कि खुद के रिश्तेदारों की वजह से असहज हो जाती हैं।

ऐसे मामलों की तादाद ज़्यादा जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं

निर्भया कांड, उन्नाव और कठुआ रेप केस के बारे में तो सबको पता है लेकिन अभी कुछ दिन पहले ही उत्तरप्रदेश से एक खबर आई, जहां एक शादी समारोह में लड़की का पति और उसके भाई ने मिलकर लड़की का रेप किया। ऐसे काफी मामले हैं जिनके बारे में किसी को कानों-कान खबर तक नहीं होती। समाज में बदनामी के कारण ज़्यादातर मामले दर्ज ही नहीं होते।

आंकड़ों के जाल में फंसे मामले

NCRB 2016 की रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज़्यादा रेप (4882) मध्यप्रदेश में हुए, जिसमें से 226 सामूहिक बलात्कार के मामले थे। उत्तरप्रदेश (4816) दूसरे स्थान पर और इसके बाद महाराष्ट्र (4189) और राजस्थान (3656)। सभी घटित मामलों की संख्या का आंकड़ा तो शायद हमारी समझ से भी परे हो।

मानवीय संस्कारों का खोखलापन

हमारे समाज की यह कैसी विडंबना है, जहां एक और नवरात्रि में कन्याओं का बड़े आदर के साथ पूजा जाता है। वहीं दूसरी तरफ इसी समाज द्वारा महिलाओं के साथ आपराधिक मामलों को अंजाम दिया जाता है। दुविधा तो तब होती है जब लड़कियों के विरोध में एक औरत ही उसके खिलाफ हो जाती है।

क्या सरकार के प्रयास से देश में इस तरह की घटनाओं पर काबू पाया जा सकता है? यह तो नहीं पता लेकिन मुझे लगता है कि इसकी शुरुआत हमें ही करनी होगी।

अशिक्षित होना एक बड़ा कारण

सामान्य तौर पर इस प्रकार के मामलों में अशिक्षित होना एक बड़ा कारण माना जाता है। NCRB जर्नल 2018 की रिपोर्ट बताती है कि 67% आरोपियों की शिक्षा का स्तर प्राथमिक है, जिनमें 23% तो अशिक्षित हैं। साथ ही ज़्यादातर का संबंध देश के ग्रामीण परिवेश से है।

इन तथ्यों पर गौर करें तो पारदर्शिता का एक रूप दिखाई देगा। जैसा कि विदित है, आज भी देश में शिक्षा के इतने अवसर नहीं हैं और गाँवों में तो उच्च शिक्षा की स्थिति और भी बदतर है।

मैं यह तो नहीं कहूंगी कि शिक्षा से ऐसे मामलों का संपूर्ण खात्मा हो जाएगा लेकिन कमी तो आएगी। साथ ही जब तक यह पितृसत्तात्मक समाज औरतों को एक इंसान के रूप में नहीं अपनाएगा, तब तक हम सुरक्षित नहीं हो सकते।

लड़कियां निर्भर ना होकर आत्मनिर्भर बनें

हम अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी मर्दों को ही क्यों सौंपे? क्यों उन्हें मौके दें कि वह हमेशा हमारी सुरक्षा के लिए खड़े रहें? हम क्यों सरकार या पुलिस का इंतज़ार करें कि वे हमारी सुरक्षा के लिए कदम उठाए?

इस लड़ाई को हमें सशक्त होकर लड़ना होगा। हमें समर्थ होकर उभरना होगा ताकि किसी लड़की या औरत के साथ अपराध करने से पहले कोई दस बार सोचे।

फोटो साभार: Getty Images

हम 21वीं शताब्दी में हैं। इतिहास गवाह है कि जब-जब किसी स्त्री पर आंच आई है, तो उसने खुद बुराई के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ी है। चाहे वह माँ दुर्गा हो या रानी लक्ष्मी बाई।

ऐसे कुछ उदाहरणों से हमें प्रेरित होकर सीखना चाहिए कि हम अपनी सुरक्षा के लिए दूसरों पर निर्भर ना होकर खुद ही आत्मनिर्भर बनें। समय आ गया है कि बुराईयों के विनाश के लिए हर द्रौपदी खुद ही कृष्ण बन जाए।

राजनीतिक पार्टियों के मैनिफेस्टो में भी महिलाओं से जुड़े मुद्दों का ज़िक्र नहीं है, जो साफ ज़ाहिर करता है कि उनका रवैया देश की आधी आबादी के लिए क्या है। ऐसे में बेहद ज़रूरी है कि हम अपनी रक्षा खुद करें।

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