This post is a part of Periodपाठ, a campaign by Youth Ki Awaaz in collaboration with WSSCC to highlight the need for better menstrual hygiene management in India. Click here to find out more.
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उस रात मुझे पेट में अजीब सा दर्द उठा, जैसे पेट के अंदर से कोई मांस खींच रहा हो। मैं भाई बहनों में सबसे बड़ी थी और परिवार में माहौल टिपिकल मिडिल क्लास फैमिली वाला था, जो सैनिटरी नैपकिन, गर्भनिरोधक गोलियां और कॉन्डम के विज्ञापन आने पर चैनल बदल देते थे।
ये तो फिर भी बड़ी बातें थी, हमारे टीवी पर हॉलीवुड फिल्में तक बैन थी, फिर चाहे वो ज्युरासिक पार्क ही क्यों ना हो। इन फिल्मों में चुंबन के दृश्य समाज में गंदगी फैलाने वाले कारक माने जाते थे।
खैर, उस रात पर वापस आते हैं जब मेरे पेट में बहुत दर्द हुआ। माहौल बड़ा तंग था तो ना चाहते हुए भी मेरी मां-बाप से दूरियां बढ़ गईं। लिहाज़ा मैंने चुप्पी बरती और दर्द जैसे-तैसे सह लिया। मुझे अंदाज़ा नहीं था कि यह दर्द अगली सुबह मेरे लिए शर्म और डर लेकर आएगा। सुबह मेरे बिस्तर और पैजामे पर लाल धब्बे थे। मैं जैसे डर से पत्थर हो गई, जैसे-तैसे मैंने वह चादर हटाई और बाथरूम की तरफ भागी।
वहां देखा तो खून, एक बार को लगा मैं मरने वाली हूं फिर याद आया कि साथ की कई लड़कियों ने बताया था कि ऐसा होता है। मैं नौंवी कक्षा में थी और अगर साथ वाली लड़कियों के साझे किए ज्ञान की कहानी सुनाउं तो किसी ने कहा था,
मुझे याद आया कि मैं मोनिटर थी और अक्सर क्लास के लड़के-लड़कियों को कॉपी देते हुए उनके हाथ टच हो जाते था। एक दोस्त ने कहा था,
मेरे दिमाग में वे सारी बातें घूम रही थी। कोई ऐसा नहीं था, जिससे अपना मन हल्का करती। इतने में माँ को आभास हो गया और वह बड़ी तमतमाई हुई दिखी। थोड़ी देर बाद वह कपड़ा लेकर आईं और बिना कुछ बोले चली गईं। मुझे वक्त लगा यह समझने में कि उस कपड़े का इस्तेमाल कैसे करना है। यह मेरे पीरियड्स की कहानी थी, जिसे पीरियड्स बोलने का साहस बहुत समय बाद आया।
उस वक्त मैं एक स्टूडेंट थी और पीरियड्स ने मुझसे मेरी पढ़ाई और मेरा कॉन्फिडेंस छीना। लंबा वक्त लगा इसे स्वीकारने में कि यह कोई गलत काम का नतीजा नहीं, बल्कि मेरे स्वस्थ होने की निशानी है।
इसी तरह 10वीं में रिप्रोडक्शन चैप्टर ज़रूर था लेकिन टीचर ने कहा था खुद पढ़ लेना। उस चैप्टर को किसी पॉर्न जैसी संज्ञा दे दी गई थी, जिसे खोलना आपकी इज्ज़त पर कलंक लगा सकता है। दरअसल, सेक्स या पीरियड्स जैसे शब्द लोगों को असहज कर देते हैं। यही वजह है कि कच्ची उम्र में लड़के और लड़कियों को मानसिक तनाव हो जाता है, क्योंकि उनके अंदर हो रहे शारीरिक बदलावों पर उन्हें कभी सही जानकारी नहीं मिलती।
एक सवाल आप खुद से पूछे, खासकर लड़कियां,
यही सवाल लड़कों से भी कि
मैं दावे के साथ कहती हूं कि जिस दिन हम सब समझ जाएंगे कि पीरियड्स क्यों होते हैं और यह कैसे स्वस्थ होने की निशानी है, उस दिन पिता और भाई भी अपने घर की महिलाओं को समझ पाएंगे।
उससे पहले खुद महिलाओं को इसे कबूल करने की ज़रूरत है। इस पर बात करने और अपने पर्सनल हाइजीन की देखरेख की ज़रूरत है, क्योंकि ज़िन्दगी पीरियड्स के खून को देखकर डरने और शर्माने के लिए बिल्कुल नहीं है। ना ही पीरियड्स पर किसी कोने में अकेले दिन रात बिताने की।
आज भी गांव देहात यहां तक कि शहरों में भी पीरियड्स आने पर महिला को अलग कर दिया जाता है। पुराने वक्त में यह इसलिए किया जाता था ताकि संयुक्त बड़े परिवार में महिला को खेत खलिहान और चूल्हे से थोड़ा आराम मिले। उस वक्त साफ सफाई और शौचालय जैसी भी व्यवस्था नहीं हुआ करती थी, इसलिए महिला को नहाने और बाकी चीज़ों से दूर रखा जाता था ताकि इंफेक्शन ना हो।
पुराने लोग वैज्ञानिक सोच के थे लेकिन उन्हें फॉलो करने वाले अंधभक्त। आप लोग अंधभक्त ना बने और थोड़ा दिमाग खोलकर सोचे, तो काली पॉलीथीन और अखबार में लिपटे पैड को हटाओ और जानकारी हासिल करो।
जानकारी हासिल करने की फेहरिस्त पर इसे कबूलना भी ज़रूरी है कि दीवारों पर लिखे गुप्त रोग के विज्ञापनों से मुंह फेर के मंद मंद ना हंसे बल्कि इसके प्रति संवेदनशील बने। एचआईवी एड्स जैसी बीमारी होना कोई जुर्म नहीं है, जिसके लिए आप खुद जज बन जाएं और फैसला देते हुए मरीज़ के साथ भेदभाव करें।
एचआईवी एड्स के कई कारण हैं, जिनमें से एक कारण एचआईवी मरीज़ के साथ अन प्रोटेक्टेड सेक्स भी हो सकता है लेकिन सिर्फ यही एक कारण होता है इसे अपने दिमाग से निकालकर दूर फेंकने की ज़रूरत है। सेक्स हमारे जीवन का हिस्सा है, जिससे मुंह मोड़ना खुद के लिए समस्याएं आमंत्रित करने जैसा है।
कई लोग इस विषय पर मनगढ़ंत जानकारियां पाकर कुंठित रहते हैं, तो कई लोग सेक्स एजुकेशन के अभाव में कई बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। ऐसे में यहां सबसे पहली ड्यूटी माँ-बाप फिर शिक्षकों की होती है कि वे बच्चों से खुलकर बात करें और कॉउंसलिंग करें। हमारा देश युवाओं का देश है लेकिन सेक्शुअल और रिप्रोडक्टिव हेल्थ की दृष्टि से ये भटके युवाओं का भी देश है।
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