कन्हैया कुमार को क्यों जीतना देखना चाहते हैं। लोगों के बहुत सारे सवाल हैं। हमारे बहुत सारे दोस्तों ने वामपंथ की आरएसएस से तुलना की और दलील यह दी कि दोनों की स्थापना का वक्त एक है और दोनों के संस्थापक सदस्य भी उच्च कोटि के लोग यानी ब्राह्मण वाद के लोग थे।
एक ओर कहां वामपंथियों ने बंगाल में मुसलमानों का बुरा हाल कर दिया और वहां के लोग अपने वजूद के लिये लड़ रहे हैं लेकिन वह एक बात और लिखना भूल गए कि केरल मात्र एक ऐसा प्रदेश है, जहां मुसलमानों की सबसे अच्छी हालत है।
यहां पर हमारा तर्क वामपंथ का किसी तरीके का पक्षधर बनने का नहीं बल्कि यह बताने का है कि हर राजनीतिक पार्टी का आवाम के लिये कोई अच्छा स्टैंड नहीं बल्कि सबकी अपनी महत्वकांक्षाएं हैं।
रही बात बेगूसराय में कन्हैया कुमार का समर्थन करने की तो सबसे बड़ी वजह यह है कि गरीब स्टूडेंट्स के लिये कन्हैया एक मिसाल बन सकते हैं। जब कोई गरीब स्टूडेंट राजनीति में भाग्य आज़माने के लिए सोचता है तो घर वाले सबसे पहले कहते हैं,
बेटा राजनीति हमारे लिए नहीं, वह पैसों वालों के लिए है लेकिन अगर कन्हैया जीत जाता है तो गरीब स्टूडेंट्स की उम्मीदें बढ़ जाएंगी और देश को संघर्षिल नेता मिलेगा, जो देशहित के लिए काम करेगा।
दूसरी बात सब यह कहकर कन्हैया के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं कि वह मुस्लिम लीडरशीप खा रहा है लेकिन असल बात यह है कि कन्हैया कुमार के खिलाफ RJD ने तनवीर हसन को उतार कर मुस्लिम लीडरशीप बचाई नहीं बल्कि बाप की विरासत बचाने का प्रयास किया है, नहीं तो मधुबनी में फातमी भी उम्मीदवार थे।
अगर तेजस्वी मुस्लिम के इतने खैरख्वा थे तो सिवान से हिना शहाब के खिलाफ उनका गठबंधन अमरनाथ यादव को क्यों खड़ा किया? अली अशरफ फातमी भी अलीगढ़ से तालीम याफ्ता हैं, फातमी को टिकट ना मिलने पर क्या अलीग बरादरी राजद का विरोध करेगी?
दोस्तों यह सब गोलमाल है क्योंकि हम जज़्बाती कौम हैं आये दिन कोई-ना-कोई अपने फायदे के लिये हमारे जज़्बातों से खेलता है और आज भी खेला जा रहा है, वरना सोचो अली अनवर साहब जो संसद में रह चुके हैं, उनको चुनाव नहीं लड़ाया और बेगुसराय में मुस्लिम प्रतिनिधित्व को लेकर जंग छेड़ रखी है।
दरअसल, मामला कुछ और है तेजस्वी को यह डर सताने लगा है कि कहीं कन्हैया कुमार उसके बराबर में ना खड़ा हो जाये और उसके सोने की चम्मच उससे छिन जाए।