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क्या बिहार के लेनिनग्राद से वामपंथ को नई दिशा दे पाएंगे कन्हैया कुमार?

कन्हैया कुमार

कन्हैया कुमार

“कन्हैया कुमार अच्छी बातें करता है, बात रखने वाला लगता है लेकिन इसकी ही जाति के लोग इसे वोट देने के पक्ष में नहीं हैं। हम लोग भी तो तनवीर हसन जी के साथ वही कर रहे हैं। क्या कन्हैया कुमार हमारा हो पाएगा?”

बछवाड़ा, मटिहानी से लेकर बरौनी तक मुस्लिम समुदाय के बड़े तबके के लोग आजकल आपस में ऐसी ही बातें करते दिख रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे उनके मुख पर कन्हैया कुमार का नाम अवश्य है लेकिन उनके दिलों में तनवीर हसन बैठे हैं। यह पूछे जाने पर कि किसे वोट देंगे, अधिकांश मुस्लिमों का कहना है, ‘‘वह तो हम बूथ पर जाकर ही सोचेंगे लेकिन इतना तो तय है कि जो भाजपा को हराएगा, हमारा वोट उसी को जाएगा।

पिछले चुनावों में बेगूसराय सीट पर विभिन्न दलों की स्थिति

बिहार का ‘लेनिनग्राद’ और ‘मिनी मॉस्को’ कहलाने वाली बेगूसराय सीट पर भूमिहार, यादव और मुसलमान मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या बताई जा रही है। कुर्मी तथा अन्य पिछड़ी जतियों के साथ अनुसूचित जाति के मतदाता भी इस सीट पर काफी दखल रखते हैं।

साल 2008 में हुए परिसीमन से पहले बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र दो हिस्सों, ‘बेगूसराय और बलिया’, में बंटा हुआ था। साल 2008 से पहले वाली बेगूसराय सीट पर मुख्यत: काँग्रेस का प्रभुत्व रहा था। काँग्रेस आठ बार इस सीट पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी।

यही स्थिति बलिया में वामपंथियों की थी लेकिन परिसीमन के बाद बनी बेगूसराय सीट पर इन दोनों दलों की स्थिति कमज़ोर हो गई। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में जदयू उम्मीदवार ने भाकपा के दिग्गज नेता शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को हरा दिया था, जबकि 2014 के आम चुनावों में भाजपा के भोला सिंह विजयी रहे थे।

इस बार भूमिहार एवं मुस्लिम मतदाताओं का रुझान इस सीट के चुनावी नतीजों के लिए काफी अहम रहेगा। कुछ बुज़ुर्ग भूमिहार मतदाताओं का कहना है, ‘‘कन्हैया अभी लड़का है। उसके पास अभी पूरी ज़िंदगी पड़ी है। इस बार भूमिहार लोग सीनियर (गिरिराज सिंह) के पक्ष में दिखते हैं। इसे (कन्हैया को) अगली बार देखा जाएगा।

बेगूसराय लोकसभा सीट पर 29 अप्रैल को मतदान होगा। बेगूसराय सीट पर जहां भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के मुद्दे को उठा रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय पर मुखर हैं, वहीं कन्हैया स्थानीय मुद्दों एवं लोकतंत्र की रक्षा की ज़रुरत पर ज़ोर दे रहे हैं।

राजद उम्मीदवार तनवीर हसन सुर्खियों में नहीं हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर उनकी उपस्थिति आसानी से देखी जा सकती है। तनवीर हसन अलग-अलग इलाकों में छोटी-छोटी जनसभाओं पर ज़ोर दे रहे हैं। उन्हें बेगूसराय में राजद का कद्दावर और लोकप्रिय नेता माना जाता है। पिछली बार उनके और भाजपा के दिवंगत नेता भोला सिंह के बीच कांटे का मुकाबला हुआ था और सिंह ने हसन को करीब 58,000 वोटों से हराया था।

भाकपा इस सीट से सिर्फ एक बार 1967 में लोकसभा चुनाव जीती है। तब भाकपा उम्मीदवार योगेंद्र शर्मा ने चुनाव जीता था। हालांकि, भाकपा से जुड़े रहे रमेंद्र कुमार 1996 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बेगूसराय सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे।

साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में बेगूसराय सीट जदयू के खाते में रही, जबकि 2014 में इस पर भाजपा के भोला सिंह विजयी हुए थे। इस सीट पर कांग्रेस आठ बार जीत दर्ज कर चुकी है। साल 1999 के लोकसभा चुनाव में यह सीट राजद के खाते में गई थी।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, असल में यहां वामपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों का एक खास तरह का कैडर है जिसमें छात्रों, अध्यापकों, मंचीय कलाकारों, नाटककारों के समूह राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं। इनमें हर जाति और धर्म के लोग शामिल हैं।

इस संसदीय क्षेत्र में कुल सात विधानसभा सीटें हैं। इनके नाम हैं – चेरिया बरियारपुर, मटिहानी, बखरी, बछवाड़ा, साहेबपुर कमाल, तेघड़ा और बेगूसराय। बखरी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।

साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त महागठबंधन के रूप में राजद, जदयू और कांग्रेस एक साथ थे, जबकि भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी थी। इन सात विधानसभा सीटों में से छः पर महागठबंधन के हाथों भाजपा की हार हुई थी। दो सीटों पर जदयू, दो सीटों पर राजद, दो सीटों पर कांग्रेस और एक सीट पर भाजपा की जीत हुई थी।

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